सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, आर्य समाज से जारी विवाह प्रमाण पत्र को कानूनी मान्यता नहीं

सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस बी वी नागरत्ना की पीठ ने कहा कि आर्य समाज का काम और अधिकार क्षेत्र विवाह प्रमाण पत्र जारी करना नहीं है।

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सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि विवाह प्रमाण पत्र जारी करने का काम सक्षम प्राधिकरण करते हैं। तो वहीं युवक का कहना था कि लड़की ने अपनी मर्जी और अधिकार से विवाह का फैसला लिया है।

नई दिल्ली- देश की सबसे बड़ी अदालत यानि सुप्रीम कोर्ट ने आर्य समाज की और से विवाह प्रमाण पत्र को कानूनी मान्यता देने से साफ इनकार कर दिया है। शुक्रवार को प्रेम विवाह से संबंधित एक मामले में कोर्ट ने ये फैसला सुनाया है। जस्टिस अजय रस्तोगी और बीवी नागरत्ना की पीठ ने कहा कि आर्य समाज का काम और अधिकार क्षेत्र विवाह प्रमाण पत्र जारी करना नहीं हैं। अदालत का कहना है कि विवाह प्रमाण पत्र जारी करने का काम सक्षम प्राधिकरण करते हैं। अदालत के सामने असली प्रमाण पत्र पेश किया जाना चाहिए।

बता दें कि इस मामले में घरवालों ने अपनी लड़की को नाबालिग बताते हुए अपहरण और रेप की एफआईआर दर्ज करवाई थी। लड़की के घर वालों ने युवक के खिलाफ विभिन्न धाराओं के तहत मामला दर्ज किया था। वहीं युवक का कहना था कि लड़की बालिग है, उसने अपनी मर्जी और अधिकार से विवाह का फैसला लिया और आर्य समाज मंदिर में विवाह हुआ है।

युवक ने मध्य प्रदेश भारतीय आर्य प्रतिनिधि सभा की और से जारी विवाह प्रमाण पत्र भी पेश किया। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे मानने से पूरी तरह से इनकार कर दिया। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अप्रैल में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करने की हामी भर दी थी, तब जस्टिस केएम जोसेफ और जस्टिस हृषिकेश रॉय ने आर्य प्रतिनिधि सभा से स्पेशल मैरिज एक्ट 1954 की धाराओं 5, 6, 7 और 8 प्रावधानों को अपनी गाइड लाइन में एक माह के भीतर अपने नियमन में शामिल करने के आदेश दिए।

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