एक तमिल परिवार को ऑस्ट्रेलिया में रहने के लिए करना पड़ा चार साल का संघर्ष

1500 से अधिक दिन इमिग्रेशन सेंटर में रहने के बाद मिली मरुगप्पन परिवार को ऑस्ट्रेलिया में अस्थायी तौर पर रहने के अनुमति।
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युद्ध खत्म तो हो जाते हैं लेकिन पीछे रह जाते हैं गहरे ज़ख्म जो पीढ़ियां ख़राब कर देते हैं। लोग युद्ध के दौरान अपने घर, खेत-खिलहान छोड़ कर जान बचाने के लिए ग़ैर कानूनी तौर पर दूसरे देशों में शरण लेते हैं और फिर हमेशा के लिए शरणार्थी बन जाते हैं जिन्हें वहां के लोग कभी स्वीकार नही करते और वो रेफ्यूजी बनकर रह जाते हैं।

दुनिया: अब हाल ही में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने जब यूक्रेन पर हमले के आदेश दिए तो वहां के लोग जान बचाकर पड़ोसी देशों की ओर भागने लगे तो दुनियाभर में शरणार्थियों का मुद्दा एक बार गर्मा गया। जब भी दो देशों सेना आपस में लड़ती है या देश में गृह युद्ध छिड़ता है तो आम जनता बीच मे फंसती है हालांकि दोनों देशों के सैनिक भी उसी आम जनता में से होते हैं लेकिन हुक्मरान या तो देश छोड़ कर भाग जाते हैं या फिर आख़िर में आत्महत्या करते हैं। मध्य एशिया और अफ्रीका में रूस और अमेरिका की प्रभत्व  की लड़ाई किसी से छुपी नही है। इराक़, अफगानिस्तान, सीरिया, यमन, लीबिया, नाइजीरिया, सोमालिया व अन्य देशों में तेल हथियाने के चक्कर में दोनों ने जो रायता फैलाया वो आज तक नही समेटा गया है। युद्ध खत्म तो हो जाते हैं लेकिन पीछे रह जाते हैं गहरे ज़ख्म जो पीढ़ियां ख़राब कर देते हैं। लोग युद्ध के दौरान अपने घर, खेत-खिलहान छोड़ कर जान बचाने के लिए ग़ैर कानूनी तौर पर दूसरे देशों में शरण लेते हैं और फिर हमेशा के लिए शरणार्थी बन जाते हैं जिन्हें वहां के लोग कभी स्वीकार नही करते और वो रेफ्यूजी बनकर रह जाते हैं। ऐसी ही कहानी है श्री लंका से समुंदर के रास्ते अलग-अलग  नौका से आये तमिल दंपति की जिसने ऑस्ट्रेलिया में रहने के लिए चार साल लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी। 

ऑस्ट्रेलिया की नई सरकार ने श्री लंका के मरुगप्पन परिवार को ऑस्ट्रेलिया में अस्थायी तौर पर रहने के लिए बिलोएला शहर में रहने और काम करने की अनुमति दी है। इससे पहले सरकार ने तमिल परिवार के द्वारा शरण मांगे जाने के दावे को खारिज़ कर दिया था। जिसके बाद 2018 से ये परिवार शरणार्थी डिटेंशन सेंटर में रह रहा था।


स्थानीय लोगों ने परिवार की वापसी के लिए चलाया अभियान।

ऑस्ट्रेलिया में इस मामले को लेकर बिलोएला में स्थानीय लोगों ने परिवार की वापसी के लिए अभियान चलाया। विवादास्पद नीतियों के तहत ऑस्ट्रेलिया मुरुगप्पन जैसे देश में शरण मांगने वाले लोगों को अनिश्चितकाल के लिए हिरासत में रख सकती। सरकार के अनुसार इस दौरान शरण मांगने वाले परिवार के दावों का आंकलन करती है या फिर उन्हें उनके देश वापस भेजने के लिए कदम उठाती है।

