HAU के वैज्ञानिकों ने कहा - गाजर घास न सिर्फ फसलों के लिए बल्कि इंसानों के लिए भी है हानिकारक

गाजर घास देश के लगभग 35 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्रफल में फैल चुका है
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जब यह शाक एक स्थान पर जम जाती है, तो अपने आस-पास किसी अन्य पौधे को जमने नहीं देती है. जिसके कारण अनेकों महत्वपूर्ण जड़ी-बूटियों और चरागाहों के नष्ट हो जानें की सम्भावना पैदा हो गई है. उन्होंने भी प्राकृतिक वनस्पतियों को खत्म होने से बचाने और मानव स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए इसको नियंत्रित किए जाने पर बल दिया.

हिसार - हरियाणा के हिसार जिले में स्थित चौधरी सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय(Chaudhary Singh Haryana Agricultural University) के वैज्ञानिक लगातार प्रदेश भर में गाजर घास के प्रति किसानों को जागरूक कर रहे हैं. इसी कड़ी में विश्वविद्यालय के अनुसंधान क्षेत्र में गाजर घास जागरूकता सप्ताह व उन्न्मूलन अभियान चलाया गया.

जिसका कृषि महाविद्यालय(Agriculture College) के अधिष्ठाता डॉ. एस.के. पाहुजा ने शुभारंभ किया. उन्होंने कहा गाजर घास से फसल की पैदावार में 40 प्रतिशत तक कमी हो जाती है. इसलिए समय रहते समन्वित प्रबंधन से इस खरपतवार पर नियंत्रण पाने की आवश्यकता है.

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हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय(Haryana Agriculture University) के वैज्ञानिकों ने कहा कि गाजर घास(parthenium hystrophorus) न केवल फसलों के साथ हानिकारक है बल्कि यह शाक इंसानों के स्वास्थ्य पर भी बुरा प्रभाव डालती है. जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन सस्य विज्ञान विभाग द्वारा जबलपुर के खरपतवार अनुसंधान निदेशालय(Directorate of Weed Research, Jabalpur) के सहयोग से किया जा रहा है.

सस्य विज्ञान(Agronomic) विभाग के अध्यक्ष डॉ. एस.के. ठकराल(Dr. SK Thakral) ने अपने संबोधन में कहा कि इस घातक शाक(Shrub) के संपर्क में आने से मनुष्यों में एग्जि़मा(eczema), एलर्जी(Allergy), बुखार(Fever), दमा(Asthma) जैसी बीमारियां हो जाती हैं. उन्होंने इस शाक को समूहिक रूप से मिलकर जड़ से मिटाने का आह्वान किया.

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इस मौके पर अखिल भारतीय खरपतवार अनुसंधान परियोजना(All India Weed Research Project) हिसार केन्द्र के मुख्य अन्वेषक(Principal Investigator), डॉ. टोडरमल पूनियां ने बताया कि इस पौधे का प्रवेश हमारे देश में अमेरिका(USA) से आयात होने वाले गेहूं के साथ साल 1955 में हुआ था. अब यह पौधा संभवत देश के हर हिस्से में मौजूद है और लगभग 35 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्रफल में फैल चुका है.

उन्होंने कहा कि जब यह शाक एक स्थान पर जम जाती है, तो अपने आस-पास किसी अन्य पौधे को जमने नहीं देती है. जिसके कारण अनेकों महत्वपूर्ण जड़ी-बूटियों और चरागाहों के नष्ट हो जानें की सम्भावना पैदा हो गई है. उन्होंने भी प्राकृतिक वनस्पतियों को खत्म होने से बचाने और मानव स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए इसको नियंत्रित किए जाने पर बल दिया.

इस अवसर पर सस्य विज्ञान विभाग के वैज्ञानिक डॉ. ए. के. ढाका, डॉ. परवीन कुमार, डॉ. सतपाल, डॉ. कविता, डॉ. कौटिल्य, डॉ. सुशील कुमार, डॉ. निधि काम्बोज, डॉ. आर.एस. दादरवाल, विद्यार्थी व कर्मचारी भी मौजूद थे. इस कार्यक्रम के अंतर्गत हरियाणा के विभिन्न हिस्सों में स्थापित कृषि विज्ञान केंद्रों के माध्मय से किसानों को गाजर घास के नुकसान के बारे में अवगत करवाया जाएगा.

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