जघन्य अपराध के मामलों में समझौता कर FIR रद्द नहीं करवाई जा सकती - सुप्रीम कोर्ट

जघन्य अपराधों से सम्बंधित प्राथमिकी या कंप्लेंट को रद्द करने का आदेश एक 'खतरनाक मिसाल' कायम करेगा
 
अदालत के पिछले फैसलों का जिक्र करते हुए सविंधानिक पीठ ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 482 के तहत एक एफआईआर,आपराधिक शिकायत या आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने के लिए अपनी शक्ति का प्रयोग करने से पहले हाइकोर्ट को सतर्क रहना चाहिए और अपराध की प्रकृति और गंभीरता के बारे में विचार करना चाहिए.

नई दिल्ली - देश की सर्वोच्च अदालत(Apex Court) ने शुक्रवार, 29 जुलाई को कहा कि ऐसे जघन्य अपराध जो निजी प्रकृति के नहीं हैं और जिनका समाज पर गंभीर असर पड़ता है, उन मामलों में क्रिमिनल और पिटीशनर या पीड़ित के बीच समझौते के आधार पर एफआईआर को रद्द नहीं किया जा सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि शिकायतकर्ता के साथ समझौते के आधार पर गंभीर या जघन्य अपराधों से सम्बंधित प्राथमिकी(FIR) या कंप्लेंट को रद्द करने का आदेश एक 'खतरनाक मिसाल' कायम करेगा. जिससे आरोपी से पैसे ऐंठने के लिए परोक्ष वजहों से शिकायतें दर्ज कराई जाएंगी.

एक रिपोर्ट के मुताबिक जस्टिस इंदिरा बनर्जी(Justice Indira Banerjee) और वी. रामसुब्रमण्यन(V. Ramasubramanian) की डबल जज की बेंच ने अपने फैसले में कहा कि "इसके अलावा आर्थिक रूप से मजबूत अपराधी हत्या, बलात्कार, दुल्हन को जलाने आदि जैसे गंभीर और गंभीर अपराधों के मामलों में भी सूचना देने वालों / शिकायतकर्ताओं को खरीदकर और उनके साथ समझौता करके बरी हो जाएंगे." अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात हाइकोर्ट के उस आदेश को भी रद्द कर दिया, जिसमें मार्च 2020 में आत्महत्या के लिए उकसाने के कथित अपराध के लिए दर्ज एफआईआर(FIR) को रद्द कर दिया गया था. 

अदालत के पिछले फैसलों का जिक्र करते हुए सविंधानिक पीठ ने कहा कि सीआरपीसी(Criminal Procedure Code) की धारा 482 के तहत एक एफआईआर,आपराधिक शिकायत या आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने के लिए अपनी शक्ति का प्रयोग करने से पहले हाइकोर्ट को सतर्क रहना चाहिए और अपराध की प्रकृति और गंभीरता के बारे में विचार करना चाहिए.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ‘जघन्य या गंभीर अपराध, जो प्रकृति में निजी नहीं हैं और समाज पर गंभीर प्रभाव डालते हैं, ऐसे मामलों को अपराधी और शिकायतकर्ता और / या पीड़ित के बीच समझौते के आधार पर रद्द नहीं किया जा सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मर्डर, रेप, सेंधमारी, डकैती और यहां तक ​​कि सुसाइड के लिए उकसाने जैसे अपराध न तो निजी हैं और न ही सिविल हैं और ऐसे अपराध समाज के खिलाफ हैं. किसी भी परिस्थिति में शिकायतकर्ता के साथ समझौता कर अभियोजन को रद्द नहीं किया जा सकता है. जबकि अपराध गंभीर और जघन्य है और समाज के खिलाफ अपराध के दायरे में आता है.