कहानी 2008 में हुई ऐतिहासिक डील की, जब रतन टाटा ने जैगुआर-लैंड रोवर को खरीद कर लिया फोर्ड कम्पनी से अपने अपमान का बदला

जब फ़ोर्ड ने मालिक ने रतन टाटा से कहा की आप हमारी कम्पनियां ख़रीद कर एहसान कर रहे हैं
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ratan tata
बिल फोर्ड ने रतन टाटा व उनकी टीम के साथ बातचीत के दौरान टिप्पणी की "टाटा मोटर्स को कार मैन्युफैक्चरिंग के बारे में कुछ नही पता है और उन्हें पर्सनल वेहिकल सेंगमेंट की शुरुआत ही नही करनी चाहिए थी।" फिर उन्होंने ये तक कह दिया कि टाटा मोटर्स के पर्सनल व्हीकल के सेगमेंट को खरीद कर फोर्ड कम्पनी टाटा मोटर्स पर एहसान करेगी।
चंडीगढ़: कहते हैं कि इंसान की जिंदगी में कई उतार चढ़ाव आते हैं। अच्छा-बुरा, अमीरी ग़रीबी, धूप-छांव ये सब जिंदगी के पहलू हैं जिनसे हमे गुजरना पड़ता है। ऐसा ही लाखों-करोड़ों की कमाई करने वाली कम्पनियों के साथ भी होता है। आज आपको भारत की ऑटोमोबाइल में सबसे बड़ी कम्पनियों में शुमार टाटा मोटर्स की दिलचस्प कहानी बताते हैं जिसमें 1999 में फोर्ड कम्पनी के मालिक ने टाटा मोटर्स को ख़रीदने से मना कर दिया था और फिर 2008 में टाटा मोटर्स ने उसी फोर्ड की जैगुआर और लैंड रोवर को खरीदा था। जिसके बाद फोर्ड कम्पनी के मालिक ने रतन टाटा को कहा था कि आप हमारी कम्पनियों को ख़रीद कर हमपर एहसान कर रहे हैं।

टाटा मोटर्स का इतिहास

साल 1945 में टाटा इंजिनीरिंग एंड लोकोमोटिव कम्पनी की शुरुआत हुई। शुरुआत में टाटा मोटर्स ने बस और ट्रक ही बनाने शुरू किये और ख़ूब तरक्की भी की। शीत युद्ध के बाद 1991 में सोवियत संघ टूट गया और दुनियाभर की राजनीति बदल गई। समाजवाद की जगह पूंजीवाद ने ले ली। भारत मे लाल फीताशाही व भ्रष्टाचार के चलते अर्थव्यवस्था डूबने की कगार पर थी। फिर भारत मे 1991 में एलपीजी यानि लिबेरालीजेशन, प्राइवेटाइजेशन, ग्लोबलाइजेशन रिफॉर्म्स लाए गए। दुनिया में व्यपार करने के लिए भारत के दरवाज़े खोल दिये गए। सरकार ने आयत-निर्यात शुल्कों में भारी कटौती की। इसके बाद दुनियाभर से कम्पनियों ने भारत मे निवेश किया, हर सेक्टर में कम्पटीशन बढ़ गया।  

टाटा मोटर्स ने कमर्शियल व्हीकल में पहले ही अपनी पेंठ बना रखी थी क्योंकि इस सेक्टर में चंद कम्पनियां ही थीं। इसके बाद कम्पनी ने पर्सनल व्हीकल सेगमेंट में कूदने का फ़ैसला किया क्योंकि इस सेगमेंट में प्रॉफिट ज्यादा था। 1991 में टाटा मोटर्स ने पहली पर्सनल गाड़ी सिएरा लॉन्च की। 1994 में टाटा सूमो व 1998 में टाटा सफारी को लॉन्च किया, दोनों ही गाड़ियों खूब हिट हुई। 

1999 में तगड़ा घाटा लगा।

1998 में टाटा मोटर्स ने भारत की पहली स्वदेशी यात्री कार टाटा इंडिका को लॉन्च किया। टाटा इंडिका रतन टाटा का एक ड्रीम प्रोजेक्ट था। लेकिन इस कार को उम्मीद के मुताबिक सफलता नहीं मिली। इसकी वजह से 1999 में टाटा मोटर्स को तगड़ा झटका लगा। यहीं से दिलचस्प कहानी शुरू होती है। कम बिक्री के कारण टाटा मोटर्स अपने कार कारोबार को एक साल के भीतर ही बेचना चाहती थी। 1999 में अमेरिका की बड़ी कार निर्माता कंपनी फोर्ड ने इसमें दिलचस्पी दिखाई। इसके चलते 1999 में ही फोर्ड कम्पनी से प्रतिनिधि मंडल भारत मे आया मुंबई के बॉम्बे हाउस स्थित टाटा मोटर्स के हेडक्वार्टर में तीन घण्टे की मीटिंग हुई।

