हाईकोर्ट ने सरकार से पूछा कि नालों की सफ़ाई के लिए मशीनों व सेफ़्टी गियर का उपयोग क्यों नहीं किया जा रहा है?

जानिए क्या कहता है 2013 में बना "मैन्युअल स्कैवेनजिंग एंड कंस्ट्रक्शन ऑफ लैट्रिनस" एक्ट
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MANUAL SCVANGING
22 मार्च को लोकसभा में एक सवाल के जवाब में सामाजिक न्याय और अधिकारिता राज्यमंत्री रामदास अठावले ने बताया कि बीते पांच सालों में भारत में सीवर और सेप्टिक टैंक की सफाई के दौरान 325 सफाई कर्मियों की मौत हुई है।

इलाहाबाद: एक तरफ़ टेक्नोलॉजी की मदद से इंसान चांद पर जा रहा है तो दूसरी तरफ़ वही इंसान बिना किसी टेक्नोलॉजी व उपकरणों के दूसरों के मल-मूत्र से भरे सीवर में उतकर कर उसे साफ़ करता है। हम तमाम सुविधाओं की बात करते हैं लेकिन सीवर में सफ़ाई के लिए हमारे पास कोई ठोस नीति नहीं है जिससे आये दिन ज़हरीली गैस से होने वाली सफाईकर्मियों की मौत को रोका जा सके। 

बीते 22 मार्च को संसद में सामाजिक न्याय व अधिकारिता राज्यमंत्री रामदास अठावले ने बताया था कि बीते पांच सालों में सीवर व सैप्टिक टैंक की सफाई के दौरान 325 सफाईकर्मियों की मौत हुई है। 

22 मार्च को लोकसभा में एक सवाल के जवाब में सामाजिक न्याय और अधिकारिता राज्यमंत्री रामदास अठावले ने बताया कि बीते पांच सालों में भारत में सीवर और सेप्टिक टैंक की सफाई के दौरान 325 सफाई कर्मियों की मौत हुई है।

आंकड़ों के मुताबिक सफाई कर्मियों की सबसे ज्यादा मौतें उत्तर प्रदेश और उसके बाद दिल्ली में हुई हैं। देश में सबसे बड़ी आबादी वाले राज्य यूपी में इस दौरान 52, तो महज दो करोड़ की आबादी वाले राज्य दिल्ली में 42 सफाई कर्मियों की मौत हुई हैं।

अठावले ने बताया कि साल 2017 में 93, 2018 में 70, 2019 में 118, 2020 में 19 और 2021 में 24 सफाई कर्मियों की मौत हुईं है।

मंगलवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार से पूछा कि राज्य में नालों की सफाई के लिए मशीनों व सुरक्षात्मक गियर का उपयोग क्यों नही किया जा रहा है।
चीफ़ जस्टिस राजेश बिंदल व जस्टिस जे जे मुनीर की बैंच ने सू-मोटो यानि(स्वतः संज्ञान) पर विचार कर रही थी, जिसमें कोर्ट ने एक न्यूज पर ध्यान दिया था, जोकि 24 मई 2022 को अखबारों में प्रकाशित हुआ थी।

अखबारों में दिखाया गया था कि बिना किसी सुरक्षा कवच के, नगर निगम द्वारा या ठेकेदार सफाईकर्मियों से सीवर साफ़ करवा रहे हैं। इससे पहले कोर्ट ने राज्य के विभिन्न अथॉरिटी को नोटिस जारी किया था।

अब 31 मई को राज्य सरकार की ओर से पेश हुए एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ने अदालत के समक्ष प्रस्तुत किया कि स्थिति से निपटने के लिए एक रोडमैप तैयार किया जाएगा ताकि मानसून की शुरुआत से पहले नालों की सफाई की पूरी प्रक्रिया पूरी हो जाए। इसके अलावा नगर निगम की ओर से एडवोकेट अनूप त्रिवेदी द्वारा प्रतिनिधित्व किया गया और एडवोकेट विभु राय द्वारा सहायता प्रदान की गई। एडवोकेट अनूप ने कोर्ट के समक्ष नगर निगम से प्राप्त निर्देशों के साथ कुछ संबंधित तस्वीरें रखीं, तो कोर्ट ने खेद व्यक्त किया कि जिस तरह की स्थिति है, 21वीं सदी में इस तरह की तस्वीरों की उम्मीद नहीं की जा सकती।

