सुप्रीम कोर्ट का केंद्र सरकार को निर्देश- पाकिस्तान की जासूसी करने वाले को 10 लाख का मुआवजा

30 साल  के बाद जासूस को सुप्रीम कोर्ट से मिला इंसाफ, भारत के लिए पाकिस्तान में की जासूसी

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याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि उसका पाकिस्तानी सेना से कोई लेना-देना नहीं है।जस्टिस भट ने याचिकाकर्ता अंसारी से कहा- आप पाकिस्तानी रेंजरों का हिस्सा थे। यदि आप वाकई एक विध्वंसक भूमिका में गए थे, तो आपको बताना चाहिए था।  उन्हें 1987 में रिहा कर दिया गया और दो साल तक पाकिस्तान के भारतीय दूतावास में रखा गया। 1989 में वे भारत वापस आ गए।

भारत सरकार के स्पेशल ब्यूरो ऑफ इंटेलिजेंस ने उन्हें 1972 में देश के लिए सेवाएं देने कहा।महमूद अंसारी का दावा है कि वे जासूसी के आरोप में पाकिस्तान की जेल में 14 साल बंद रहे, अब जासूस की हालत पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को फटकार लगाई है। 

नई दिल्ली- राजस्‍थान के रहने वाले महमूद अंसारी 1966 में डाक विभाग में काम करते थे। 23 दिसंबर 1976 को अंसारी को जासूसी के आरोप में गिरफ्तार हो गए। अंसारी का कोर्ट मार्शल किया गया। उन पर ऑफिसिय‌ल सीक्रेट एक्ट,1923 की धारा 3 के तहत मुकदमा चला। और 14 साल की जेल हुई।उनकी सेवाएं 31 जुलाई 1980 को ही समाप्त कर दी गईं। प्रशासनिक न्यायाधिकरण ने भी 2000 में बहाली और बैकवेज की उनकी याचिका खारिज कर दी। इसके बाद अंसारी ने 2017 में सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।कोर्ट ने फैसला दिया कि अनुग्रह राशि के तौर पर 10 लाख रुपए, 3 हफ्ते के भीतर याचिकाकर्ता को दिए जाएं। भारत सरकार के स्पेशल ब्यूरो ऑफ इंटेलिजेंस ने उन्हें 1972 में देश के लिए सेवाएं देने कहा।

याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि उसका पाकिस्तानी सेना से कोई लेना-देना नहीं है।जस्टिस भट ने याचिकाकर्ता अंसारी से कहा- आप पाकिस्तानी रेंजरों का हिस्सा थे। यदि आप वाकई एक विध्वंसक भूमिका में गए थे, तो आपको बताना चाहिए था।  उन्हें 1987 में रिहा कर दिया गया और दो साल तक पाकिस्तान के भारतीय दूतावास में रखा गया। 1989 में वे भारत वापस आ गए।


अंसारी को आखिरी बार 19 नवंबर 1976 को पेमेंट की गई थी। 1977 के बाद से उन्होंने अपनी सैलरी नहीं ली है।सरकार की ओर से एडिशनल सॉलिसिटर जनरल (ASG) विक्रमजीत बनर्जी ने कहा था कि राज्य का याचिकाकर्ता से कोई लेना-देना नहीं है। 2017 में राजस्थान हाईकोर्ट ने भी देरी और अधिकार क्षेत्र का हवाला देते हुए उनकी याचिका खारिज कर दी। 1989 में जब अंसारी रिहा होकर लौटे तो उन्होंने नौकरी के लिए अधिकारियों से संपर्क किया।  याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि उसका पाकिस्तानी सेना से कोई लेना-देना नहीं है।जस्टिस भट ने याचिकाकर्ता अंसारी से कहा- आप पाकिस्तानी रेंजरों का हिस्सा थे। यदि आप वाकई एक विध्वंसक भूमिका में गए थे, तो आपको बताना चाहिए था।  उन्हें 1987 में रिहा कर दिया गया और दो साल तक पाकिस्तान के भारतीय दूतावास में रखा गया। 1989 में वे भारत वापस आ गए।

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महमूद अंसारी नाम के इस शख्स का दावा था कि उसे सीक्रेट मिशन पर पाकिस्तान भेजा गया था। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को केंद्र सरकार को पाकिस्तान की जासूसी करने वाले भारतीय को 10 लाख रुपए एक्स ग्रेशिया देने का आदेश दिया। लेकिन वहां पकड़े जाने के बाद उसे 14 साल तक जेल में रखा गया। मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस रवींद्र भट ने की।पारिवारिक हालातों को ध्यान में रखते हुए मुआवजे के तौर पर गुजारा भत्ता दिए जाने का सरकार को निर्देश दिया।कोर्ट ने याचिकाकर्ता के जासूसी मिशन और पोस्टल डिपार्टमेंट में नौकरी करने के तथ्यों पर दोनों पक्षों की दलीलें सुनी। इसके बाद सीजेआई यूयू ललित ने पीड़ित के पक्ष में फैसला सुनाया।  पहले यह 5 लाख रुपए तय हुआ था लेकिन 75 साल उम्र और बेटी पर निर्भरता को देखते हुए इसे 10 लाख कर दिया गया।

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