बिलकिस बानो केस- दोषियों की रिहाई के बाद उनके गांव सिंहवाड़ा में मनाया गया जश्न

गांधीनगर - साल 2002 के हिंदू मुस्लिम दंगे जिसमें हजारों लोगों की मौत हुई. भीड़ ने मासूम बच्चों की हत्या, महिलाओं का गैंगरेप किया. उन्हीं में से एक महिला की कहानी है, जिसका 20 साल की उम्र में भीड़ ने गैंगरेप किया उसवक्त वो 5 महीने की गर्भवती थी. इतना ही नहीं भीड़ ने उस महिला के परिवार के 14 लोगों की हत्या और उसकी 3 साल की बेटी की पत्थर से कुचलकर हत्या कर दी. उस महिला का नाम बिलकिस बानो है. जिसके 11 दोषियों को बीती 15 अगस्त को गुजरात सरकार ने रिहाई दी है.
3 मार्च 2002 के इस अपराध की जांच सीबीआई ने की थी. जिसके बाद साल 2008 में बॉम्बे सेशन कोर्ट ने 11 लोगों को उम्र कैद की सजा सुनाई थी. बीती 15 अगस्त को गुजरात के गोधरा में सजा काट रहे इन 11 दोषियों को गुजरात सरकार की सजा माफी यानी रिमिशन पॉलिसी के तहत रिहा कर दिया गया. जिसके बाद जब ये लोग अपने गांव सिंहवाड़ा गए तो वहां लोकल लोगों ने मिठाई बांटकर इनका स्वागत किया.
एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक कई लोगों ने अपने घरों पर डीजी लगाकर डांस करते हुए जश्न मनाया. वहीं कुछ लोग इस मौके पर अपने चेहरों पर हल्दी का टीका लगाए हुए नज़र आये. रिहा किए गए 11 लोगों में से कुछ 15 साल से जेल में थे तो कुछ 18 सालों से जेल में थे.
आरोपियों का गांव सिंहवाड़ा गांव दरअसल किसी गांव से बड़ा व किसी कस्बे से छोटा है. यहां बड़ी बड़ी दुकानें व पुलिस स्टेशन है. बिलकिस बानो गैंगरेप केस के चलते इस गांव ने आसपास के क्षेत्र में एक तरह की प्रसिद्धि हासिल की है.
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार कम से कम दो लोगों ने पत्रकारों से बात की. राधेश्याम साही उन्हीं में से एक हैं. साही की याचिका पर ही सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार को एक रिमिशन कमेटी बनाकर बिलकिस बानो के दोषियों की रिहाई पर विचार करने के लिए कहा था. मीडिया से बातचीत में राधेश्याम साही ने बताया कि उन्हें तत्कालीन केंद्र सरकार ने गलत तरीके से फंसाया था. उन्होंने कहा कि वह राज्य और केंद्र सरकार का संघर्ष के बीच मे फंस गए.
इस मामले में अन्य दोषी गोविंद रावल ने बताया कि उन्हें सिर्फ इस वजह से फंसाया गया क्योंकि वह एक हिंदूवादी संगठन से जुड़े थे. एक वायरल वीडियो के देखा जा सकता है कि वह कह रहे हैं कि वह रिहा रिहा होकर खुश हैं और अपनी जिंदगी फिर से शुरू करेंगे. वहीं एक दुकानदार नाम न बताने की शर्त पर कहा कि गांव में अब तक किसी को भी इतनी सजा नहीं मिली है. दोषियों को जब मुंबई की जेल में भेजा गया था तो उनके परिवारों को बहुत दिक्कतें हुईं थीं.
साल 2004 से 2011 तक महाराष्ट्र में सेशन व हाईकोर्ट में इन दोषियों के केस लड़ने वाले वकील गोपाल सिंह सोलंकी ने बताया कि इन्हें रिहा करने में कुछ भी गलत नहीं है, ये उनका अधिकार है. उन्होंने बताया कि हमारे यहां सजा देने की प्रक्रिया सुधारात्मक सिद्धान्त पर टिकी है जिसके तहत जेल में बंद लोगों को अपनी जिंदगी एक बार फिर से शुरु करने का मौका मिलना चाहिए.
लेकिन गोपाल सिंह सोलंकी के बयान पर एक वरिष्ठ वकील ने कहा कि चिंता लोगों को रिहाई मिलने पर नहीं जताई जा रही हैबल्कि इतने जघन्य अपराध के मामले में दोषी को छोड़ने पर जताई जा रही है.
उन्होंने बताया कि कई लोग अपनी सजा पूरी करने के बाद भी रिहाई का इंतजार कर रहे हैं. लेकिन उनकी कोई सुनवाई नहीं हो रही है. कई लोग कम गंभीर अपराधों के लिए सालों से जेल में हैं.
साल 2002 में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद मोदी की सरकार में हिंदू-मुस्लिम दंगे(Gujrat Riots 2002) हुए थे. जिनमें 1 हजार से ज्यादा लोग मारे गए थे. आंकड़ों के मुताबिक मरने वालों में ज्यादातर मुसलमान लोग थे. दंगों में सैंकड़ों महिलाओं के बलात्कार और हत्याएं हुई थीं. इनमें से 20 साल की बिलकिस बानो(Bilkis Bano Gang Rape) भी थी. जोकि 5 महीने की गर्भवती थीं.
बिलकिस का गुजरात के अहमदाबाद के पास रणधी कूपर गांव में 11 लोगों ने गैंगरेप किया था और उनकी 3 साल की बेटी सालेह की भी पत्थर से सिर फोड़कर हत्या कर दी थी. इन दंगों में बिलकिस बानो की मां, छोटी बहन व अन्य रिश्तेदारों समेत कुल 14 लोगों की हत्या हुई थी.
21 जनवरी 2008 को बिलकिस बानो केस को अहमदाबाद से मुंबई की एक स्पेशल सीबीआई कोर्ट(Special CBI Court) को ट्रांसफर किया गया था. 11 अभियुक्तों को बिलकिस बानो के साथ गैंगरेप व परिवार के 7 सदस्यों की हत्या के आरोप में उम्रकैद की सजा सुनाई थी. बाद में बॉम्बे हाईकोर्ट ने सभी 11 दोषियों की सजा को बरकरार रखा था. कुछ समय पहले 15 साल की सजा काटने के बाद दोषियों में से एक ने समय से पहले रिहाई के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार को सजा में छूट के मुद्दे पर गौर करने का निर्देश दिया था.
कोर्ट के निर्देश पर गुजरात सरकार ने इस मामले में एक कमेटी का गठन किया. कमेटी ने कुछ महीने पहले मामले में सभी 11 दोषियों को रिहा करने के पक्ष में एकमत से फैसला लिया था. कमेटी ने राज्य सरकार को सिफारिश भेजी गई. जिसके बाद दोषियों को कल यानी 15 अगस्त को राज्य सरकार ने रिहाई का आदेश दिया. जिन 11 दोषियों को समय से पहले रिहा किया गया है.
उनमें जसवंतभाई नई, गोविंद रावल, शैलेश भट्ट, राधेश्याम साही, बिपिन चन्द्र जोशी, केसर वोहानिया, प्रदीप मोधिरया, बकाभाई वोहानिया, राजू सोनी, मितेश भट्ट और रमेश चंदना शामिल हैं.