अमेरिका ने फिर बढ़ाई ब्याज दर, मतलब भारत में बढ़ेगी और महंगाई!

नई दिल्ली - अमेरिका फेडरल रिजर्व ने एक बार फिर ब्याज दरों को बढ़ा दिया है. महंगाई(Inflation) और मंदी की मार झेल रहे अमरीका के लिए बड़ा कदम बताया जा रहा है. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार अमेरिकी फेडरल रिजर्व(US Federal Reserve) ने ब्याज दरों में 0.75 फीसदी की बढ़ोतरी की है. बताया जा रहा है कि साल 1994 के बाद पहली बार फेडरल रिजर्व ने 75 बेसिस पॉइंट की बढ़ोतरी की है. आपको बता दें कि अमेरिका में महंगाई 40 साल के शीर्ष स्तर पर पहुंच गई है. लेकिन बताया जा रहा है कि इससे अमेरिका में आने वाले दिनों में और मंदी देखने को मिल सकती है. फेडरल रिजर्व ने बताया कि उनका लक्ष्य बॉरोइंग रेट(Borrowing Rate) यानी डोमेस्टिक बैंकों के सेंट्रल बैंक से उधार लेने की दर को 2.25 फीसदी से 2.5 फीसदी तक ले जाना का है.

अमेरिका के फेडरल ओपन मार्किट कमेटी ने बयान जारी कर कहा कि अमेरिका में महंगाई दरें बढ़ी हुई हैं. कोरोना महामारी, रूस-यूक्रेन युद्ध(Russia-Ukraine Conflict) के कारण खाने पीने के समान और ऊर्जा की कीमतें बढ़ी हई हैं. जिसका असर ब्याज दरों पर देखा जा रहा है. वहीं मार्केट में चीजों की बढ़ती कीमतें सप्लाई और डिमांड के बीच असंतुलन को दर्शाती है जिसे काबू में करने के लिए फेडरल रिजर्व ने ये ब्याज दरों में बढ़ोतरी करने का फैसला लिया है. एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में फेडरल रिजर्व के चेयरमैन जेरोम पॉवेल ने माना कि यूएस इकॉनमी(US Economy) के कुछ हिस्से धीमे थे, लेकिन उन्होंने कहा कि जोखिम के बावजूद बैंक आने वाले महीनों में महंगाई को काबू में करने के लिए ब्याज दरों में बढ़ोतरी जारी रखेगा. हालांकि जेरोम पॉवेल(Jerome Powell) ने मंदी को लेकर इतनी चिंता नहीं जाहिर की.

फेडरल रिजर्व द्वारा लगातार बढ़ाई जा रही ब्याज दरों के पीछे की वजह महंगाई में हो रही बेतहाशा वृद्धि है. जिसके कारण सप्लाई पर असर पड़ना है. इसके अलावा चीजों की कीमतों में काफी बढ़ोतरी हो चुकी है और रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से एनर्जी सेक्टर(Energy Sector) में ग्लोबल सप्लाई चेन(Global Supply Chain) पर काफी असर पड़ा है. उत्तरी अमेरिका(North America) और यूरोप के विकसित देशों(Developed Countries of Europe) में इस समय महंगाई 7 दशक के सबसे ऊपर के स्तर पर दिख रही है. यही कारण है कि इन देशों में केंद्रीय बैंक ताबड़तोड़ ब्याज दरें बढ़ा रहे हैं.

वहीं अमेरिकी फेडरल रिजर्व के फैसले के बाद भारत के ऊपर भी इसका बड़ा असर देखने को मिल सकता है. सबसे पहले तो आरबीआई(Reserve Bank Of India) की आगामी 3-5 अगस्त को होने वाली मॉनेटरी पॉलिसी(Monetary Policy Review) को लेकर होने वाली मीटिंग में रेपो रेट(जिस ब्याज दर से भारत के सभी बैंक आरबीआई(RBI) से पैसा उधार लेते हैं) में इजाफा देखने को मिल सकता है. जिससे आम आदमी को लोन मिलना महंगा हो जाएगा और लोन की किस्तों यानी ईएमआई(EMI) बढ़ने की संभावना है. वहीं डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपये की कीमत गिरने की आशंका जताई जा रही है. भारत के लिए कई और मोर्चों पर कठिनाई देखने को मिल सकती है जैसे कि डॉलर में विदेशी इन्वेस्टमेंट(Foreign Investment) का कम होना और इम्पोर्ट के खर्च बढ़ सकते हैं