श्री लंका की आर्थिक हालात को देखकर नेपाल हुआ सतर्क, भारत की ओर बढ़ा झुकाव।

श्री लंका की हालत को देखकर नेपाल हुआ चीन से चौकन्ना, भारत की ओर की निगाहें।
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बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव या 'वन बेल्ट, वन रोड' चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की महत्वाकांक्षी परियोजना है। चीन इस विशाल परियोजना को ऐतिहासिक 'सिल्क रूट' का आधुनिक अवतार बताता है। सिल्क रूट मध्य युग में वो रास्ता था, जो चीन को यूरोप और एशिया के बाक़ी देशों से जोड़ता था। चीन उसी तर्ज पर पूरी दुनिया को चीन से जोड़ना चाहता है। इसके लिए चीन पूरी दुनिया में सड़कों, रेलवे लाइनों और समुद्री रास्तों का जाल बुनना चाहता है, जिसके ज़रिए वो पूरी दुनिया से आसानी से कारोबार कर सके। लेकिन भारत इसका लगातार विरोध करता रहा है।

डेस्क: 25 साल लंबे गृह युद्ध के बाद संभलते श्री लंका की भ्रष्टाचार और राजनीति में परिवारवाद, विदेशी कर्ज़, गलत आर्थिक नीतियों ने जो हालत की है उससे सभी परिचित हैं। आलम ये है श्री लंका में लोगों को खाना, दवा, ईंधन, मिल्क पाउडर जैसी रोजाना की जरूरी चीजों के लिए घण्टों लाइन में लगना पड़ रहा है। इसी को देखते हुए भारत के एक पड़ोसी देश नेपाल ने भी कमर कस ली है। हाल ही वर्षों में नेपाल का चीन की तरफ़ झुकाव बढ़ता जा रहा था इसके चलते नेपाल ने भी कमर कस ली है। इसके चलते नेपाल की सत्ताधारी पार्टी चीन की वन बेल्ट वन रॉड या बेल्ट एंड रोड़ इनिशिएटिव(बीआरआई) से सावधान हो गई है। नेपाल ने अब अमेरिका से कर्ज लिया है और भारत की ओर उसका झुकाव बढ़ा है।

नेपाल ने वैश्विक बुनियादी ढांचा परियोजना, बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) को हिमालयी देश में विस्तार देने के लिए पांच साल पहले चीन के साथ समझौता किया था। दोनों देशों ने मई 2017 में नेपाल के तत्कालीन प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल के नेतृत्व में बीआरआई पर समझौता हुआ था। हालांकि दहल को "चीनी समर्थक" माओवादी नेता माना जाता था। वे करीब एक दशक लंबे चले सशस्त्र विद्रोह के बाद हुए संघर्ष विराम की घोषणा के बाद मुख्यधारा की राजनीति में शामिल हुए थे।

उस वक़्त नेपाल ने इस समझौते की तारीफ़ की थी और कहा था कि यह समझौता नेपाल-चीन के रिश्तों के लिए महत्वपूर्ण क्षण है। साथ ही ये भी कहा था कि इससे नेपाल में चीनी निवेश बढ़ेगा जिससे नेपाल में रोजगार के अवसर पैदा होंगे। लेकिन इस समझौते को पांच साल बीत चुके हैं इसपर अभी तक बीआरआई पर कोई काम नही हुआ है। 

2019 की शुरुआत में, नेपाल ने बीआरआई के तहत नौ अलग-अलग परियोजनाओं को आगे बढ़ाने का प्रस्ताव रखा गया था। इसमें जिलॉन्ग/केरुंग से काठमांडू को जोड़ने वाली ट्रांस-हिमालयी रेलवे लाइन, 400 केवी की बिजली ट्रांसमिशन लाइन का विस्तार, नेपाल में तकनीकी विश्वविद्यालय की स्थापना, नई सड़कों, सुरंगों, और पनबिजली परियोजनाओं का निर्माण शामिल था।

बीआरआई परियोजनाओं में तेजी लाने के लिए, चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने अक्टूबर 2019 में काठमांडू का दौरा किया था। हालांकि, बीआरआई समझौते पर हस्ताक्षर को पांच साल बीत चुके हैं, लेकिन एक भी परियोजना पूरी नहीं हुई है।

