उत्तर प्रदेश में लोगों ने सरकार की वसूली के डर से जमा किए राशन कार्ड
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लखनऊ: केंद्र सरकार ने खाद्य सुरक्षा कानून 2013 के अंतर्गत एक गरिमापूर्ण जीवन यापन के लिए लोगों को वहनीय कीमतों पर अच्छी गुणवत्ता का पर्याप्त मात्रा में खाने के लिए अन्न देकर खाद्य व पोषण सुरक्षा का वायदा किया था। लेकिन उत्तर प्रदेश में स्थानीय प्रशासन द्वारा जारी आदेशों के डर से 50 हज़ार से ज़्यादा लोगों ने लाइन में लगकर राशन कार्ड जमा करवा दिया। प्रशासन ने आदेश जारी किया कि जो लोग राशन कार्ड की पात्रता के अंतर्गत नही आते हैं वो अपना राशन कार्ड स्थानीय कार्यालय में जमा करवा दें नही तो उनसे रिकरवी की जाएगी। विवाद होने पर सरकार ने कहा कि हमने ऐसा कोई आदेश जारी ही नही किया। ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है की आख़िर किसके कहने पर स्थानीय प्रशासन ने लोगों से राशन कार्ड जमा करवाने का आदेश जारी किया।
मई महीने के शुरुआत से ही इस तरह की खबरें कई जिलों से आने लगीं और ये खबरें स्थानीय अधिकारियों के हवाले से छप रही थीं। कई जगह तो लाउडस्पीकर लगवाकर इस बारे में बाकायदा घोषणा की जा रही थी और इसका असर यह हुआ कि तमाम जिलों में लोग लाइनों में लगकर राशन कार्ड सरेंडर करने लगे।
"रिवकरी की जाएगी तो हम दे नही पाएंगें।"
बुलंदशहर जिले के रहने वाले रवींद्र पाल भी राशन कार्ड सरेंडर कर चुके हैं। उनका कहना था कि अखबारों और सोशल मीडिया के माध्यम से हमें इस बात की जानकारी मिली थी कि जो लोग अपात्र हैं वो राशन कार्ड सरेंडर कर दें नही उनसे रिकवरी की जाएगी। रवींद्र पाल कहते हैं, "हमें पेंशन मिलती है इसलिए हमने अपना कार्ड सरेंडर कर दिया। हालांकि पेंशन बहुत कम मिलती है और उसमें खर्च नहीं चल सकता है लेकिन क्या करें। यदि रिकवरी की जाएगी तो हम कहां से देंगे।”
आदेश पर प्रशासन ने कोई स्पष्टीकरण नही दिया।
अलग अलग जिलों से राशन कार्ड सरेंडर करने और ना करने वालों से वसूली करने जैसी खबरें कई दिन तक अखबारों में छपती रहीं, टीवी चैनलों पर दिखती रहीं और लोग लाइनों में लगकर राशन कार्ड सरेंडर भी करने लगे। सवाल किए जाने पर ना तो स्थानीय अधिकारियों ने और ना ही शासन की ओर से इस बारे में कोई स्पष्टीकरण दिया गया।
विपक्ष ने सरकार को घेरा।
विवाद के तूल पकड़े 2 जाने पर पिछले हफ्ते कांग्रेस पार्टी ने लखनऊ में एक प्रेस कांफ्रेंस की और राशन कार्ड के कथित नए नियमों और राशन वसूली को लेकर सरकार पर जमकर निशाना साधा। पार्टी ने कहा कि सरकार ने वोट लेने के लिए अपने नेताओं की तस्वीर लगे झोलों में भरकर खूब राशन बांटे और अब लोगों से उस राशन की वसूली करने पर उतारू है। पार्टी ने इसे राज्य सरकार की क्रूरता का नमूना तक बता दिया।
राज्य के खाद्य मंत्री ने कहा भ्रामक है खबरें।
विपक्ष की प्रेस कांफ्रेंस के तुरंत बाद ही राज्य के खाद्य एवं रसद आयुक्त सौरव बाबू की ओर से एक बयान जारी किया गया कि ये सारी खबरें फर्जी और भ्रामक हैं, किसी तरह की वसूली करने या फिर राशन कार्ड सरेंडर करने के कोई आदेश जारी नहीं किए गए हैं। बयान में यह भी कहा गया कि राशन कार्डों का नियमित रूप से सत्यापन होता है वो अपने तरीके से और अपने समय से किया जाएगा।
नियमों में कोई बदलाव नही किया गया है।
खाद्य एवं रसद आयुक्त ने बयान जारी कर कहा कि राशन कार्डों के लिए वही नियम लागू हैं जो 7 अक्टूबर 2014 को लागू थे यानी राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून बनने के बाद। जिन नए नियमों की चर्चाएं मीडिया में चल रही थीं, उनका जिक्र करते हुए बयान में उन्हें गलत बताया गया। इससे पहले राज्य के सूचना और जनसंपर्क विभाग ने भी ऐसी खबरों को फेक न्यूज बताते हुए लोगों को सावधान रहने को कहा।
आख़िर किसके कहने पर प्रशासन ने जारी किये आदेश।
ऐसे में सवाल उठता है कि जब सरकार की ओर से ऐसे निर्देश नहीं थे तो जिले के अधिकारियों की ओर से ये निर्देश कैसे जारी हुए और यदि यह योजना सरकार की नहीं है तो क्या उन अधिकारियों के खिलाफ ऐसी कोई कार्रवाई होगी, जिन्होंने मनमाने तरीके से ये नियम निकाल दिए थे। यही नहीं, पिछले करीब दो हफ्ते से जब ऐसी खबरें छप रही थीं तो क्या संबंधित जिले के अधिकारियों और शासन के अधिकारियों तक ये बात नहीं पहुंच पाई।