30 साल पुराने मामले में रिटायर्ड IG, DSP और SI को तीन साल की सजा!

10 गवाहों के बयान ने खोल दी पुलिस की पोल 
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CBI कोर्ट
परमजीत कौर ने पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट में 1996 में एक याचिका दायर की थी। उसने अदालत को बताया कि सात मई 1992 को उसके गांव भोरसी राजपूतां को दोपहर 12 से शाम सात बजे तक पुलिस ने घेर कर रखा। 

मोहाली - अमृतसर जिले के निवासी सुरजीत सिंह के अपहरण और गायब करने से जुड़े 30 साल पुराने मामले में सीबीआई की विशेष अदालत ने शुक्रवार को पंजाब पुलिस के सेवानिवृत्त आईजी बलकार सिंह, सेवानिवृत्त डीएसपी उधम सिंह और एसआई साहिब सिंह को दोषी ठहराया और तीन-तीन साल की सजा सुनाई। 

एक अप्रैल 2003 में मामले की गंभीरता को देखते हुए पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने केस की जांच सीबीआई को सौंपी। अदालत ने सीबीआई को आदेश दिया कि इस चीज का पता लगाया जाए कि पुलिस ने याची के पति को मुठभेड़ में मार दिया है या वह पुलिस की कस्टडी से भाग गया। 27 मई 2003 को सीबीआई ने मामला दर्ज किया। 

 

 परमजीत कौर ने पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट में 1996 में एक याचिका दायर की थी। उसने अदालत को बताया कि सात मई 1992 को उसके गांव भोरसी राजपूतां को दोपहर 12 से शाम सात बजे तक पुलिस ने घेर कर रखा। 

अदालत में पुलिस की कहानी कमजोर साबित हुई और 10 गवाहों के बयान ने पुलिस की पोल खोल दी। एक गवाह जतिंदर सिंह की सुनवाई के दौरान मृत्यु हो गई। हालांकि उनका बयान सीबीआई ने जांच के दौरान दर्ज किया था। सजा सुनाए जाने के बाद दोषियों को मौके पर ही जमानत मिल गई।


परमजीत कौर ने पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट में 1996 में एक याचिका दायर की थी। उसने अदालत को बताया कि सात मई 1992 को उसके गांव भोरसी राजपूतां को दोपहर 12 से शाम सात बजे तक पुलिस ने घेर कर रखा। 

 परमजीत कौर ने पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट में 1996 में एक याचिका दायर की थी। उसने अदालत को बताया कि सात मई 1992 को उसके गांव भोरसी राजपूतां को दोपहर 12 से शाम सात बजे तक पुलिस ने घेर कर रखा। 


पुलिस का नेतृत्व तत्कालीन डीएसपी बलकार सिंह कर रहे थे। जंडियाला गुरु थाने के एसएचओ उधम सिंह व एएसआई साहिब सिंह भी मौजूद थे। जब शाम को पुलिस वापस गई तो गांव के तीन लोगों को अपने साथ ले गई। इसमें उसके पति सुरजीत सिंह के अलावा जतिंदर सिंह और परमजीत सिंह शामिल थे। 

15 दिनों के बाद जतिंदर सिंह घर वापस आ गया। वहीं परमजीत सिंह को चार-पांच माह के बाद जमानत पर रिहा कर दिया गया। हालांकि उसके पति को रिहा नहीं किया गया। जब पुलिस से उसके बारे में पूछताछ की तो पुलिस ने दस्तावेजों में दिखाया कि सुरजीत सिंह को 8 मई 1992 को पिस्तौल और कारतूस के साथ गिरफ्तार किया गया था। इस संबंध में थाना जंडियाला गुरु में केस दर्ज किया। इसके साथ ही पुलिस ने एक और केस सुरजीत सिंह के खिलाफ दर्ज किया। इसमें बताया कि जब वह उसे गोला बारूद को बरामद करने लेकर गए थे तो उस दौरान वह पुलिस कस्टडी से भाग गया था।

 परमजीत कौर ने पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट में 1996 में एक याचिका दायर की थी। उसने अदालत को बताया कि सात मई 1992 को उसके गांव भोरसी राजपूतां को दोपहर 12 से शाम सात बजे तक पुलिस ने घेर कर रखा। 


इस बीच 1 अप्रैल 2003 में मामले की गंभीरता को देखते हुए पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने केस की जांच सीबीआई को सौंपी। अदालत ने सीबीआई को आदेश दिया कि इस चीज का पता लगाया जाए कि पुलिस ने याची के पति को मुठभेड़ में मार दिया है या वह पुलिस की कस्टडी से भाग गया। 27 मई 2003 को सीबीआई ने मामला दर्ज किया। 

सीबीआई की जांच में पुलिस कस्टडी से सुरजीत सिंह के भागने की बात झूठी निकली। जांच में सामने आया आया कि सुरजीत सिंह गांववालों की मौजूदगी में पुलिस लेकर गई थी। थाने में उसे अवैध हिरासत में रखा। 8 मई 1992 की दोपहर में पुलिस उन्हें माल मंडी अमृतसर पूछताछ केंद्र ले गई। वहां उन्हें फिर से प्रताड़ित किया गया और सुरजीत सिंह की स्वास्थ्य स्थिति बहुत दयनीय थी। इसके बाद सुरजीत सिंह का ठिकाना अज्ञात है। हालांकि जतिंदर सिंह को कुछ दिनों के बाद पुलिस ने रिहा कर दिया था लेकिन परमजीत सिंह को बाद में एक अन्य मामले में गिरफ्तार दिखाया गया और जेल भेज दिया गया और बाद में उन्हें अदालत के आदेश पर जमानत पर रिहा कर दिया गया।

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