हालांकि अप्रैल में, नेपाल में चीनी राजदूत होउ यान्की ने चीन की सरकारी मीडिया ग्लोबल टाइम्स अखबार को बताया था कि नेपाल बीआरआई के सबसे महत्वपूर्ण स्तंभों में से एक है। कोरोना वायरस महामारी और नेपाल के राजनीतिक परिदृश्य में बदलाव के कारण "व्यावहारिक सहयोग की गति" धीमी होने के बावजूद परियोजनाएं अभी भी पटरी पर हैं।

चीन पर लगा कर्ज़ देकर जाल में फंसाने का आरोप।

विशेषज्ञों का कहना है कि श्रीलंका की तरफ़ ही चीन नेपाल को कर्ज़ में जाल में फंसाने चाहता है। इसके चलते नेपाली अधिकारी चीन की वित्तीय सहायता को लेकर सचेत हो गए हैं। श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह का निर्माण भी चीन के पैसे से हुआ था। यह कर्ज 6 फीसदी के कॉमर्शियल रेट पर मिला था।

कर्ज चुकाने में असमर्थ होने पर, श्रीलंकाई सरकार ने बंदरगाह के संचालन का जिम्मा चीन को सौंप दिया। इसके बाद, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चीन के ऊपर दूसरे देशों को ‘कर्ज के जाल' में फंसाने का आरोप लगा। अब, पाकिस्तान और मलेशिया सहित कई देशों ने बीआरआई समझौते की शर्तों की अधिक बारीकी से समीक्षा शुरू कर दी है।

भारत नेपाल के हाइड्रोपावर सेक्टर में निवेश करना चाहता है।

हाल ही में नेपाल सरकार का भारत के प्रति सकारात्मक रवैया देखने को मिला है। इसी के चलते चीन के खिलाफ भारत के सहयोगी देश अमेरिका से नेपाल को 500 मिलियन डॉलर का फंड मिल रहा है। दूसरी ओर भारत भी नेपाल में, विशेष रूप से हाइड्रोपावर सेक्टर में, निवेश करने में रुचि दिखा रहा है। वाशिंगटन और नई दिल्ली दोनों लंबे समय से बीआरआई को नकारात्मक नजरिए से देख रहे हैं। अमेरिकी अधिकारियों ने काठमांडू को संभावित कर्ज जाल की भी चेतावनी दी है।

क्या है बीआरआई? क्यों है ये शी जिनपिंग का सपना?

बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव या 'वन बेल्ट, वन रोड' चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की महत्वाकांक्षी परियोजना है। चीन इस विशाल परियोजना को ऐतिहासिक 'सिल्क रूट' का आधुनिक अवतार बताता है।

सिल्क रूट मध्य युग में वो रास्ता था, जो चीन को यूरोप और एशिया के बाक़ी देशों से जोड़ता था। इसके ज़रिए तमाम देशों का कारोबार होता था।

आज चीन उसी तर्ज पर पूरी दुनिया को चीन से जोड़ना चाहता है। इसके लिए चीन पूरी दुनिया में सड़कों, रेलवे लाइनों और समुद्री रास्तों का जाल बुनना चाहता है, जिसके ज़रिए वो पूरी दुनिया से आसानी से कारोबार कर सके। चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग इस योजना से पूरी दुनिया की तरक़्क़ी की बात करते हैं।

मगर विदेश नीति के विशेषज्ञ कहते हैं कि इस 'बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव' से चीन, सुपरपावर बनने का अपना ख़्वाब पूरा करना चाहता है। भारत भी इसका विरोध कर रहा है।

अगर चीन अपनी योजना के तहत, रेल-रोड का जाल बिछाने में कामयाब हुआ, तो इससे उसके लिए बाक़ी दुनिया से कारोबार करना काफ़ी आसान हो जाएगा।

वहीं भारत समेत कई देशों के जानकार, इसे चीन की गहरी साज़िश बताते हैं।

वो कहते हैं कि आधुनिक सिल्क रूट की आड़ में असल में चीन अपनी महत्वाकांक्षाओं का विस्तार कर रहा है। वो पश्चिमी देशों की तर्ज़ पर आधुनिक युग में तमाम देशों को अपना आर्थिक ग़ुलाम बनाना चाहता है।

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