मुझे अब सुप्रीम कोर्ट से कोई उम्मीद नहीं है - कपिल सिब्बल

राजनीतिक रूप से सीरियस मामले कुछ न्यायाधीशों को सौंपे जाते हैं और फैसले की पहले से ही भविष्यवाणी की जा सकती है - कपिल सिब्बल
 | 
ss
एक अदालत जहां समझौते की प्रक्रिया के माध्यम से न्यायाधीशों की स्थापना की जाती है एक अदालत जहां यह निर्धारित करने की कोई व्यवस्था नहीं है कि किस मामले की अध्यक्षता किस बेंच  द्वारा की जाएगी. जहां भारत के चीफ जस्टिस (Chief Justice Of India) तय करते हैं कि किस मामले को किस बेंच द्वारा और कब निपटाया जाएगा, वह अदालत कभी स्वतंत्र नहीं हो सकती.

नई दिल्ली - बीती 6 अगस्त को सीनियर एडवोकेट व पूर्व केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल(Kapil Sibal) ने सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसलों पर नाराजगी जाहिर करते हुए पीपल्स ट्रिब्यूनल में कहा," मुझे इस संस्था(Supreme Court) से कोई उम्मीद नहीं बची है." कपिल सिब्बल नई दिल्ली में सीजेएआर(Campaign For Judicial Accountability And Reforms), पीपल्स यूनियन फ़ॉर सिविल लिबर्टीज( PUCL) व नेशनल अलायंस ऑफ पीपल्स मूवमेंट(NAPM) द्वारा आयोजित "नागरिक स्वतंत्रता के न्यायिक रोलबैक(Judicial Rollback Of Civil Liberties)" प्रोग्राम में बोल रहे थे. ट्रिब्यूनल का फोकस 2002 के गुजरात दंगों व 2009 में छत्तीसगढ़ में आदिवासियों के नरसंहार के मामले में सुप्रीम कोर्ट के हाल में किए गए फैसले पर था.

सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने गुजरात दंगों में राज्य के अधिकारियों व नेताओं को SIT(Special Investigation Team) द्वारा क्लीन चिट को चुनौती देने वाली जाकिया जाफरी की याचिका को खारिज करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले की आलोचना की और और पीएमएलए( Prevention Of Money Laundering Act, 2002) के प्रावधानों को बरकरार रखने के फैसले की भी आलोचना की, जो ईडी(Enforcement Directorate) को व्यापक अधिकार देते हैं. कपिल सिब्बल दोनों ही मामलों में याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए थे.

उन्होंने अपने संबोधन की शुरुआत यह कहते हुए की कि भारत की सुप्रीम कोर्ट में 50 साल तक प्रैक्टिस करने के बाद मुझे इस इंस्टीट्यूशन में उनकी कोई उम्मीद नहीं बची है. उन्होंने कहा कि भले ही एक ऐतिहासिक फैसला पारित होता है लेकिन शायद ही कभी जमीनी हकीकत बदलती है. कपिल सिब्बल ने IPC की धारा 377 को असंवैधानिक घोषित करने के फैसले का उदहारण देते हुए कहा कि फैसला सुनाए जाने के बावजूद जमीनी हालात जस के तस पड़े हैं. ट्रिब्यूनल में बोलते हुए सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने आगे कहा कि आजादी तभी संभव है जब हम अपने अधिकारों के लिए खड़े हो और उस आजादी के लिए मांग करें.

बता दें कि सिब्बल ने गुजरात दंगों(2002 Gujarat Riots) में मारे गए गुजरात के कांग्रेसी सांसद एहसान जाफरी(Ehsaan Jafri) की विधवा जाकिया जाकिया जाफरी(Zakia Jafri) का सुप्रीम कोर्ट में केस लड़ा था. उन्होंने कहा कि अदालत में बहस करते हुए उन्होंने केवल सरकारी दस्तावेजों और ऑफिसियल रिकॉर्ड को रिकॉर्ड किया और कोई निजी दस्तावेज नहीं रखा था. उन्होंने कहा कि दंगे के दौरान कई घर जला दिए गए. जाहिर सी बात है कि खुफिया एजेंसी आग को बुझाने के फायर ब्रिगेड की टीम को बुलाएगी. 

