क्या है आइपीईएफ जिसमें भारत के शामिल होने से चीन तिलमिलाया.

अमेरिका की प्रशांत महासागर क्षेत्र में विश्वसनीयता दुबारा से बहाल होगी
 | 
QUAD IMAGE
आईपीईएफ को अंतरराष्ट्रीय राजीनीति में बड़ा कदम बताया जा रहा है क्योंकि इससे हिंद-प्रशांत महासागर में चीन को चुनोती मिलेगी और भारत की ताकत में इज़ाफ़ा होगा।
 

टोक्यो - प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जापान की राजधानी टोक्यो में क्वाड यानि चतुर्भुज सुरक्षा संवाद सम्मेलन में शामिल होने गए हैं जिसमें नरेंद्र मोदी के साथ अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जापान के राष्ट्राध्यक्ष भी शामिल हो रहे हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने क्वाड सम्मेलन में आइपीईएफ इंडो पसिफ़िक इकोनॉमिक फ़्रेमवर्क के गठन का ऐलान किया है इसमें भारत समेत 13 देशों को शामिल किया गया है.

क्वाड शब्द 'क्वाड्रीलेटरल सुरक्षा वार्ता' से मिलकर बना है. इस समूह में भारत के साथ अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया शामिल हैं. 

क्वाड जैसे समूह को बनाने की बात पहली बार 2004 की सुनामी के बाद हुई थी जब भारत ने अपने और अन्य प्रभावित पड़ोसी देशों के लिए बचाव और राहत के प्रयास किए और इसमें अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान भी शामिल हो गए थे.

क्या है आईपीईएफ़? क्यों है इतना महत्वपूर्ण?

आईपीईएफ का ज़िक्र जो बाइडेन ने पहली बार अक्टूबर 2021 में किया था जिसके तहत अमेरिका हिंद-प्रशांत महासागर में अपने सहयोगी देशों के साथ व्यापार की सहूलियतों, डिजिटल टेक्नोलॉजी में मानकीकरण, सप्लाई चेन की मज़बूती, कार्बन उत्सर्जन में कमी और क्लीन एनर्जी से जुड़े कारोबार के अपने साझा लक्ष्यों को हासिल करने की कोशिश करेगा.

अमेरिका आईपीईएफ़ में पारंपरिक फ्री ट्रेड एग्रीमेंट से अलग रास्ता अपनाना चाहता है क्योंकि ऐसे समझौतों में काफी वक्त लग जाता है और इसके लिए पार्टनर देशों का समझौते पर दस्तखत करना भी ज़रूरी होता है. 

आपीईएफ में अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, ब्रूनेई, भारत, इंडोनेशिया, जापान, दक्षिण कोरिया, मलेशिया, न्यूज़ीलैंड, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड और वियतनाम समेत 13 देश शामिल हैं.

अमेरिका की प्रशांत महासागर क्षेत्र में विश्वसनीयता दुबारा से बहाल होगी.

आईपीईएफ़ को इंडो-पैसिफ़िक यानी हिंद प्रशांत क्षेत्र में अमेरिका की कम होती विश्वसनीयता को दोबारा बहाल करने की कोशिश के तौर पर भी देखा जा रहा है. 2017 में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका को ट्रांस पेसिफ़िक पार्टनरशिप (टीपीपी) से अलग कर लिया था. इसके बाद से इस क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव से असंतुलन की आशंका जताई जा रही थी. 

विशेषज्ञों के मुताबिक अमेरिका प्रशांत महासागर में बढ़ते चीन के प्रभुत्व को कम करना चाहता है ऐसे में अमेरिका आईपीईएफ के जरिये चीन के असर के ख़िलाफ़ मजबूत अमेरिकी आर्थिक व कारोबारी नीतियों को लाना चाहता है.

चीन क्यों है नाराज़?

साल 2001 में चीन के डब्ल्यूटीओ(विश्व व्यापार संगठन) में शामिल होने के बाद से अमेरिका के मैनुफैक्चरिंग सेक्टर को धक्का लगा था क्योंकि अमेरिका की बड़ी कंपनियों ने चीन में  मैनुफैक्चरिंग प्लांट लगा लिए थे। इस सेक्टर में बढ़ती बेरोजगारी के चलते ही अमेरिका में पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को ताकत मिली थी जिसका फायदा उन्होंने 2016 के चुनावों में किया था.

एपीआईएफ़ के गठन व इसमें भारत को शामिल करने से चीन असहज महसूस कर रहा है क्योंकि भारत समेत 13 देश दुनिया की 40 फ़ीसदी जीडीपी की हिस्सेदारी रखते हैं। भारत की अमेरिका से बढ़ती नजदीकियां को लेकर हमेशा से ही हमलावर रुख़ इख्तियार किये हुए है। क्वाड के बनाये जाने पर चीन ने इसे 'बीजिंग विरोधी संगठन' कहा था.

Latest News

Featured

Around The Web