Health News - एक्सीडेंट के बाद ट्रामा सेंटर में डॉक्टर सबसे पहले क्या करते हैं, AIIMS डॉक्टर ने बताया

जब एक डॉक्टर सर्जन बनता है तो उसे खास तरह की ट्रेंनिग दी जाती है
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मान लीजिए किसी मरीज को ट्रॉमा सेंटर(Trauma Centre) लाया जाता है और वो बेहोशी की हालात में है. ऐसे में सबसे ज्यादा कॉमन होता है एयर पैसेज(Air Passage) यानी कि सांस की नली का ब्लॉक होने का ख़तरा. इसके साथ ही कई और दिक्कतें भी हो सकती हैं.

नई दिल्ली - जब भी हम बीमार होते हैं तो अस्पताल जाते हैं. अपनी बीमारी से संबंधित डॉक्टर से अपना इलाज कराते हैं. अगर किसी को कोई गंभीर बीमारी हो तो ऑपरेशन की भी जरूरत पड़ सकती है. ऑपरेशन सर्जन करते हैं और सामान्य बीमारी के लिए फिजिशियन(physician) होते हैं. यानी हम आम तौर पर दो तरह के डॉक्टर्स से इलाज कराते हैं. 

पहले फिजिशियन और अगर दिक्कत ज्यादा है तो सर्जन. लेकिन एक और तरह के डॉक्टर होते हैं जिन्हें ट्रॉमा सर्जन कहा जाता है. ऐसे में अब सवाल उठता है कि ट्रॉमा सर्जन और सामान्य सर्जन में क्या फर्क होता है? इसका जवाब दिया AIIMS के ट्रॉमा सर्जन अमित गुप्ता ने. हाल ही में डॉ गुप्ता ने एक यूट्यूब चैनल को इंटरव्यू में बताया कि ट्रॉमा सर्जन भी एक तरह के सर्जन होते हैं. ट्रॉमा सर्जन अमित गुप्ता ने बताया कि जब एक डॉक्टर सर्जन बनता है तो उसे खास तरह की ट्रेंनिग दी जाती है. इस ट्रेनिंग में घायलों, एक्सीडेंट वाले मरीजों का इलाज करना सिखाया जाता है. 

इस बात को उदाहरण देते हुए डॉ अमित गुप्ता ने समझाते हुए कहा कि मान लीजिए अगर किसी व्यक्ति का एक्सीडेंट हो जाता है और घायल हो जाता है. ऐसे में उस व्यक्ति का इलाज नॉर्मल सर्जन नहीं करेंगे. इस मरीज को सबसे पहले फर्स्ट एड(First Aid) दी जाएगी. इसके बाद ये जाना जाएगा कि मरीज को कौनसी ऐसी चोटें आई हैं जो जानलेवा हैं. इसके बाद उसी दिशा में डॉक्टर का काम शुरू होता है. मरीज को बेहतर तरीके से टेकल करने की कोशिश की जाती है.

 इसे और स्पष्ट करते हुए डॉ गुप्ता ने बताया कि मान लीजिए किसी मरीज को ट्रॉमा सेंटर(Trauma Centre) लाया जाता है और वो बेहोशी की हालात में है. ऐसे में सबसे ज्यादा कॉमन होता है एयर पैसेज(Air Passage) यानी कि सांस की नली का ब्लॉक होने का ख़तरा. इसके साथ ही कई और दिक्कतें भी हो सकती हैं. जैसे हमारी जीभ का पीछे जाना. पेट में जितना भी समान है या एसिड है वो फेफड़ों में जा सकता है. ऐसी स्थिति में सबसे जरूरी होता है कि मरीज सांस लेता रहे.

इसके बाद बारी आती है फेंफड़ों की. ये पता करने की कोशिश की जाती है कि लंग्स यानी फेफड़ों में कितनी चोट आई है. तीसरी ध्यान देने वाली बात होती है ब्लीडिंग यानी खून का रिसाव. कैसे भी करके उसे जल्द से जल्द कंट्रोल किया जाना बेहद जरूरी है. इसे IV(Intravenous Line) लाइन या IV fluid(Intravenous Fluid)  के जरिये कंट्रोल किया जाता है. ये पूरा काम ट्रॉमा सर्जन करता है.

Trauma Surgeon डॉ अमित गुप्ता(Dr. Amit Gupta) कहते हैं कि अगर इस पूरी प्रक्रिया में कहीं भी गैप है यानी इस प्रक्रिया को फॉलो नहीं किया जाता है तो इसे ट्रॉमा सेंटर नहीं कहा जा सकता है. यानी ट्रॉमा सेंटर एक सिस्टेमेटिक तरीका है जो मरीज को पूरी तरह से ठीक करने के लिए जरूरी है.

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