ऑस्ट्रेलिया में स्वास्तिक चिन्ह पर लगा प्रतिबंध! जानें

क्या अलग है हिटलर का नाज़ी और हिंदुओ का स्वास्तिक चिन्ह?
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स्वास्तिक
ऑस्ट्रेलिया ने स्वास्तिक चिन्ह को हिटलर के नाजी वाद का प्रतीक मानते हुए बैन कर दिया है। वहीं कुछ हिंदू और जैन लोगो ने इस पर आपत्ति जताई है। ऐसे में ये सवाल उठता है की क्या नाज़ी स्वास्तिक चिन्ह और हिंदू स्वास्तिक चिन्ह अलग है। अगर ये अलग है तो इनमें क्या अंतर है। आइए जानते है स्वास्तिक चिन्ह का पूरा इतिहास और इनके बीच का अंतर।

दिल्ली.  स्वस्तिक को दो राज्यों ऑस्ट्रेलिया, साउथ वेल्स और विक्टोरिया में बैन कर दिया गया है। यहां किसी भी तरह से स्वास्तिक का निशान दिखाना अपराध माना जाएगा। इसके अलावा ऑस्ट्रेलिया के क्वींसलैंड और तस्मानिया ने भी स्वस्तिक पर प्रतिबंध लगाने की बात कही है।

हालांकि, इन दोनों राज्यों में, हिंदुओं, जैनियों और बौद्धों को धार्मिक उपयोग के लिए स्वस्तिक का उपयोग करने की अनुमति दी गई है।

इससे पहले जुलाई 2020 में फिनलैंड ने अपने वायु सेना के प्रतीक चिन्ह से स्वस्तिक को हटा दिया था। पिछले साल अमेरिकी राज्य मैरीलैंड में स्वस्तिक पर प्रतिबंध लगाने के लिए एक विधेयक पेश किया गया था। तब हिंदू संगठनों ने इसका कड़ा विरोध किया था।

सबसे पहले जानिए स्वस्तिक पर बैन लगाने का कारण...

न्यू साउथ वेल्स में यहूदी बोर्ड ऑफ डेप्युटीज के सीईओ डैरेन बार्क्स का कहना है कि स्वस्तिक नाजियों का प्रतीक है। यह हिंसा दिखाता है। कट्टरपंथी संगठन भी इसका इस्तेमाल भर्ती के लिए करते हैं। हमारे राज्य में लंबे समय से इसके प्रदर्शन पर रोक लगाने की बात चल रही थी. अब अपराधियों को मिलेगी सही सजा

वहीं हिंदू काउंसिल ऑफ ऑस्ट्रेलिया के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष सुरेंद्र जैन का कहना है कि लंबे समय तक हिंदू समुदाय अपने शांति के प्रतीक को दिखाने में सहज नहीं था, क्योंकि यह बुराई का प्रतीक बन गया था, लेकिन अब यह है ऐसा नहीं।

हिटलर की आत्मकथा 'मैं काम्फ' स्वस्तिक के नाजी प्रतीक बनने की कहानी कहती है

बात 1920 के आसपास की है। हिटलर अपनी नाजी सेना को मजबूत बना रहा था। तभी उनके दिमाग में झंडा बनाने का विचार आया। एक झंडा जो जर्मन लोगों और उसकी सेनाओं का प्रतिनिधित्व करता है। जिसे देख नाजियों में जोश भर गया। हिटलर की आत्मकथा 'मीन काम्फ' में इसका जिक्र है।

उसी वर्ष नाजी पार्टी को एक झंडा मिला। लाल रंग के इस झंडे के बीच में एक सफेद घेरा बनाया गया था। इस वृत्त के केंद्र में 45 अंश पर झुके हुए स्वास्तिक का प्रयोग किया गया था। इसे हकेंक्रेज़ कहा जाता था।

'मीन काम्फ' पुस्तक के अनुसार, यह ध्वज न केवल आदर्श जर्मन साम्राज्य का प्रतीक था, बल्कि नाजी लोगों के लिए एक बेहतर भविष्य का भी प्रतीक था। इस झंडे में प्रयुक्त लाल रंग नाजी आंदोलन और समाजवाद का प्रतिनिधित्व करता था। वहीं, सफेद रंग जर्मन राष्ट्रवाद का प्रतीक था। इसके अलावा स्वस्तिक नाजी लोगों के संघर्ष को दर्शाता था। इतना ही नहीं यह आर्य समाज की जीत का प्रतीक भी था।