मुरुगप्पन परिवार के समर्थकों ने मुरुगप्पन परिवार के समर्थकों ने सरकार से परिवार को अस्थायी वीज़ा की जगह पर्मानेंट वीजा दिए जाने की अपील की है।

मुरुगप्पन परिवार की मित्र एंजेली फ्रेडरिक्स ने शुक्रवार को ट्वीट किया, "बिलोएला तक की उनकी यात्रा एक लंबे दर्दनाक अध्याय का अंत है और जीवन में दुखों से धीरे-धीरे मुक्त होने की शुरुआत है।" एंजेली फ्रेडरिक्स का कहना है कि ये परिवार तब तक सुरक्षित नहीं रहेगा जब तक कि वे ऑस्ट्रेलिया में पर्मानेंट रूप से न रहें।

नवनिर्वाचित प्रधानमंत्री ने नियमों में ढील दी।

ऑस्ट्रेलिया के नए प्रधानमंत्री एंथनी अल्बनीस ने कहा कि उनकी सरकार मुरुगप्पन परिवार के मामले में इमिग्रेशन नीति के नियमों में छूट दी जाएगी। उन्होंने शुक्रवार को कहा, "हमारा समाज इतना मज़बूत है कि दूसरों को संदेश देने के लिए हमें लोगों के साथ बुरा व्यवहार नहीं करना चाहिए. ये मेरी समझ से बाहर है कि इतनी भारी क़ीमत पर ये मामला इतने लंबे समय तक कैसे चला।"
गौरतलब है कि एंथनी अल्बनीस ने पिछले शनिवार ही चुनाव जीता था।

क्या है पूरा मामला?

प्रिया नादराजा और नदेसलिंगम मुरुगप्पन क़रीब एक दशक पहले श्री लंका से अलग-अलग नावों के ज़रिए ऑस्ट्रेलिया पहुंचे थे और यहां की सरकार से शरण मांगी थी। उन्होंने कहा था कि उन्हें अपनी तमिल समुदाय से होने की वजह से श्रीलंका में उत्पीड़न का डर है।

दोनों की बिलोएला की मुलाकात हुई और मुलाकात शादी के रिश्ते में तब्दील हो गई और शादी के बाद दो लड़कियां हुई। बड़ी लड़की कोपिला है जिसकी उम्र सात साल है और छोटी लड़की का नाम थार्निका है, जो चार साल की है।

साल 2018 में ऑस्ट्रेलिया सरकार ने उन्हें ये कहते हुए हिरासत में ले लिया कि परिवार के पास ऑस्ट्रेलिया में रहने का कोई क़ानूनी अधिकार नहीं था। बिलोएला के लोकल लोगों ने मुरुगप्पन परिवार के लिए अभियान चलाया जिसे देशभर से समर्थन प्राप्त हुआ। देखते ही देखते ये चुनावों का मुद्दा बन गया और अलग-अलग राजनीतिक दलों के सांसदों ने इस अभियान को समर्थन दिया।


डिटेंशन सेंटर में रहना पड़ा 1500 से अधिक दिन।

परिवार को निर्वासित करने की दो कोशिशें की गई लेकिन साल 2019 में एक अदालत ने फ़ैसला सुनाया कि जब तक उनके मामले का समाधान नहीं हो जाता तब तक उन्हें देश से बाहर नहीं किया जा सकता है।

परिवार ने इमिग्रेशन डिटेंशन में 1,500 से ज़्यादा दिन बिताए हैं। इसमें ज्यादातर दिन परिवार ने हिंद महासागर में क्रिसमस द्वीप पर गुजारे। जहां उन्हें बहुत ही दिक्कतों का सामना करना पड़ा।
वहीं ऑस्ट्रेलिया सरकार का कहना है कि समुंदर के रास्ते मानव तस्करी और रास्ते मे होने वाली मौतों को रोकने के लिए उन्होंने सख़्त शरणार्थी नीतियां बनाई हैं। लेकिन सयुंक्त राष्ट्र ने अमानवीय कहते हुए नीतियों की आलोचना की है।

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