भारत में मिला मंकीपॉक्स खतरनाक नहीं, दो संक्रमितों की जीनोम सीक्वेंसिंग आई सामने

मंकीपॉक्स से जुड़ी राहत भरी खबर सामने आई है, भारत में मिले संक्रमितों की जीनोम सीक्वेंसिंग से साफ हुआ है कि यहां इसका स्ट्रेन सुपर स्प्रेडर नहीं है.
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मंकीपॉक्स
नई दिल्ली स्थित सीएसआईआर-आईजीआईबी के वरिष्ठ वैज्ञानिक ने बताया कि दुनिया में 60 फीसदी से ज्यादा मंकीपॉक्स के मामले यूरोप में मिल रहे हैं. वहां वायरस का बी.1 क्लैड तेजी से फैल रहा है, जिसे समलिंगियों में यौन संबंध से जोड़कर देखा जा रहा है.

नई दिल्ली – भारत में मिला मंकीपॉक्स खतरनाक नहीं है. दरअसल भारत में मिला वायरस का स्ट्रेन, यूरोप और अमेरिका से अलग है. यूरोप में मिला स्ट्रेन सुपर स्प्रेडर कैटेगरी में है, जबकि भारत में मिला मंकीपॉक्स वायरस के साथ ऐसा नहीं है. पहले दोनों मरीज केरल से मिले थे. इन दोनों मरीजों में वायरस का ए.2 क्लैड मिला है.

देश में मिले मंकीपॉक्स के पहले दो संक्रमित रोगियों की जीनोम सीक्वेंसिंग में खुलासा हुआ है कि जो वायरस यूरोप व अमेरिका में मिला है, वह भारत में नहीं है. केरल निवासी दोनों मरीजों में वायरस का ए.2 क्लैड मिला है, जो पिछले साल फ्लोरिडा में मिला था. अभी जिस स्ट्रेन का प्रसार पूरी दुनिया में है, उसका भारत से कोई संबंध नहीं है.

नई दिल्ली स्थित CSIR-IGIB के वरिष्ठ वैज्ञानिक ने बताया कि दुनिया में 60 फीसदी से ज्यादा मंकीपॉक्स के मामले यूरोप में मिल रहे हैं. वहां वायरस का बी.1 क्लैड तेजी से फैल रहा है, जिसे समलिंगियों में यौन संबंध से जोड़कर देखा जा रहा है. न्यू इंग्लैंड मेडिकल जर्नल में प्रकाशित अध्ययन में 540 रोगियों में से 98 फीसदी समलैंगिक पाए गए.

आईजीआईबी के वरिष्ठ प्रोफेसर डॉ. विनोद स्कारिया का कहना है कि वायरस के A.2 क्लैड के सुपर स्प्रेडर होने के सबूत नहीं मिले हैं. हमारा मानना है कि केरल के दोनों मरीज किसी संयोग के चलते संक्रमित हुए हैं. इसका मतलब साफ है कि ये यूरोप के सुपर स्प्रेडर से जुड़े नहीं है. यह भी पता चलता है कि मंकीपॉक्स का वायरस यूरोप से काफी समय पहले दूसरे देशों में पहुंचा है."

लोकनायक अस्पताल दिल्ली के निदेशक डॉ. सुरेश कुमार ने बताया कि "अभी हमारे यहां दो मरीज भर्ती हैं. एक संदिग्ध और दूसरा संक्रमित है. संक्रमित को एंटीवायरल दवाएं दी जा रही हैं और उसकी हालत स्थिर है. बुखार पर नियंत्रण है लेकिन त्वचा के दानों में अभी भी पस है. मुझे लगता है कि कुछ दिन और इन्हें निगरानी में रखा जाएगा. किसी भी मरीज को आईसीयू में भर्ती करने की नौबत नहीं आई है."

अमेरिका के ओमाहा स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ नेब्रास्का मेडिकल सेंटर के प्रोफेसर डॉ. नरेंद्र कुमार का कहना है कि कोरोना की तरह मंकीपॉक्स भारत में अभी शुरुआती स्थिति में है. मूलरूप से यूपी के मथुरा जिले के मगोर्रा गांव निवासी डॉ. कुमार ने दिल्ली एम्स से एचआईवी/एड्स पर पीएचडी की है. उन्होंने जून में मंकीपॉक्स के मामलों में बढ़ोतरी की आशंका जताई थी.

केरल स्वास्थ्य विभाग की महानिदेशक डॉ. प्रीथा पीपी ने बताया कि केरल में अब तक तीन संक्रमित मिले हैं. इनके संपर्क में आए 40 से ज्यादा को क्वारंटीन किया, लेकिन किसी में भी लक्षण नहीं मिले हैं. तीनों मरीज दो अस्पताल में भर्ती हैं और हालत स्थिर है.

बता दें कि मंकीपॉक्स को लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक टेड्रोस एडनॉम घेबियस ने सलाह दी है कि जिन पुरुषों के मंकीपॉक्स की चपेट में आने का जोखिम है वे फिलहाल यौन साथियों की संख्या सीमित रखने पर विचार करें. बीते मई में मंकीपॉक्स का प्रकोप शुरू होने के बाद संक्रमित होने वालों में 98 फीसदी समलैंगिक समुदाय से हैं जो पुरुषों के साथ शारीरिक संबंध बनाते हैं.

वहीं मंकीपॉक्स को लेकर मामूली एलर्जी से भी लोग दहशत में आ रहे हैं. एक 10 महीने की बच्ची पूजा (बदला हुआ नाम) के हाथों और पैरों में छाले हो गए. इसे मंकीपॉक्स का संक्रमण होने के डर से, माता-पिता बच्चे को एक त्वचा विशेषज्ञ के पास ले गए. हालांकि डॉक्टर ने इसे कीड़े के काटने की प्रतिक्रिया के रूप में पहचाना.

पूजा अकेली नहीं है. भारत में मंकीपॉक्स फैलने की खबर के साथ-साथ सोशल मीडिया, न्यूज पोर्टल्स और चैनलों के माध्यम से डरावने फफोले और चकत्ते की तस्वीरें प्रसारित की जा रही हैं, जो लोगों में घबराहट और भय की भावना पैदा कर रहे हैं, जिससे लोग तेजी से त्वचा विशेषज्ञों के पास अपनी जांच के लिए आते हैं.

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