2009 दंतेवाड़ा मुठभेड़ - सुप्रीम कोर्ट ने मुठभेड़ की जांच करने वाली याचिका को किया खारिज, याचिकाकर्ता पर लगाया जुर्माना

साल 2009 में छतीसगढ़ के दंतेवाड़ा में पुलिस ने 16 माओवादियों के मारे जाने का दावा किया था
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सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की जांच के लिए एसआईटी गठित करने की भी बात कही थी. लेकिन स्वतंत्र जांच की बात टल गई. इसी साल अप्रैल में केंद्र सरकार की ओर से हिमांशु कुमार और अन्य याचिकाकर्ताओं के ख़िलाफ़ अदालत में आवेदन दिया गया और याचिकाकर्ताओं के ख़िलाफ़ ही सीबीआई या एनआईए से जांच की मांग की गई थी.

नई दिल्ली - साल 2009 में छत्तीसगढ़(Chhattisgarh)के दंतेवाड़ा जिले में नक्सलियों और सुरक्षबलों की मुठभेड़ की सीबीआई(CBI) जांच की मांग करने वाली याचिका को ख़ारिज कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने 13 साल पहले हुई मुठभेड़ को ठुकराते हुए याचिकाकर्ता पर 5 लाख रुपये जुर्माना भी ठोकते हुए इजाजत दी है कि केंद्र सरकार(Central Government) चाहे तो वामपंथी चरमपंथियों को बचाने वाले लोगों या संगठनों पर कार्रवाई कर सकती है.

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एएम खानविलकर(Justice AM Khanwilkar) एंव जस्टिस जेबी पारदीवाला(Justice JB Pardiwala) ने आदिवासी अधिकार एक्टिविस्ट हिमांशु कुमार(Tribal Rights Activist) व अन्य 12 लोगों की याचिका को खारिज करते हुए हिमांशु कुमार(Himanshu Kumar) को चार हफ्ते के भीतर 5 लाख रुपये जुर्माना भरने का आदेश दिया है. उन्होंने साल 2009 में 17 आदिवासियों की हत्या के मामले में छत्तीसगढ़ पुलिस और केंद्रीय सुरक्षा बलों के खिलाफ सीबीआई जांच की मांग की थी.

जस्टिस एएम खानविलकर व जस्टिस जेबी पारदीवाला की दो सदस्यीय बैंच ने इस मामले में झूठा आरोप लगाने संबंधी केंद्र सरकार की दलील पर कहा कि वे आईपीसी की धारा 211 के तहत कार्रवाई करने का फैसला छत्तीसगढ़ सरकार पर छोड़ते हैं. बैंच ने कहा कि इस मामले में केवल झूठा आरोप लगाने का ही नहीं, बल्कि आपराधिक साज़िश रचने पर भी कार्रवाई की जा सकती है. हालांकि सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता(Solicitor General Tushar Mehta) ने कोर्ट से कहा कि इस मामले में इंटर स्टेट(Inter State Right) अधिकार प्रभाव हो सकते हैं. उन्होंने इस मामले में केंद्रीय एजेंसी द्वारा जांच की मांग करते हुए कोर्ट से इसे स्पष्ट करने का अनुरोध किया. अदालत ने उनका अनुरोध मान लिया है.

फ़ैसले के बाद ट्राइबल एक्टिविस्ट हिमांशु कुमार ने मीडिया से कहा, "यह आदिवासियों के न्याय मांगने के अधिकार पर बड़ा हमला है. अब आदिवासी न्याय मांगने में डरेगा. इससे तो यही साबित होता है कि पहले से ही अन्याय से जूझ रहा आदिवासी अगर कोर्ट में आएगा तो उसे सजा दी जाएगी. इसके साथ-साथ जो भी आदिवासियों की मदद की कोशिश कर रहे हैं, उन लोगों के भीतर डर पैदा करेगा."

HIMANSHU
Social Activist Himanshu Kumar

क्या है मामला

गौरतलब है कि साल 2009 में छतीसगढ़ के दंतेवाड़ा में पुलिस ने 16 माओवादियों के मारे जाने का दावा किया था. लेकिन इस मामले में घायल एक आदिवासी महिला ने दावा किया था कि सुरक्षाबलों ने गांव के निर्दोष लोगों की फर्जी मुठभेड़ में हत्या की है. इसके बाद इस मामले में दंतेवाड़ा में रहने वाले सामाजिक कार्यकर्ता हिमांशु कुमार और अन्य 12 लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी.

लगभग 13 सालों तक चली सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की जांच के लिए एसआईटी(SIT) गठित करने की भी बात कही थी. लेकिन स्वतंत्र जांच की बात टल गई. इसी साल अप्रैल में केंद्र सरकार की ओर से हिमांशु कुमार और अन्य याचिकाकर्ताओं के ख़िलाफ़ अदालत में आवेदन दिया गया और याचिकाकर्ताओं के ख़िलाफ़ ही सीबीआई या एनआईए(NIA) से जांच की मांग की गई थी.

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