देश में हालत खराब माध्यमिक स्तर पर ही छुट रही बच्चों की पढ़ाई

पढ़ाई छोड़ने में बेटियो की संख्या ज्यादा
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दस्तावेजों के अनुसार, वर्ष 2020-21 में बिहार में स्कूलों में माध्यमिक स्तर पर ड्रापआउट दर 21.4 फीसद, गुजरात में 23.3, मध्य प्रदेश में 23.8, ओडिशा में 16.04, झारखंड में 16.6, त्रिपुरा में 26 और कर्नाटक में 16.6 फीसद दर्ज की गई। संबंधित अवधि में दिल्ली में स्कूलों में दाखिला लेने वाले विशेष जरूरत वाले बच्चों की अनुमानित संख्या 61,051 थी जिनमें से 67.5 फीसद ने बीच में पढ़ाई छोड़ दी या उनकी पहचान नहीं की जा सकी है। बोर्ड ने दिल्ली में स्कूली शिक्षा के दायरे से बाहर बच्चों को मुख्यधारा में लाने का कार्य त्वरित आधार पर पूरा करने को कहा है

दिल्ली।   जानकारी चौंकाने वाली है और स्थिति चिंताजनक है। इन राज्यों में झारखंड, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, गुजरात, बिहार, कर्नाटक, त्रिपुरा, नागालैंड आदि शामिल हैं।

यह जानकारी वर्ष 2022-23 के लिए समग्र शिक्षा कार्यक्रम पर शिक्षा मंत्रालय के तहत परियोजना अनुमोदन बोर्ड (पीएबी) की बैठक के दस्तावेजों से प्राप्त हुई है। केंद्र सरकार ने इन राज्यों को इस 'ड्रॉपआउट' दर को कम करने के लिए विशेष कदम उठाने का सुझाव दिया है। ये बैठकें अप्रैल से जुलाई तक अलग-अलग राज्यों के साथ हुईं। सूत्रों के मुताबिक सरकार नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में लक्ष्य के मुताबिक 2030 तक स्कूली शिक्षा के स्तर पर 100 फीसदी सकल नामांकन दर (जीईआर) हासिल करना चाहती है और इसमें बच्चों को बीच में ही छोड़ देना एक बाधा मान रही है।

बैठक के दस्तावेजों के अनुसार, वर्ष 2020-21 में बिहार में माध्यमिक स्तर पर स्कूल छोड़ने वालों की दर 21.4 प्रतिशत, गुजरात में 23.3, मध्य प्रदेश में 23.8, ओडिशा में 16.04, झारखंड में 16.6, त्रिपुरा में 26 और कर्नाटक में 16.6 प्रतिशत थी। चला गया। प्रासंगिक अवधि के दौरान दिल्ली के स्कूलों में नामांकित विशेष आवश्यकता वाले बच्चों की अनुमानित संख्या 61,051 थी, जिनमें से 67.5 प्रतिशत ने स्कूल छोड़ दिया या उनकी पहचान नहीं की जा सकी। बोर्ड ने दिल्ली में स्कूली शिक्षा से बाहर के बच्चों को मुख्यधारा में लाने के काम को तेजी से पूरा करने को कहा है.

वर्ष 2019-20 में आंध्र प्रदेश में माध्यमिक स्तर पर ड्रॉपआउट दर 37.6 प्रतिशत थी, जो वर्ष 2020-21 में घटकर 8.7 प्रतिशत हो गई। ऐसे में पीएबी ने राज्य से ड्रॉपआउट दर को और कम करने के प्रयास जारी रखने को कहा है. दस्तावेजों के अनुसार, वर्ष 2020-21 में उत्तर प्रदेश में माध्यमिक स्तर पर 12.5 प्रतिशत छात्र, लड़कों के लिए औसत 11.9 और लड़कियों के लिए 13.2 प्रतिशत के साथ बीच में ही पढ़ाई छोड़ दी।

घरेलू कामों के कारण छूटी बेटियों की पढ़ाई

संयुक्त राष्ट्र बाल कोष द्वारा हाल ही में किए गए एक सर्वेक्षण में कहा गया है कि 33 प्रतिशत लड़कियां घरेलू काम के कारण स्कूल छोड़ देती हैं और 25 प्रतिशत लड़कियां शादी के कारण स्कूल छोड़ देती हैं। इसके अनुसार कई जगहों पर यह भी पाया गया कि बच्चे स्कूल छोड़ने के बाद अपने परिवार के साथ मजदूर के रूप में काम करने लगे या लोगों के घरों की सफाई करने लगे।

स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता विभाग के पूर्व सचिव अनिल स्वरूप ने कहा कि ग्राम पंचायत व वार्ड स्तर पर स्कूली शिक्षा के दायरे से बाहर रहने वाले बच्चों की 'मैपिंग' और शिक्षक-अभिभावक स्तर पर माह में कम से कम एक बार बैठक का आयोजन किया जाए। स्कूल्स में। कर जागरूकता फैलाना आवश्यक है। उन्होंने कहा कि ऐसे बच्चों की पहचान कर उनके घरों में जाकर उन्हें सूचित किया जाना चाहिए क्योंकि कई बार परिणाम अच्छा नहीं होता या पारिवारिक स्थिति भी इसका कारण होती है। 

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