पेगासस जासूसी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा - मोदी सरकार ने जांच में सहयोग नहीं किया

नई दिल्ली - पेगासस जासूसी मामले में बनाए गए जांच पैनल ने सुप्रीम कोर्ट में बड़ी जानकारी दी है. वीरवार, 25 अगस्त को हुई अहम सुनवाई में पैनल ने कहा कि उसे जांच से जुड़े 29 मोबाइल फोनों में पेगासस स्पाइवेयर(Pegasus Spyware) मिलने के पक्के सबूत नहीं मिले हैं. एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक पैनल ने बताया कि फोरेंसिक एनालिसिस में 5 मोबाइल फोन किसी मेलवेयर से प्रभावित पाए गए हैं लेकिन ये साफ नहीं हो पाया है कि ये मेलवेयर पेगासस ही था.
जांच पैनल ने अपनी शिकायत अपनी जांच रिपोर्ट सीलबंद लिफाफे में कोर्ट को सौंप दी. इस दौरान चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया एन वी रमन आने सरकार को लेकर टिप्पणी करते कहा कि सरकार ने जांच समिति के साथ सहयोग नहीं किया. हालांकि उन्होंने यह जानकारी डिस्क्लोज नहीं करने के अपने स्टैंड को दोहराया कि सरकार ने देश के नागरिकों की जासूसी करने के लिए पेगासस का इस्तेमाल किया या नहीं.
इस मामले की जांच करने वाले पैनल के अध्यक्ष सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज आरवी रविचंद्रन हैं. सुप्रीम कोर्ट ने यह जांच करने के लिए पैनल का गठन किया था कि क्या देश के पत्रकारों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और नेताओं की जासूसी करने के लिए पेगासस स्पाइवेयर उनके मोबाइल ही सिस्टम में डाला गया था?
जुलाई महीने में पैनल ने अपनी फाइनल रिपोर्ट सबमिट कर दी थी. जिसे आज सीलबंद लिफाफे में कोर्ट को सौंप दिया गया. बताया गया है कि जस्टिस रविचंद्रन ने रिपोर्ट में नागरिकों की सुरक्षा, आगे की कार्यवाही, जिम्मेदारी, निजी सुरक्षा में सुधार के लिए कानूनी संशोधन शिकायत निवारण के लिए सिस्टम बनाने जैसे मुद्दों पर अहम सुझाव दिए हैं.
इस मामले की अगली सुनवाई 4 हफ़्तों के बाद होगी. कोर्ट रजिस्ट्री इसके लिए तारीख तय करेगी.
क्या है मामला
दरअसल कंप्यूटर मोबाइल के सॉफ्टवेयर सिस्टम को करेक्ट करने के लिए जो सॉफ्टवेयर बनाया जाता है उसे मेलवेयर कहते हैं. इसके जरिए हैकिंग कर कंप्यूटर या मोबाइल सिस्टम को डैमेज किया जा सकता है या उनमें मौजूद सारी जानकारी हासिल की जा सकती है. दुनियाभर में इन मेलवेयर का इस्तेमाल छोटे-बड़े संस्थानों, व्यक्तिगत या सरकारी डिजिटल प्लेटफॉर्म, वेबसाइट को हैक करने या उनकी जानकारी हासिल करने के लिए किए जाता है.
पेगासस एक ऐसा ही मेलवेयर(Malware) है जिसे कई जानकार दुनिया का सबसे खतरनाक जासूसी मेलवेयर बताते हैं. पेगासस इजराइल की एक साइबर इंटेलिजेंस कंपनी NSO बनाती है. दुनियाभर में इस कंपनी पर आम से लेकर खास लोगों तक के मोबाइल की जासूसी करने का आरोप लगता रहा है.
भारत में कंपनी और इस मेलवेयर का नाम 18 जुलाई 2021 चर्चा में आया था. दुनिया के 17 अखबारों और न्यूज पोर्टल पर पेगासस को लेकर एक प्रोजेक्ट के तहत खबरें छापी गई थीं. बताया गया कि इजरायल(Israel) में सर्विलांस का काम करने वाली प्राइवेट कंपनी के डेटाबेस में दुनिया के हजारों लोगों के मोबाइल नंबर मिले हैं.
पेगासस का डेटाबेस लीक हुआ और सबसे पहले फ्रांस की नॉन-प्रॉफिट मीडिया कंपनी फॉरबिडन स्टोरीज(Forbidden Stories, a non-profit media company) व मानवाधिकार संस्था एमनेस्टी इंटरनेशनल(Amnesty International) को मिला. इन दोनों ही संस्थाओं ने ये डेटा दुनिया के 17 मीडिया हाउस के साथ शेयर किया. भारत में डेटा द वायर को मिला. इस पूरे अभियान को पेगासस प्रोजेक्ट(Pegasus Project) का नाम दिया गया.
'द वायर'(The Wire) के मुताबिक पेगासस डेटाबेस(Pegasus Database) में 300 भारतीयों के मोबाइल नंबर पाए गए. कहा गया कि इनमें 40 भारतीय पत्रकारों, 3 बड़े विपक्षी नेताओं, मौजदा सरकार के दो मंत्रियों, एक सार्वजनिक पद पर बैठे व्यक्ति व कई सिक्योरिटी एजेंसियों के अधिकारियों और कुछ कारोबारियों के नंम्बर शामिल थे.
सूची में सबसे बड़ा नाम कांग्रेस नेता राहुल गांधी(Rahul Gandhi Pegasus) का आया. उनके दो मोबाइल नंबर पेगासस के संभावित टारगेट में थे. रिपोर्ट के अनुसार उनके 5 दोस्तों व करीबियों के नंबर भी इसी लिस्ट में हैं.
मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा. कोर्ट ने कहा कि सरकार राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर हर बार छूट नहीं ले सकती. ऐसा कहते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की जांच के लिए तीन सदस्यीय कमेटी का गठन किया गया था. जिसकी अध्यक्षता सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस आरवी रविचंद्रन को दी गई.