रतन टाटा का अपमान हुआ।

डील के अगले राउंड के लिए रतन टाटा अपनी टीम के साथ बिल फोर्ड से मिलने के लिए अमेरिका गए। बिल फोर्ड उस समय फोर्ड के चेयरमैन थे। दोनों कंपनियों के बीच एक मीटिंग हुई। बिल फोर्ड ने रतन टाटा व उनकी टीम के साथ बातचीत के दौरान टिप्पणी की "टाटा मोटर्स को कार मैन्युफैक्चरिंग के बारे में कुछ नही पता है और उन्हें पर्सनल वेहिकल सेंगमेंट की शुरुआत ही नही करनी चाहिए थी।" फिर उन्होंने ये तक कह दिया कि टाटा मोटर्स के पर्सनल व्हीकल के सेगमेंट को खरीद कर फोर्ड कम्पनी टाटा मोटर्स पर एहसान करेगी। अंत मे पैसों को लेकर डील फाइनल नही हो पाई और रतन टाटा अपनी टीम के साथ भारत वापिस लौट आए।

फोर्ड को 100 साल के इतिहास में सबसे बड़ा घाटा लगा।

कहते हैं ना कि वक़्त पलटते देर नहीं लगती। 2001 में टाटा मोटर्स ने प्रवीण पुरुषोत्तम काडले को अपना एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर बनाया। कम्पनी को लगातार मुनाफ़ा होता गया और 2004 में कम्पनी न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेंज में पंजीकृत हो गई। इसके बाद कम्पनी लग्जरी कारों के सेगमेंट में उतरना चाहती थी। फिर साल 2007 में दुनिया मे ऑटोमोबाइल सेक्टर में सबसे बड़ी कम्पनी फोर्ड मोटर को तगड़ा घटा हुआ। कम्पनी ने अपने वार्षिक रिपोर्ट में 98 हज़ार करोड़ का घाटा दिखाया। फोर्ड मोटर ने लग्जरी कार जैगुआर और लैंड रोवर को बेचने का फैसला किया। 

टाटा ने फोर्ड की जैगुआर-लैंड रोवर के सेगमेंट को खरीदा।

टाटा मोटर्स ने इसको खरीदने में रुचि दिखाई और जून 2007 में अमेरिका की मार्केट में इंटरनल सर्व किया। 9 महीनें के सर्वे को बाद टाटा ने दोनों लग्जरी कारों के सेगमेंट में खरीदने की सलाह बनाई के तभी 2008 में पूरी दुनिया मंदी के चपेट में आ गई। लेकिन इस मंदी के चपेट से भारत अनछुआ रहा। इसके फायदा उठाते हुए रतन टाटा ने 2 जून 2008 में लग्जरी कारों की दुनिया मे कदम रखा और जैगुआर-लैंड रोवर को क़रीब 12 हज़ार करोड़ में खरीद लिया।

मुनाफ़े का सौदा

इसमे दिलचस्प बात ये है कि फ़ोर्ड मोटर ने 1990 में ब्रिटिश कम्पनी जैगुआर को 2.5 बिलियन डॉलर यानि क़रीब 19 हज़ार करोड़ में और साल 2000 में लैंड रोवर को 2.7 बिलियन यानि 20 हज़ार 800 करोड़ में खरीदा था। दोनों ही ब्रिटिश कम्पनियां थी जिसको ख़रीदने में फोर्ड को कुल मिलकर क़रीब 39 हज़ार करोड़ रुपये खर्च करने पड़े जबकि 2008 में टाटा मोटर्स ने इन दोनों कम्पनियों को 12 हज़ार करोड़ रुपये में खरीद लिया। साथ मे टाटा मोटर्स को यूके और ब्राज़ील में जैगुआर और लैंड रोवर की फैक्टरियां, डिज़ाइन स्टूडियो, इंजन व बाकी पार्ट्स के पेटेंट डिज़ाइन भी मिले थे। इसके साथ ही टाटा मोटर्स को दोनों की कम्पनियों के बकाया भी नही चुकाने थे। कुल मिलाकर से मुनाफ़े का सौदा रहा।

बिल फोर्ड ने कहा एहसान कर रहे हैं

2 जून 2008 को जब रतन टाटा ने जैगुआर और लैंड रोवर को खरीदा तो बिल फोर्ड ने कहा कि आप इन्हें ख़रीद कर हम पर एहसान कर रहे हैं। जैगुआर और लैंड रोवर को खरीदने के बाद टाटा मोटर्स ने भारत के बाहर ख़ूब मुनाफा कमाया। 2021 में जारी अपनी रिपोर्ट में कम्पनी ने बताया कि कम्पनी को अपने टोटल मुनाफ़े का 80 फ़ीसदी भारत से बाहर हुआ है।

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