स्वस्तिक को लेकर कब और क्यों शुरू हुआ विवाद

1933 और 1945 के बीच, जब जर्मनी में हिटलर की नाज़ी सेना सत्ता में आई, तो उसके सैनिकों ने हाथों में झंडे लिए नरसंहार शुरू कर दिया। इस दौरान लाखों यहूदियों की बेरहमी से हत्या कर दी गई। जिसे दुनिया प्रलय के नाम से जानती है। तब से इस प्रतीक चिन्ह को यहूदी विरोधी, नस्लवादी और फासीवादी माना जाने लगा।

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद यूरोप और दुनिया के दबाव में जर्मनी में इस नाजी ध्वज और स्वस्तिक जैसे प्रतीकों पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया था। इसके अलावा फ्रांस, ऑस्ट्रिया और लिथुआनिया में भी इसके इस्तेमाल पर रोक लगा दी गई थी।

स्वस्तिक क्या है इसका क्या अर्थ है

स्वास्तिक शब्द संस्कृत के स्वस्तिक शब्द से बना है। यह एक क्रॉस के आकार का है। इसकी चारों भुजाएँ 90 डिग्री पर मुड़ी हुई हैं। ये भुजाएँ एक ही दिशा में दक्षिणावर्त घूमती हैं। हिंदू धर्म में इसे समृद्धि और सौभाग्य का प्रतीक माना गया है। दुनिया के दूसरे देशों में जरूरत के हिसाब से अलग-अलग अर्थ निकाले जाते हैं।

इसकी शुरुआत कब और क्यों हुई?

स्वस्तिक कब शुरू हुआ, यह जानने के लिए हमने जब शोध किया तो दो तथ्य सामने आए...

पहला: हिस्ट्री एक्स्ट्रा वेबसाइट के मुताबिक सबसे पुराना स्वस्तिक 15 हजार साल पहले मिला था।

दूसरा: Archive.org के अनुसार, स्वस्तिक का उपयोग यूरोप के कई हिस्सों में 10,000 ईसा पूर्व से किया जाता रहा है।

1908 में यूक्रेन में खुदाई के दौरान एक हाथी दांत का दांत मिला था। उस पर एक पक्षी उकेरा गया था, जो स्वस्तिक जैसा दिखता था। हालांकि कोई नहीं जानता कि इसे सबसे पहले कैसे और किसने बनाया?

स्वस्तिक का प्रयोग मेसोपोटामिया की सभ्यता में भी किया जाता था

मेसोपोटामिया सभ्यता की शुरुआत के प्रमाण वर्तमान इराक में मिलते हैं। यह सभ्यता 3200 से 600 ईसा पूर्व तक थी। यानी आज से 2622 साल पहले। इस समय प्राचीन मेसोपोटामिया के सिक्कों पर बने होने के लिए स्वस्तिक पसंदीदा प्रतीक था।

इसके अलावा स्कैंडिनेविया के देवता थोर के हथौड़े में भी इसका प्रतीक मिलता है। यह बाएं हाथ का स्वस्तिक था।

क्या हिंदुओं और नाजी पार्टी का स्वास्तिक एक ही है?

हिंदू घरों में इस्तेमाल होने वाला स्वस्तिक नाजी स्वस्तिक यानी 'हकेनक्रेउज' से डिजाइन और अर्थ दोनों में अलग होता है। डिजाइन की बात करें तो हिंदुओं के घरों में बने स्वस्तिक के चारों कोनों में चार बिंदु होते हैं। ये बिंदु चार वेदों के प्रतीक हैं। जबकि नाजी ध्वज पर स्वस्तिक में ये बिंदु नहीं थे।

हिंदू धर्म में स्वस्तिक पीले और लाल रंगों का प्रयोग किया जाता है। जबकि नाजी ध्वज में सफेद रंग की गोलाकार पट्टी में काला स्वस्तिक होता है। इसे नाजी संघर्ष के प्रतीक के रूप में इस्तेमाल किया।

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