पत्नी ने रिश्तेदारों के सामने पति को 'नामर्द' कहा, कोर्ट ने कही बड़ी बात

हाई कोर्ट ने धारवाड़ फैमिली कोर्ट(Dharwad Family Court) के फैसले को खारिज कर दिया और कहा, "पत्नी ने अपने आरोपों को साबित करने के लिए कोई सबूत पेश नहीं किया
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IMPOTENT ALLEGATION ON HUSBAND
उसकी पत्नी ने वैवाहिक जीवन के लिए शुरू के कुछ महीनों सहयोग दिया, लेकिन उसके बाद उसका व्यवहार बदल गया। वो घर के काम करने से भी मना कर देती है। उसकी पत्नी ने बार-बार अपने रिश्तेदारों से कहा कि वो संबंध बनाने में असमर्थ है। इस बात से वो अपमानित महसूस करता है और इसलिए उसने अपनी पत्नी से अलग होने की मांग की है।

बेंगलुरु: पति-पत्नी में एक दूसरे को लेकर विश्वास की कमी समाज का नासूर बन गई है। दहेज़ उत्पीड़न(Dowry Harassment) से लेकर यौन उत्पीड़न(Sexual assault) के मामले शादी-शुदा जिंदगी में दरार पैदा कर रहे हैं। लेकिन इन सब के बीच मानसिक उत्पीड़न का ज़िक्र कम ही होता है जोकि ज़्यादा तकलीफ़ देता है।

ऐसे ही मामले में सुनवाई करते हुए 15 जून को कर्नाटक हाईकोर्ट(Karnataka High Court) ने कहा कि अगर पत्नी की तरफ से बिना किसी सबूत के पति को नामर्द या नपुंसक(wife called Impotent to her Husband) कहा जाता है तो उसे मानसिक उत्पीड़न(Mentally Harassment) की श्रेणी में माना जायेगा। कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों में पति अपनी पत्नी से अलग होने की याचिका दायर कर सकता है। मानसिक उत्पीड़न को इसके लिए आधार बनाया जा सकता है।

क्या है मामला

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु(Bengaluru) के धारवाड़ में रहने वाले एक व्यक्ति ने कर्नाटक हाई कोर्ट में अपनी पत्नी से अलग होने की एक याचिका दाखिल की थी। ये याचिका धारवाड़ फैमिली कोर्ट के एक आदेश के खिलाफ दायर की गई थी। न्यायाधीश सुनील दत्त यादव(Justice Sunil Datt Yadav) व केएस हेमलेखा(Justice K S Hema Lekha) की बेंच ने पति के द्वारा दायर में कहा कि धारवाड़ कोर्ट के उस आदेश को रद्द किया जाए, जिसमें व्यक्ति की तलाक अर्जी को खारिज कर दिया गया था। 

हाईकोर्ट ने महिला के आरोपों के बारे में कहा,"पत्नी ने आरोप लगाया है कि उसका पति शादी के दायित्वों को पूरा नहीं कर रहा है और यौन गतिविधियों(Sexual Activities) में असमर्थ है। उसका पति अक्सर उससे दूर रहता है। लेकिन वो पति के साथ रहना चाहती है। इसलिए उसे संदेह है कि उसका पति नपुसंक है।"

वहीं याचिकाकर्ता के वकील की तरफ से कहा गया, "उसकी पत्नी ने वैवाहिक जीवन के लिए शुरू के कुछ महीनों सहयोग दिया, लेकिन उसके बाद उसका व्यवहार बदल गया। वो घर के काम करने से भी मना कर देती है। उसकी पत्नी ने बार-बार अपने रिश्तेदारों से कहा कि वो संबंध बनाने में असमर्थ है। इस बात से वो अपमानित महसूस करता है और इसलिए उसने अपनी पत्नी से अलग होने की मांग की है।"

कर्नाटक हाई कोर्ट ने धारवाड़ फैमिली कोर्ट(Dharwad Family Court) के फैसले को खारिज कर दिया और कहा, "पत्नी ने अपने आरोपों को साबित करने के लिए कोई सबूत पेश नहीं किया। इसलिए ये बेबुनियाद आरोप पति की गरिमा को ठेस पहुचाएंगे। पति द्वारा बच्चे पैदा करने में असमर्थता का आरोप मानसिक उत्पीड़न के समान है।"

बता दें कि न्यायाधीश सुनील दत्त यादव व हेमलेखा की दो सदस्यीय पीठ ने याचिकाकर्ता को महिला की दूसरी शादी होने तक उसे हर महीने आठ हजार रुपये भत्ता देने का आदेश दिया है। याचिकाकर्ता और महिला की साल 2013 में शादी हुई थी। सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता ने मेडिकल टेस्ट के लिए भी तैयार होने की बात कही। लकिन महिला याचिकाकर्ता पर लगाए गए नपुंसकता के आरोपों को साबित करने में सफल नहीं हो पाई।

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