Haryana - लंपी वायरस से ऐसे बचाएं अपने पशुओं को, सरकार ने चलाया पशुपालक जागरूकता अभियान

लंपी स्किन डिजीज एक वायरल बीमारी होती है, जो गाय में होती है
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भारत में सबसे पहले ये बीमारी साल 2019 में पश्चिम बंगाल में देखी गई थी. जोकि पड़ोसी देश बांग्लादेश से आई थी. इस वायरस का अभी तक कोई टीका नहीं है, इसलिए लक्षणों के आधार इम्युनिटी बूस्टर डोज(Immunity Booster Dose) दी जाती है.

हिसार - राजस्थान के बाद लंपी स्किन डिजीज का प्रकोप हरियाणा में भी बढ़ता जा रहा है. जिसको लेकर प्रदेश सरकार ने पशुओं का टीकाकरण का फैसला लिया है. सरकार ने करीब 20 लाख पशुओं का वैक्सीनेशन करने का फैसला लिया है.

जिसको लेकर सरकार ने फिलहाल 17 लाख गोट पॉक्स(Goat Pox) वैक्सीन का आर्डर दिया है. फिलहाल यह बीमारी राजस्थान, गुजरात, मध्यप्रदेश, पंजाब व हरियाणा के पशुओं में ही देखी गई है लेकिन इन राज्यों से दूसरे राज्यों में इसका संक्रमण न फैले इसके लिए पशुओं की आवाजाही बंद कर दी गई है. क्योंकि यह एक संक्रामक रोग है.

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लंपी वायरस के बढ़ते संक्रमण को देखते हुए हरियाणा सरकार ने पशुपालन जागरूकता अभियान चलाया है जिसके तहत पशु चिकित्सक गांवों में जाकर पशुपालकों को बीमारी के बारे में व इसके रोकथाम के लिए जागरूक करेंगे. इसके साथ ही इस बीमारी को लेकर फैल रही अफवाहों से भी रूबरू करवाएंगे ताकि सही तरीके से पशुओं की देखभाल हो सके.

क्या है लंपी स्किन डिजीज LSD(Lumpy Skin Disease)

लंपी स्किन डिजीज एक वायरल बीमारी होती है, जो गाय में होती है (हाल ही में भैंसों में भी यह बीमारी देखने को मिली है). लम्पी स्किन डिज़ीज़ में पशुओं के शरीर पर गांठें बनने लगती हैं, खासकर सिर, गर्दन, और जननांगों के आसपास. धीरे-धीरे ये गांठे बड़ी होने लगती हैं और घाव बन जाता है. पशुओं को तेज बुखार आ जाता है और दुधारु पशु अचानक से दूध देना कम कर देते हैं. 

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मादा पशुओं का गर्भपात हो जाता है, कई बार तो पशुओं की मौत भी हो जाती है. एलएसडी(Lampy Skin Disease) वायरस मच्छरों और मक्खियों जैसे खून चूसने वाले कीड़ों से आसानी से फैलता है. साथ ही ये दूषित पानी, लार और चारे के माध्यम से भी फैलता है.

हालांकि पशु चिकित्सकों का कहना है कि उचित देखभाल व इलाज से बीमार पशु 10 से ही 15 दिनों में पूर्ण रूप से स्वस्थ हो जाता है और सामान्य रूप से दूध देना भी शुरू कर देता है.

यह वायरस मुख्यतः गौवंश में पाया जाता है तथा भैंसों में ये ना के बराबर है. यह वायरस गर्म व नम मौसम में मक्खी, मच्छर व चिचड़ आदि के काटने फैलता है.

स्वस्थ पशु का बीमार पशु के संपर्क में आने से भी रह रोग हो सकता है. यह बीमारी पशुओं से मनुष्य में नहीं फैलती. इसलिए घबराने की कोई जरूरत नहीं है.

कैसे करें लंपी वायरस से बचाव

1. इसको लेकर सरकार द्वारा स्वस्थ पशुओं का फ्री में वैक्सीनेशन किया जा रहा है तो जल्द से जल्द सभी पशुओं का वैक्सीनेशन करवाएं
2. पशुओं के बाड़े को साफ-सुथरा रखें. नियमित रूप से मक्खी एवं मच्छर रोधी दवाओं का प्रयोग करें.
3. बीमार पशु के घावों की नियमित रूप से लाल दवाई में फिटकरी से सफाई करें.
4. बीमार पशु के दूध को उबालकर ही पिएं.
5. बीमार पशु के संपर्क में आने पर अपने हाथों को अच्छी तरह साबुन से धोएं.
6. संक्रमण के प्रसार को कम करने के लिए पशुओं का आवागमन बंद करें, जैसे जोहड़ हौदी, व मेलों आदि में ना लेकर जाएं.
7. हालांकि इस रोक के कारण पशुओं में मृत्यु दर(Mortality Rate) 1% से भी कम है फिर भी एहतियात के तौर पर मृत पशुओं का निस्तारण 2 से 2.5 मीटर गहरा गड्ढा खोदकर करना चाहिए.
8. मृत पशु को खुले में छोड़ने से संक्रमण अन्य स्वस्थ पशुओं में फैल सकता है.
9. बीमार पशुओं को स्वस्थ पशुओं से अलग रखें.
10.  रोग के लक्षण दिखाई देने पर नजदीकी पशु चिकित्सक से संपर्क करें.

बीमारी का इतिहास

भारत में सबसे पहले ये बीमारी साल 2019 में पश्चिम बंगाल में देखी गई थी. जोकि पड़ोसी देश बांग्लादेश से आई थी. इस वायरस का अभी तक कोई टीका नहीं है, इसलिए लक्षणों के आधार इम्युनिटी बूस्टर डोज(Immunity Booster Dose) दी जाती है. यह बीमारी सबसे पहले 1929 में अफ्रीका महाद्वीप(African Continent) में पाई गई थी. पिछले कुछ सालों में ये बीमारी कई देशों के पशुओं में फैल गई, साल 2015 में तुर्की(Turkey) और ग्रीस(Greece) और 2016 में रूस(Russia) जैसे देश में इसने तबाही मचाई.

जुलाई 2019 में दक्षिण एशिया में इसे बांग्लादेश(Bangladesh) में देखा गया, जहां से ये कई एशियाई देशों में फैल रहा है. संयुक्त राष्ट्र खाद्य(United Nations Food) एवं कृषि संगठन(Agriculture Organization) के अनुसार, लम्पी स्किन डिज़ीज़ साल 2019 से अब तक सात एशियाई देशों में फैल चुकी है, साल 2019 में भारत(India) और चीन(China), जून 2020 में नेपाल, जुलाई 2020 में ताइवान, भूटान, अक्टूबर 2020 वियतनाम(Vietnam) में और नंवबर 2020 में हांगकांग(Honkong) में यह बीमारी पहली बार सामने आई.

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