नूपुर शर्मा को सुप्रीम कोर्ट की फ़टकार के बाद पूर्व जज व नौकरशाहों ने पत्र लिख कहा- कोर्ट ने लक्ष्मण रेखा पार कर दी

माननीय सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता के मौलिक अधिकार की रक्षा करने के बजाय याचिका का संज्ञान लेने से ही इनकार कर दिया - पूर्व जज व नौकरशाह
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NUPUR
हम इस देश के नागरिक के तौर पर यह मानते हैं कि किसी भी देश का लोकतंत्र तब तक बरकरार रहेगा, जब तक उसकी सभी संस्थाएं संविधान के अनुसार अपने कर्तव्यों का पालन करती रहेंगी.

नई दिल्ली - हाल ही में पूर्व महिला बीजेपी नेता नूपुर शर्मा(Nupur Sharma) का मोहम्मद पैगंबर(Prophet Muhammad) को लेकर विवादित बयान के बाद भड़का विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है. उदयपुर हत्याकांड(Udaipur Murder Case) इसकी विवाद की चरमसीमा है जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट(Supreme Court) ने नूपुर शर्मा को फटकार भी लगाई. लेकिन सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी से कुछ पूर्व जज(Judges) व नौकरशाह(Bureaucrats) नाराज दिख रहे हैं. 117 पूर्व जजों, नौकरशाहों व आर्मी के रिटायर जवानों(Retired Army Personnel) ने सुप्रीम कोर्ट के चीफ़ जस्टिस(Chief Justice of India) को पत्र लिख अपना विरोध व्यक्त किया है. जिसमें सुप्रीम कोर्ट के 2 जजों की टिप्पणी को लक्ष्मण रेखा को लांघने के बराबर करार दिया है.

पूर्व जजों व नौकरशाहों ने चीफ जस्टिस एनवी रमना(CJI NV Ramana) को पत्र लिख कहा,"हम इस देश के नागरिक के तौर पर यह मानते हैं कि किसी भी देश का लोकतंत्र तब तक बरकरार रहेगा, जब तक उसकी सभी संस्थाएं संविधान के अनुसार अपने कर्तव्यों का पालन करती रहेंगी. (लेकिन) सुप्रीम कोर्ट के दो जजों की हालिया टिप्पणियों ने लक्ष्मण रेखा को पार कर दिया है, जिस वजह से हम यह खुला खत लिखने को मजबूर हुए हैं.'

इन सभी ने अपने संयुक्त बयान में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों को दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए आगे लिखा," माननीय सुप्रीम कोर्ट के दो जजों - जस्टिस सूर्यकांत(Justice Suryakant) और जस्टिस जेबी पारदीवाला(Justice JB Padriwala) - की बेंच ने नूपुर शर्मा की याचिका की सुनवाई के दौरान दुर्भाग्यपूर्ण टिप्पणियां कीं. इससे देश के अंदर और बाहर लोगों को तगड़ा झटका लगा है. सभी समाचार चैनलों पर प्रसारित हुईं ये टिप्पणियां न्यायिक लोकाचार के बिलकुल भी अनुरूप नहीं हैं...इन टिप्पणियों का याचिका में उठाए गए मुद्दे से कोई संबंध नहीं है, इसलिए ऐसा करके न्याय करने के सभी सिद्धांतों का अभूतपूर्व तरीके से उल्लंघन किया गया है.

पूर्व जजों, नौकरशाहों व सेना के रिटायर्ड जवानों ने नूपुर शर्मा की याचिका ख़ारिज किए जाने पर भी सवाल उठाए हैं. उन्होंने पत्र में लिखा है,"माननीय सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता के मौलिक अधिकार(Moral Rights) की रक्षा करने के बजाय याचिका का संज्ञान लेने से ही इनकार कर दिया. माननीय कोर्ट ने याचिकाकर्ता(Petitioner) को याचिका वापस लेने और हाईकोर्ट से संपर्क करने के लिए मजबूर किया. जबकि यह बात अच्छी तरह से पता है कि अन्य राज्यों में दर्ज मुकदमों को स्थानांतरित करना हाईकोर्ट के अधिकार क्षेत्र से बाहर है. कोई भी यह समझ नहीं पा रहा है कि नूपुर शर्मा के मामले को अलग आधार पर क्यों देखा गया. सुप्रीम कोर्ट के इस तरह के दृष्टिकोण की प्रशंसा नहीं की जा सकती, बल्कि इस सबसे सर्वोच्च अदालत की पवित्रता और उसका सम्मान प्रभावित हुआ है.'

क्या कहा था सुप्रीम कोर्ट ने नूपुर शर्मा को

एक निजी टीवी चैनल टाइम्स नाउ(Times Now) को ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर चल रही डिबेट में पैगंबर मोहम्मद को लेकर विवाद टिप्पणी के बाद बीजेपी से निलंबित हुई नूपुर शर्मा ने देशभर में उनके ख़िलाफ़ दर्ज़ हुई दर्जनों एफआईआर(FIR) को दिल्ली ट्रांसफर करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में एक अर्जी दाखिल की थी. बीते हफ्ते इस पर जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जेबी पारदीवाला की कॉन्सटीयूशनल बेंच(Constitutional Bench) ने सुनवाई की. बेंच ने नूपुर शर्मा को जमकर फटकार लगाते हुए नूपुर को उदयपुर में हुई कन्हैयालाल की हत्या(Kanhaiya Lal murder) के लिए जिम्मेदार बताया है. कोर्ट ने कहा कि नूपुर शर्मा के इस बयान से देश में हिंसा भड़की और इस समय देश में जो हिंसक घटनाएं हो रही हैं, उन सबके लिए सिर्फ़ और सिर्फ नूपुर ही जिम्मेदार हैं. सुप्रीम कोर्ट का कहना था कि नूपुर शर्मा को अपने विवादित बयान के लिए पूरे देश से माफी मांगनी चाहिए.

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