Supreme Court - विवाहित महिलाओं की तरह अविवाहित लड़कियों को भी गर्भपात के अधिकार

सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक अहम फैसले में 24 हफ्ते की प्रेग्नेंट अविवाहित महिला को अबॉर्शन की इजाजत दी है
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नियमों की व्याख्या में कहा गया है कि अगर अनवांटेड प्रेग्नेंट है और वह महिला या फिर उनके पार्टनर द्वारा इस्तेमाल उपाय के फेल होने के कारण हुआ है तो वह अनचाहा गर्भ माना जाएगा. यहां पार्टनर शब्द का इस्तेमाल है और यह दिखाता है कि कानून में अविवाहित महिला को भी कवर किया गया है और यह संविधान के अनुच्छेद-14 के मद्दनेजर है.

नई दिल्ली - देश की सर्वोच्च न्यायालय(Apex Court) ने शुक्रवार 22 जुलाई को बड़ा फैसला सुनाया है. सुप्रीम कोर्ट(Supreme Court) ने अपने एक अहम फैसले में 24 हफ्ते की प्रेग्नेंट अविवाहित महिला को अबॉर्शन की इजाजत दी है. इसके साथ ही कोर्ट ने एम्स के मेडिकल बोर्ड के गठन का आदेश दिया है. जोकि इस बात को देखेगा की अबॉर्शन से महिला को जान का खतरा तो नहीं है. मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट में अगर यह पाया जाता है कि अबॉर्शन से जान का खतरा नहीं है तो अबॉर्शन कराया जाएगा. बता दें कि इससे पहले दिल्ली हाईकोर्ट(High Court) ने अविवाहित महिला को अबॉर्शन(Abortion) की इजाजत नहीं दी थी. महिला लिव इन रिलेशनशिप(Live In Relationship) में थी और आपसी सहमति से बनाये गए सम्बंध में प्रेग्नेंट हुई थी.

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Justice Dhananjaya Y. Chandrachud

शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के नेतृत्व वाली सविंधानिक बेंच ने अपने फैसले में कहा," दिल्ली हाई कोर्ट ने मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रिगनेंसी एक्ट(Medical Termination of Pregnancy Act 2021) के प्रावधान को गैर जरूरी तौर पर प्रतिबंधात्मक बताने का मत लिया और महिला को अबॉर्शन की इजाजत देने से इनकार कर दिया." सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रिगनेंसी एक्ट 2021 में जो बदलाव किया गया है उसके तहत एक्ट में महिला और उसके पार्टनर शब्द का इस्तेमाल किया गया है. वहां पार्टनर शब्द का इस्तेमाल है न कि पति शब्द का. ऐसे में एक्ट के दायरे में अविवाहित महिला भी कवर होती है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता महिला को इसलिए एक्ट के लाभों से वंचित नहीं किया जा सकता है कि वह अविवाहित महिला है.

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़(Dhananjaya Y. Chandrachud) ने कहा," संसद ने जो कानून बनाया है उसका मकसद सिर्फ मैरिटल रिलेशनशिप(Maritial Relationship)  से अनचाही प्रिगनेंसी तक मामला सीमित नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता महिला अनवांटेड प्रेगनेंसी से पीड़ित महसूस कर रही है और यह कानून की भावना के खिलाफ है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जो कानून बनाया गया है उसका मकसद पूरा नहीं होगा अगर विवाहित और अविवाहित में भेदभाव किया जाएगा."

गौरतलब है कि दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा था कि याचिकाकर्ता अविवाहित महिला हैं और सहमति से संबंध के कारण प्रेगनेंट हुई हैं. गर्भ 23 हफ्ते का है और वह मेडिकल प्रिगनेंसी ऑफ टर्मिनेशन एक्ट के तहत कवर नहीं हो रही हैं. मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी रूल्स के मुताबिक जो कानूनी बदलाव किए गए हैं उसमें एक्ट की धारा -3 के व्याख्या को भी देखना होगा जो एक से लेकर तीन तक है. साथ ही विवाहित शब्द को बदले जाने के मामले में भी व्याख्या की गई है. कोर्ट विधायिका के कानून के मकसद के मामले में अविवेकहीन नहीं हो सकता है.

नियमों की व्याख्या में कहा गया है कि अगर अनवांटेड प्रेग्नेंट(Unwanted Pregnancy) है और वह महिला या फिर उनके पार्टनर द्वारा इस्तेमाल उपाय के फेल होने के कारण हुआ है तो वह अनचाहा गर्भ माना जाएगा. यहां पार्टनर शब्द का इस्तेमाल है और यह दिखाता है कि कानून में अविवाहित महिला को भी कवर किया गया है और यह संविधान के अनुच्छेद-14 के मद्दनेजर है.

सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश जारी कर कहा है कि एम्स(All India Institute of Medical Sciences) डायरेक्टर एक मेडिकल बोर्ड(Medical Board) का गठन करें जो 22 जुलाई को महिला के स्वास्थय की जांच करेगा और यह देखेगा कि महिला के गर्भपात से उसको जीवन का कोई खतरा तो नहीं है. अगर इस निष्कर्ष पर मेडिकल बोर्ड पहुंचता है कि 24 हफ्ते के गर्भ के टर्मिनेशन से कोई खतरा नहीं है तो महिला का प्रिगनेंसी टर्मिनेट कराया जाए. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है ताकि कानून की विस्तार से व्याख्या हो सके.

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