हालांकि सीनियर एडवोकेट सिब्बल(Kapil Sibal) के अनुसार खुफिया(Intelligence Agency) के डाक्यूमेंट्स से पता चलता है कि किसी फायर ब्रिगेड ने फोन नहीं उठाया. उन्होंने कहा कि है यह तर्क दिया था कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त SIT ने ठीक से पूछताछ नहीं की कि फायर ब्रिगेड ने कॉल क्यों नहीं उठाया. इसका मतलब यह हुआ कि SIT(Special Investigation Team For Gujrat Riots) ने अपना काम ठीक से नहीं किया.

सिब्बल ने कहा कि इन सबमिशन के बावजूद सुप्रीम कोर्ट ने कुछ नहीं किया. उन्होंने कहा कि SIT ने कई लोगों को केवल उन लोगों के बयान के आधार पर छोड़ दिया गया जो खुद आरोपों का सामना कर रहे थे. हालांकि इन पहलुओं के बारे में सुप्रीम कोर्ट को बताया गया था लेकिन कोर्ट ने कुछ नहीं किया. उन्होंने कहा कि लॉ का कोई सामान्य स्टूडेंट जानता है कि किसी भी आरोपी को उसके बयानों के आधार पर छोड़ा नहीं जा सकता.

उन्होंने कहा कि राजनीतिक रूप से सीरियस मामले कुछ न्यायाधीशों को सौंपे जाते हैं और फैसले की पहले से ही भविष्यवाणी की जा सकती है. ज्यूडिशरी की लिबर्टी पर बात करते हुए सिब्बल ने कहा - एक अदालत जहां समझौते की प्रक्रिया के माध्यम से न्यायाधीशों की स्थापना की जाती है एक अदालत जहां यह निर्धारित करने की कोई व्यवस्था नहीं है कि किस मामले की अध्यक्षता किस बेंच  द्वारा की जाएगी. जहां भारत के चीफ जस्टिस (Chief Justice Of India) तय करते हैं कि किस मामले को किस बेंच द्वारा और कब निपटाया जाएगा, वह अदालत कभी स्वतंत्र नहीं हो सकती.

उन्होंने सुप्रीम कोर्ट द्वारा हाल ही में पीएमएलए(PMLA)  पर दिए गए फैसले पर संबोधित करते हुए कहा कि ईडी बेहद खतरनाक हो गया है. उसने व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सीमाओं को पार कर लिया है. इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट के दृष्टिकोण की आलोचना करते हुए उन्होंने कहा कि मामले की अध्यक्षता करने वाले न्यायाधीश ने कहा था कि पीएमएलए दंड देने के लिए नहीं बना है. जबकि अपराध शब्द सहित PMLA के तहत अपराध से प्राप्त संपत्ति की परिभाषा प्रकृति के दंडदेने वाली है. उन्होंने पूछा," सुप्रीम कोर्ट इस तरह के कानूनों को बरकरार रखता है तो आप उस पर भरोसा रख सकते हैं"

कपिल सिब्बल ने IPC की धारा 120B का जिक्र करते हुए कहा कि जब कोई किसी निर्दोष व्यक्ति को फंसाना चाहता है तो उसके खिलाफ IPC की धारा 120B यानी अपराधिक साजिश के तहत मामला बनता है. उन्होंने बताया कि ऐसे आरोपी व्यक्तियों को तब तक जमानत नहीं मिलती जब तक वह अपनी बेगुनाही साबित नहीं कर देते.

सिब्बल ने आगे कहा कि कप्पन सिद्दीकी(Kappan Siddiqui) उसके खिलाफ क्या है? वह 2020 से जेल में बंद है और चूंकि उस पर IPC की धारा 120B के तहत आरोप लगाया गया है इसलिए उसे जमानत नहीं दी जाएगी. उन्होंने कहा," मैं ऐसी अदालतों के बारे में बात नहीं करना चाहता. जहां मैंने 50 साल तक प्रैक्टिस की है लेकिन समय आ गया है. अगर हम जैसे लोग बात नहीं करेंगे तो कौन करेगा? वास्तविकता यह है कि कोई भी संवेदनशील मामला जो हम जानते हैं. उसमें समस्या है कि मुट्ठी भर न्यायाधीशों के सामने रखा जाता है

Latest News

Featured

Around The Web