कोर्ट ने चुनाव आयोग को लगाई कड़ी फटकार, चीफ जस्टिस बोले- मुफ्त के वादे और कल्याणकारी योजनाओं में फर्क होता है

फ्री स्कीम्स पर अब 17 अगस्त को सुनवाई को होगी, चीफ जस्टिस बोले- मसला गंभीर है, कुछ लोग सीरियस नहीं
 
कोर्ट ने नाराजगी जताते हुए आयोग से पूछा कि उसकी ओर से अभी तक हलफनामा दाखिल क्यों नहीं किया गया है। चीफ जस्टिस ने सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग से हलफनामा मीडिया में प्रकाशित होने पर नाराजगी जताई है. कोर्ट ने पूछा कि क्या हम अखबार में हलफनामा पढ़ें। 

नई दिल्ली- चुनाव के दौरान फ्री वादों को लेकर सुप्रीम में दाखिल याचिका में चुनाव आयोग को कड़ी कटकार लगी है।  कोर्ट ने नाराजगी जताते हुए आयोग से पूछा कि उसकी ओर से अभी तक हलफनामा दाखिल क्यों नहीं किया गया है। चीफ जस्टिस ने सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग से हलफनामा मीडिया में प्रकाशित होने पर नाराजगी जताई है।

कोर्ट ने पूछा कि क्या हम अखबार में हलफनामा पढ़ें। कोर्ट ने आगे कहा- शायद ही कोई पार्टी मुफ्त की योजनाओं के चुनावी हथकंडे छोड़ना चाहती है। इस मुद्दे को हल करने के लिए विशेषज्ञ कमेटी बनाने की जरूरत है, क्योंकि कोई भी दल इस पर बहस नहीं करना चाहेगा। 4 अगस्त को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा था- आयोग ने इस मसले पर पहले कदम उठाए होते तो आज ऐसी नौबत नहीं आती। 

चीफ जस्टिस एनवी रमना ने आयोग से पूछा कि आपने हलफनामा कब दाखिल किया? रात में हमें तो मिला ही नहीं, सुबह अखबार देखकर पता चला। चुनाव में फ्री स्कीम्स के वादों पर रोक लगाने की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में करीब 20 मिनट तक सुनवाई हुई। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने चुनाव आयोग को कड़ी फटकार लगाई। 

आयोग ने 12 पन्नों के अपने हलफनामे में कहा है कि देश में समय और स्थिति के अनुसार फ्री सामानों की परिभाषा बदल जाती है। इससे पहले चुनाव आयोग ने कोर्ट में कहा है कि फ्री का सामान या फिर अवैध रूप से फ्री का सामान की कोई तय परिभाषा या पहचान नहीं है। ऐसे में विशेषज्ञ पैनल से हमें बाहर रखा जाए। हम एक संवैधानिक संस्था हैं और पैनल में हमारे रहने से फैसले को लेकर दबाव बनेगा।

चीफ जस्टिस एनवी रमना और जस्टिस कृष्ण मुरारी की बेंच ने मामले की सुनवाई की। सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल कोर्ट सलाहकार और अभिषेक मनु सिंघवी आप की ओर से पेश हुए। इस मसले पर अगली सुनवाई अब 17 अगस्त को होगी। भारत जैसे गरीब देश में इस तरह का रवैया सही नहीं है। चुनाव में घोषणा के वक्त पॉलिटिकल पार्टी ये नहीं सोचतीं कि पैसा कहां से आएगा? मुफ्त चुनावी वादे और सोशल वेलयफेयर स्कीम में फर्क है।