सुप्रीम कोर्ट के रिटायर जस्टिस खानविलकर के वो तीन बेहद अहम फैसले!

न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर शुक्रवार, 29 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के पद से सेवानिवृत्त हो गए।
 
इनका एक अहम फैसला गुजरात दंगों से जुड़ा हुआ भी है। गुजरात दंगों से जुड़े मामले में जकिया जाफरी द्वारा दायर एक याचिका को जस्टिस ए एम खानविलकर की बेंच ने खारिज कर दिया था। जकिया जाफरी ने तत्कालीन सीएम नरेंद्र मोदी को गुजरात दंगों को लेकर एसआईटी द्वारा क्लीन चिट देने के खिलाफ याचिका दायर की थी। जिसपर जस्टिस खानविलकर की बेंच याचिका खारिज करते हुए एसआईटी रिपोर्ट को बरकरार रखा।

दिल्ली.  जस्टिस ए एम खानविलकर शुक्रवार, 29 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के पद से सेवानिवृत्त हो गए। उनका कार्यकाल 6 साल 71 दिन का रहा। वे 13 मई 2016 को सुप्रीम कोर्ट में बतौर जज नियुक्त हुए थे। अपने कार्यकाल में उन्होंने कई ऐसे अहम फैसले दिये जो नजीर बन गए। इनमें मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट (पीएमएलए), गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) से जुड़े मामले भी शामिल हैं। 

पीएमएलए से जुड़े मामले में ईडी के पक्ष में फैसला:

बीते 27 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट में पीएमएलए के प्रावधानों को लेकर दायर एक याचिका पर न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय बेंच ने ईडी के पक्ष में अहम फैसला सुनाया। पीठ ने PMLA के तहत ED के जांच करने, गिरफ्तारी करने और संपत्ति जब्त करने के अधिकार को सही ठहराया।

गुजरात एसआईटी के खिलाफ याचिका:

गुजरात दंगों से जुड़े मामले में जकिया जाफरी द्वारा दायर एक याचिका को जस्टिस ए एम खानविलकर की बेंच ने खारिज कर दिया था। जकिया जाफरी ने तत्कालीन सीएम नरेंद्र मोदी को गुजरात दंगों को लेकर एसआईटी द्वारा क्लीन चिट देने के खिलाफ याचिका दायर की थी। जिसपर जस्टिस खानविलकर की बेंच याचिका खारिज करते हुए एसआईटी रिपोर्ट को बरकरार रखा।

सेंट्रल विस्टा पर फैसला:

न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर ने मोदी सरकार की महत्वाकांक्षी सेंट्रल विस्टा पुनर्विकास परियोजना को मंजूरी देते हुए 2:1 बहुमत से फैसला सुनाया था। फैसले में कहा कि प्रोजेक्ट को दी गई मंजूरी में कोई खामियां नहीं हैं। इसमें कहा गया कि हर चीज की आलोचना हो सकती है लेकिन ‘रचनात्मक आलोचना’ होनी चाहिए।

सबरीमाला केस:

सितंबर 2018 में जस्टिस खानविलकर ने सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर अहम फैसला सुनाया और समानता के अधिकार के तहत सभी उम्र की लड़कियों और महिलाओं को मंदिर में प्रवेश की अनुमति मिली। मामले की सुनवाई पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने की थी। जिसमें तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, जस्टिस एएम खानविलकर, रोहिंटन नरीमन, जस्टिस इंदु मल्होत्रा और डी वाई चंद्रचूड़ शामिल थे।​​​​ इस पीठ में शामिल जस्टिस इंदु मल्होत्रा ने फैसले में अपनी असहमति व्यक्त की थी।गौरतलब है कि 8 सितंबर 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने 10 साल से 50 साल के उम्र की महिलाओं को सबरीमाला के भगवान अयप्पा के मंदिर में प्रवेश की इजाजत दी थी।