बिलकिस बानो गैंगरेप के गुनहगारों की रिहाई पर पति याकूब ने कहा - डर बढ़ गया है, सुरक्षा नहीं मिली

हमें अभी भी घर और नौकरी नहीं मिली है, हमारे पास अभी के लिए कोई कानूनी टीम नहीं है - याकूब
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साल 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार को आदेश दिया था कि पीड़िता बिकलिस को 50 लाख रुपए मुआवजा दिया जाए. इसके साथ ही कोर्ट ने आदेश दिया था कि सरकारी नौकरी और नियमों के मुताबिक घर मुहैया कराया जाए याकूब के मुताबिक कई बार अपील करने के बाद भी कुछ नहीं मिला है.

गांधीनगर - गुजरात के गोधरा में 2002(2002 Gujarat Riots) में हुए दंगों में यूं तो हजारों कहानियां दफन है लेकिन इन सबमें एक कहानी बिलकिस बानो की भी है. जिनका 20 साल पहले यानी 2002 में दंगों के दौरान 11 लोगों ने गैंगरेप किया. उस वक़्त बिलकिस बानो 5 महीनें की गर्भवती थीं. उनके साथ उनके परिवार के करीब 14 लोग थे. जिनमें से 3 साल उनकी बेटी सालेह भी थी. उन 11 लोगों ने बिलकिस बानो(Bilkis Bano Gang Rape Case) का गैंगरेप किया और उनकी बेटी की पत्थर पर सिर पटककर हत्या कर दी. उन दोषियों को उम्र कैद की सजा सुनाई गई. लेकिन अब ये मुद्दा फिर से उठ खड़ा हो गया है. वजह है गुजरात सरकार के एक फैसला जिसके तहत बिलकिस बानो केस के 11 दोषियों को रिहा कर दिया गया है.

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ऐसे में अब बिलकिस बानो के पति याकूब का बयान सामने आया है. इन 11 दोषियों की रिहाई पर याकूब रसूल पटेल(Yakub Rasool Patel) ने मीडिया से कहा," हम शांतिपूर्ण जीवन जी रहे थे. लेकिन अब जब वे सभी दोषी रिहा हो गए हैं तो हम बेहद दुखी और परेशान हैं. पहले भी डर था लेकिन हम कोशिश कर रहे थे कि एक सामान्य जीवन जिएं. हालांकि अब डर बहुत ज्यादा बढ़ गया है यहां कटर यहां का माहौल अच्छा नहीं है.

उन्होंने आगे कहा," उस घटना से हमने सब कुछ खो दिया. हमारी 3 साल की बेटी की हत्या कर दी गई. परिवार के ज्यादातर सदस्य मारे गए. बिलकिस को ऐसी घटना का सामना करना पड़ा. हम अभी भी अपने परिवार की उन सदस्यों के लिए प्रार्थना करते हैं जो नहीं रहें. 

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याकूब ने बताया कि दोषियों को रिहा करने के गुजरात सरकार के फैसले की उन्हें कोई जानकारी नहीं थी. उन्होंने कहा," पूरे फैसले के बारे में हमें बिल्कुल भी सूचित नहीं किया गया था. हमें मीडिया के जरिए इसके बारे में पता चला. हम इतने डर में जी रहे हैं, हमारे पास ना कोई सुरक्षा है. हम अपना ठिकाना बदलते रहते हैं और छिपी जिंदगी जीते हैं. हमने सरकार से सुरक्षा की गुहार लगाई लगाई थी लेकिन वह भी तक नहीं दी गई है.


वहीं मुआवजा के बारे में याकूब ने बताया, "हमें अभी भी घर और नौकरी नहीं मिली है. हमारे पास अभी के लिए कोई कानूनी टीम नहीं है और भविष्य के कानूनी विकल्प के बारे में नहीं पता है. बता दें कि साल 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार को आदेश दिया था कि पीड़िता बिकलिस को 50 लाख रुपए मुआवजा दिया जाए. इसके साथ ही कोर्ट ने आदेश दिया था कि सरकारी नौकरी और नियमों के मुताबिक घर मुहैया कराया जाए याकूब के मुताबिक कई बार अपील करने के बाद भी कुछ नहीं मिला है.

क्या है पूरा मामला

साल 2002 में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद मोदी की सरकार में हिंदू-मुस्लिम दंगे(Gujrat Riots 2002) हुए थे. जिनमें 1 हजार से ज्यादा लोग मारे गए थे. आंकड़ों के मुताबिक मरने वालों में ज्यादातर मुसलमान लोग थे. दंगों में सैंकड़ों महिलाओं के बलात्कार और हत्याएं हुई थीं. इनमें से 20 साल की बिलकिस बानो(Bilkis Bano Gang Rape) भी थी. जोकि 5 महीने की गर्भवती थीं. बिलकिस का गुजरात के अहमदाबाद के पास रणधी कूपर गांव में 11 लोगों ने गैंगरेप किया था और उनकी 3 साल की बेटी सालेह की भी पत्थर से सिर फोड़कर हत्या कर दी थी. इन दंगों में बिलकिस बानो की मां, छोटी बहन व अन्य रिश्तेदारों समेत कुल 14 लोगों की हत्या हुई थी.

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21 जनवरी 2008 को बिलकिस बानो केस को अहमदाबाद से मुंबई की एक स्पेशल सीबीआई कोर्ट(Special CBI Court) को ट्रांसफर किया गया था. 11 अभियुक्तों को बिलकिस बानो के साथ गैंगरेप व परिवार के 7 सदस्यों की हत्या के आरोप में उम्रकैद की सजा सुनाई थी. बाद में बॉम्बे हाईकोर्ट ने सभी 11 दोषियों की सजा को बरकरार रखा था. कुछ समय पहले 15 साल की सजा काटने के बाद दोषियों में से एक ने समय से पहले रिहाई के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार को सजा में छूट के मुद्दे पर गौर करने का निर्देश दिया था.

कोर्ट के निर्देश पर गुजरात सरकार ने इस मामले में एक कमेटी का गठन किया. कमेटी ने कुछ महीने पहले मामले में सभी 11 दोषियों को रिहा करने के पक्ष में एकमत से फैसला लिया था. कमेटी ने राज्य सरकार को सिफारिश भेजी गई. जिसके बाद दोषियों को कल यानी 15 अगस्त को  राज्य सरकार ने रिहाई का आदेश दिया. जिन 11 दोषियों को समय से पहले रिहा किया गया है. उनमें जसवंतभाई नई, गोविंदभाई नई, शैलेश भट्ट, राधेशम शाह, बिपिन चन्द्र जोशी, केसरभाई वोहानिया, प्रदीप मोधिरया, बकाभाई वोहानिया, राजूभाई सोनी, मितेश भट्ट और रमेश चंदना शामिल हैं.

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