कोर्ट ने आदेश जारी कर कहा,"उन्हें यह भी बताना है कि जहां भी संभव हो नालों की सफाई के लिए मशीनों का उपयोग क्यों नहीं किया जा रहा है, जैसा कि कई तस्वीरों से स्पष्ट है कि खुली नालियां मुख्य सड़कों या खुले स्थानों के पास स्थित हैं, जहां मशीनों का आसानी से इस्तेमाल किया जा सकता है। कुछ तस्वीरों में, कार्यकर्ता किसी भी सुरक्षात्मक गियर का उपयोग किए बिना, लगभग छाती-गहरे पानी में, नाले में गंदगी से लदे हुए हैं।"

क्या कहता है "मैन्युअल सकैवेंजिंग एंड कंस्ट्रक्शन ऑफ ड्राई लैट्रिनस" एक्ट

साल 1993 में पारित 'मैन्युअल सकैवेंजिंग एंड कंस्ट्रक्शन ऑफ ड्राई लैट्रिनस एक्ट' के अनुसार निम्नलिखित प्रावधान हैं

● इस अधिनियम के तहत लोगों के मैनुअल स्कैवेंजर्स के रूप में रोज़गार पर प्रतिबंध लगा दिया गया अर्थात् यह अधिनियम हाथ से मैला ढोने को रोज़गार के तौर पर प्रतिबंधित करता है।

● इस अधिनियम में हाथ से मैला साफ कराने को संज्ञेय अपराध मानते हुए आर्थिक दंड और कारवास दोनों ही आरोपित करने का प्रावधान है।

● यह अधिनियम सूखे शौचालयों के निर्माण को भी प्रतिबंधित करता है।

●यह हाथ से मैला साफ करने वाले और उनके परिवार के पुनर्वास की व्यवस्था भी करता है और यह ज़िम्मेदारी राज्यों पर आरोपित करता है।

●इस अधिनियम के तहत मैनुअल स्कैवेंजर्स को प्रशिक्षण प्रदान करने, ऋण देने और आवास प्रदान करने की भी व्यवस्था की गई है।

मैनुअल स्कैवेंजर्स के पुनर्वास के लिये स्व-रोज़गार योजना 

●इस योजना के तहत मैनुअल स्केवेंजर्स के लिये 40,000 रुपए की एकल नकद सहायता प्रदान की जाती है।

●इसमें आजीविका परियोजनाएँ आरंभ करने के लिये रियायती दरों पर 15 लाख रुपए तक के ऋण की व्यवस्था की गई है।

●इस योजना में 3,25,000 रुपए तक की क्रेडिट से जुड़ी पूंजी सब्सिडी की भी व्यवस्था की गई।

हाथ से मैला ढोने को अपराध मानते हुए आर्थिक दंड व कारावास का प्रावधान है और फिर 2013 में सुप्रीम कोर्ट के इतिहासिक फैसले में बिना सुरक्षा सभी कर्मचारियों के लिए मास्क, हेलमेट, दस्ताने, स्पेशल शूट की व्यवस्था करना अधिकारी या ठेकेदार के दवारा अनिवार्य है। ऐसा न करना दंडात्मक अपराध है।

मैनहोल की ज़हरीली गैसों में मीथेन, हाइड्रोजन सल्फाइड, कार्बन मोनोऑक्साइड जैसी गैसें शामिल है। सफ़ाई कर्मचारियों में से 80 फ़ीसदी कर्मचारी रिटायरमेंट की उम्र से पहले ही मर जाते हैं।

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