बिलकिस बानो - दोषियों को संस्कारी ब्राह्मण बताने वाले BJP विधायक सीके राउल ने दी सफाई

जून से सितंबर 2021 के बीच कमेटी की चार मीटिंग हुई
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"हमने फैसला लेते समय किसी की जाति नहीं देखी. मैंने ब्राह्मण के बारे में जो बताया वह समग्र रूप से जाति के संदर्भ में नहीं है. मैंने एक ब्राह्मण व्यक्ति के बारे में बात की जो बलात्कार की घटना के समय वहां मौजूद नहीं था. हालांकि वह वहां नहीं था, लेकिन उस पर अपराध का आरोप लगाया गया था कि मुझे पता चला."

गांधीनगर - गुजरात मे 2002 के दंगों(Gujarat Riots 2002) में गैंग रेप पीड़िता बिलकिस बानो(Bilkis Bano Case) के दोषियों को गुजरात सरकार के रिहा करने के फैसले के बाद लगातार बीजेपी व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विपक्ष के निशाने पर हैं. वीरवार, 18 अगस्त को गुजरात के बीजेपी विधायक सीके राउल के बयान ने बीजेपी की मुश्किलों को और बढ़ा दिया है. सीके राउल(CK Raul) ने कल एक यूट्यूब न्यूज चैनल को दिए इंटरव्यू में कहा कि दोषी ब्राह्मण थे और संस्कारी थे इसलिए उनको रिहा किया है. जिसके बाद विवाद और बढ़ गया.

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दरअसल बीजेपी विधायक सीके राउल उस कमेटी के सदस्य थे जिसने सभी 11 दोषियों को एकमत से रिहा करने का फैसला लिया था. विवाद बढ़ने के बाद सीके राउल ने अपनी सफाई पेश की है. 


सीके राउल ने एक मीडिया चैनल को दिए इंटरव्यू में सफ़ाई पेश करते हुए कहा कि उनके बयान को गलत तरीके से पेश किया गया है. उन्होंने कहा - 14 साल की कैद के संदर्भ में राज्य सरकार का एक नियम है जिसमें एक कैदी जिसका जेल में अच्छा व्यवहार रहा हो, कैदी ने रचनात्मक कार्य किया हो, उसके खिलाफ सजा के दौरान उन्होंने कोई हिंसा न कि हो तो उसकी सजा माफ की जा सकती है. सुप्रीम कोर्ट व राज्य सरकार के डाक्यूमेंट्स के अनुसार इसके लिए एक रूल है.

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"रूल्स के अनुसार सभी दोषियों का व्यवहार अच्छा था. उन्होंने अपनी सजा को झेला है. जेल के अंदर उनका व्यवहार अच्छा था. यह सब और सुप्रीम कोर्ट के दिशा निदेशों को ध्यान में रखते हुए समिति ने सर्वसम्मति से सभी दोषियों की सजा को माफ करने का फैसला किया. मेरे  साथ जिला कलेक्टर, जिला न्यायाधीश और जेलर भी समिति का हिस्सा थे."

उन्होंने कहा - जून से सितंबर 2021 के बीच कमेटी की चार मीटिंग हुई. सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार से इस मामले पर फैसला लेने को कहा था. समिति ने सजा माफी पर निर्णय लेते समय 1992 में जारी दिशा निर्देशों का संदर्भ लिया.

जब सीके राउल से पूछा गया कि सजा माफी को लेकर क्या समिति के सदस्यों में कोई मतभेद था क्योंकि सभी 11 गैंगरेप के मामले में दोषी थे, तो इन्होंने कहा, "नहीं. किसी की अलग राय नहीं थी. सभी को लगा कि उन्हें मुक्त कर देना चाहिए. 11 दोषियों में कुछ निर्दोष हैं, जो अपराध के समय मौके पर मौजूद नहीं थे. मुझे पता चला कि एक भट्ट थे जो घटना के वक्त मौजूद ही नहीं थे."

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लेकिन कोर्ट ने उन्हें दोषी पाया. सिर्फ इसलिए कि जेल में उनका अच्छा ट्रैक रिकॉर्ड है, क्या उन्हें रिहा किया जा सकता है? इसके जवाब में राउल ने कहा,"कोर्ट के डॉक्यूमेंटस में गुण दोषों की फिर से जांच की गई. उसे पुनः एग्जामिन करने के लिए भेजा गया था. चूंकि जब घटना हुई तब केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी. उन्होंने केस को गुजरात से मुंबई ट्रांसफर कर दिया. तबादला एवं निर्णय पत्रों के आधार पर न्यायाधीश एवं कलेक्टर ने कहा कि इस मामले में नियमानुसार रिहाई की व्यवस्था की जा सकती है. जो कुछ हुआ वह नियम के अनुसार हुआ."

 कैदियों के ब्राह्मण होने के चलते रिहाई हुई के सवाल पर उन्होंने कहा,"हमने फैसला लेते समय किसी की जाति नहीं देखी. मैंने ब्राह्मण के बारे में जो बताया वह समग्र रूप से जाति के संदर्भ में नहीं है. मैंने एक ब्राह्मण व्यक्ति के बारे में बात की जो बलात्कार की घटना के समय वहां मौजूद नहीं था. हालांकि वह वहां नहीं था, लेकिन उस पर अपराध का आरोप लगाया गया था कि मुझे पता चला."

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