रेप के आरोपी को 4 दिन में सुनवाई पूरी कर मौत की सजा सुनाने वाले जज का निलंबन सुप्रीम कोर्ट ने किया रद्द

पिछले साल उन्होंने महज 1 दिन में POCSO Act के मामले में फैसला सुना दिया और रेप के आरोपी को उम्र कैद की सजा सुनाई
 
शशिकांत राय साल 2007 में बिहार न्यायिक सेवा से जुड़े थे. उनका एकेडमिक और प्रोफेशनल बैकग्राउंड अच्छा रहा है.साल 2014 में उनका सिविल जज और फिर 2018 में जिला जज के पद पर प्रमोशन हुआ था. जब उन्हें POCSO Act की जिम्मेदारी मिली तो उन्होंने बच्चों से यौन शोषण से जुड़े कई मामलों का जल्दी ट्रायल किया और आरोपियों को सजा दिलाई.

पटना - अमूमन हमारे देश की अदालतों को बड़ा धीमा माना जाता है. यहां करोडों ऐसे केस हैं जो लंबित पड़े हैं. कई बार तो न्याय की तलाश में पीड़ित या पीड़िता इंसाफ की उम्मीद तोड़ देते हैं. लेकिन बिहार की एक कोर्ट में ऐसा भी मामला सामने आया है जहां जज ने रेप को आरोपी को सिर्फ 4 दिन की सुनवाई के बाद ही सजा-ए-मौत का फैसला सुना दिया. जिसके बाद विवाद खड़ा हो गया है.

मामला बिहार के अररिया जिले का है. जहां स्थनीय अदालत एडीजे(Additional District Judge) के फैसले के बाद पटना हाईको उनको निलंबित कर दिया था. एडीजे शशिकांत राय(ADJ Shashikant Rai) को इस साल के फरवरी महीने में निलंबित किया गया था. मामले में सुप्रीम कोर्ट(Supreme Court) ने हाईकोर्ट को नोटिस भेजा था. अब उनके निलबंन के आदेश पर नाराजगी जाहिर करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने उनके निलंबन को रद्द कर दिया है. कोर्ट ने कहा कि जब तक किसी जज के खिलाफ दुर्भावना या भ्रष्टाचार जैसा कोई स्पष्ट कारण न हो, तब तक उसके खिलाफ अनुशासनात्मक करवाई नहीं होनी चाहिए.

बिहार के अररिया जिले में पॉक्सो(Prevention Of Children from Sexual Offences Act, 2012) स्पेशल कोर्ट में तैनात रहते हुए जज शशिकांत राय ने कई मामलों का स्पीडी ट्रायल किया था. पिछले साल उन्होंने महज 1 दिन में POCSO Act के मामले में फैसला सुना दिया और रेप के आरोपी को उम्र कैद की सजा सुनाई. इसके अलावा एक अन्य मामले में उन्होंने महज 4 दिन में फैसला सुनाते हुए एक आरोपी को POCSO Act के तहत फांसी की सजा सुनाई थी.

जब यह मामला पटना हाई कोर्ट के संज्ञान में आया तो उन्होंने तुरंत शशिकांत राय को निलंबित कर दिया. मगर सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के निलबंन के आदेश पर नाराजगी जताई. बीती 8 अगस्त को शीर्ष अदालत के जस्टिस यूयू ललित(Justice UU Lalit) और एस रविंद्र भट्ट(Justice S Ravindra Bhatt) की बेंच ने कहा कि जब किसी अधिकारी के खिलाफ भ्रष्टाचार और दुर्भावना का स्पष्ट कारण न हो, तब तक उसके खिलाफ कार्रवाई नहीं होनी चाहिए.

दो जजों की बेंच ने आगे कहा कि ज्यादा से ज्यादा आप यह कह सकते हैं कि वह ज्यादा उत्साही अधिकारी हैं. आखिरकार यह संस्था का मामला है, जब किसी न्यायिक अधिकारी के खिलाफ कुछ कहा जाता है तो उसका संस्था पर असर पड़ता है. कोर्ट ने यह भी कहा कि इससे संदेश जाएगा कि न्याय देने वालों को ही दंडित किया जा रहा है. सुप्रीम कोर्ट ने पटना हाईकोर्ट(Patna Highcourt) को अपने फैसले पर फिर से विचार करने के लिए 10 दिन का समय दिया था.

बता दें कि शशिकांत राय साल 2007 में बिहार न्यायिक सेवा(Bihar Judicial Service) से जुड़े थे. उनका एकेडमिक और प्रोफेशनल बैकग्राउंड अच्छा रहा है.साल 2014 में उनका सिविल जज और फिर 2018 में जिला जज के पद पर प्रमोशन हुआ था. जब उन्हें POCSO Act की जिम्मेदारी मिली तो उन्होंने बच्चों से यौन शोषण से जुड़े कई मामलों का जल्दी ट्रायल किया और आरोपियों को सजा दिलाई.