भारत की धमकी बेअसर श्रीलंका के तट पर खड़ा है चीनी जासूसी युद्धपोत!

भारत की लगातार चेतावनी के बावजूद श्रीलंका में खड़ा है चीनी युद्धपोत
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चीनी युद्धपोत
भारत के लगातार आपत्ति जताने के बावजूद चीनी जासूसी युद्धपोत श्रीलंका के हंबनटोटा दूरी पर खड़ा है। भारत की लगातार धमकियों के बावजूद श्रीलंका ने युद्धपोत को वहां खड़ा होने की अनुमति दे दी। श्रीलंका की यह हरकत भारत की बेहद चिंता बढ़ाने वाली है। चीन का यह जासूसी युद्धपोत उपग्रह से लेकर परमाणु केंद्र रोहतक की जासूसी करने में सक्षम है इस युद्धपोत की श्रीलंका में मौजूदगी भारत के लिए बेहद खतरनाक साबित हो सकती है। जबकि भारत की लगातार चेतावनी से श्रीलंका के कानों पर जूं तक नहीं रेंग रही।

दिल्ली.    भारत की चिंताओं और आपत्तियों को नजरअंदाज करते हुए श्रीलंका ने चीनी पोत 'युआन वांग 5' को हंबनटोटा बंदरगाह पर लंगर डालने की अनुमति दे दी है। चीन का यह जासूसी जहाज अब वहां छह दिन तक कैंप करेगा। इस जहाज की निगरानी में भारतीय नौसेना के कई ठिकाने और इसरो मुख्यालय समेत कई केंद्र होंगे।

दरअसल, चीन का यह जासूसी जहाज 750 किमी दूर तक आसानी से नजर रख सकता है। जबकि तमिलनाडु के हंबनटोटा बंदरगाह से कन्याकुमारी की दूरी करीब 451 किलोमीटर है। जासूसी के खतरे को देखते हुए भारत ने श्रीलंका से कहा था कि वह इस जहाज को हंबनटोटा में प्रवेश न करने दे।

श्रीलंका के पोर्ट मास्टर निर्मल पी सिल्वा के हवाले से स्थानीय मीडिया ने बताया कि उन्हें 16 से 22 अगस्त तक जहाज को हंबनटोटा बुलाने के लिए विदेश मंत्रालय की मंजूरी मिल गई है। सरकार ने यात्रा के लिए नए सिरे से अनुमति दी थी। ऐसा तभी किया गया जब श्रीलंका में लोग सरकार के खिलाफ सड़कों पर उतर आए। सरकार बदलने के बाद इसमें कोई बदलाव नहीं हुआ।

चीनी जासूसी जहाज 'युआन वांग-5' के पास अंतरिक्ष और उपग्रह की निगरानी में विशेषज्ञता है। चीन इस श्रेणी के जहाजों के माध्यम से उपग्रहों, रॉकेटों और 'इंटरकांटिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल' यानी आईसीबीएम के प्रक्षेपण का पता लगाता है। जहाज को 'हाई-टेक ईव्सड्रॉपिंग उपकरण' से सुसज्जित किया गया है।

यानी श्रीलंका के बंदरगाह पर खड़े होकर यह भारत के अंदरूनी हिस्सों तक की जानकारी जुटा सकता है। साथ ही पूर्वी तट पर स्थित भारतीय नौसैनिक अड्डे इस जहाज की जासूसी रेंज में होंगे। चांदीपुर में इसरो के लॉन्च सेंटर की भी जासूसी की जा सकती है। इतना ही नहीं, यह अग्नि जैसे देश की मिसाइलों के बारे में सारी जानकारी चुरा सकता है, जैसे कि मारक क्षमता और रेंज के बारे में जानकारी।

अमेरिकी रक्षा विभाग की रिपोर्ट के मुताबिक, इस जहाज का संचालन चीनी सेना की स्ट्रैटेजिक सपोर्ट फोर्स यानी एसएसएफ करती है। SSF एक थिएटर कमांड स्तर का संगठन है। यह अंतरिक्ष, साइबर, इलेक्ट्रॉनिक, संचार, सूचना और मनोवैज्ञानिक युद्ध अभियानों में चीनी सेना की सहायता करता है।

इससे पहले जब चीन ने 2022 में लॉन्ग मार्च 5बी रॉकेट लॉन्च किया था, तब यह जहाज सर्विलांस मिशन पर निकला था। हाल ही में यह चीन के तियांगोंग अंतरिक्ष स्टेशन के पहले प्रायोगिक मॉड्यूल के प्रक्षेपण की समुद्री निगरानी में भी शामिल था। पहले इस चीनी जहाज के 11 अगस्त को हंबनटोटा पहुंचने की उम्मीद थी। भारत ने इस जासूसी जहाज को लेकर श्रीलंका सरकार से आपत्ति दर्ज कराई थी। इसके बावजूद श्रीलंका ने इसे हंबनटोटा में लंगर डालने की इजाजत दे दी।

यह जहाज 750 किमी दूर तक आसानी से नजर रख सकता है। 400 चालक दल के सदस्यों वाला जहाज 'पैराबोलिक ट्रैकिंग एंटीना' और कई सेंसर से लैस है। हंबनटोटा पहुंचने के बाद इस जहाज की पहुंच दक्षिण भारत के प्रमुख सैन्य और परमाणु ठिकानों जैसे कलपक्कम, कुडनकुलम तक हो सकेगी. साथ ही केरल, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश के कई बंदरगाह चीन के रडार पर होंगे।

इस जहाज के जरिए भारत के प्रमुख नौसैनिक अड्डे और परमाणु संयंत्रों की जासूसी करने की भी कोशिश की जा सकती है. श्रीलंका आर्थिक संकट में है और चीन से 4 अरब डॉलर की सहायता मांग रहा है। दोनों देशों के बीच बातचीत चल रही है. भारत ने भी श्रीलंका को 3.5 अरब डॉलर की मदद की है। ऐसे में श्रीलंका न तो चीन को नाराज करना चाहता है और न ही भारत को।

हंबनटोटा बंदरगाह, जिसकी कीमत लगभग 150 मिलियन डॉलर है, एशिया और यूरोप के मुख्य जलमार्गों के पास है। श्रीलंका के दक्षिण में स्थित हंबनटोटा रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण स्थान पर स्थित है। श्रीलंका ने चीन से कर्ज लेकर इसे बनाया है। इस बंदरगाह का निर्माण चीन के राज्य निकाय चाइना मर्चेंट पोर्ट होल्डिंग्स ने पूर्व राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे के समय में किया था। इसमें 85 फीसदी हिस्सेदारी एक्जिम बैंक ऑफ चाइना के पास है। चीन श्रीलंका के लिए सबसे बड़े ऋणदाता देशों में से एक है। वहां चीन ने सड़क, रेल और हवाई अड्डे पर भारी निवेश किया है। 

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