क्या है ग्रीन हाइड्रोजन और इसे लेकर अंबानी-अडानी में क्यों मची हुई है होड़

ग्रीन हाइड्रोजन को सबसे अच्छे और स्वच्छ ईंधनों में से एक माना जाता है
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इस समय जितना हाइड्रोजन उत्पादन किया जाता है, उसमें 1 फ़ीसदी से भी कम हाइड्रोजन होता है. अंतरराष्ट्रीय अक्षय ऊर्जा एजेंसी(IRENA) का कहना है कि साल 2050 तक कुल ऊर्जा में 12 फ़ीसदी हिस्सेदारी ग्रीन एनर्जी की होगी. इसलिए भारत के बड़े औद्योगिक समूह इस सेक्टर में अपने पैर पसार रहे हैं.

नई दिल्ली - भारत के दो सबसे बड़े अरबपतियों गौतम अडानी(Gautam Adani) व मुकेश अंबानी(Mukesh Ambani) के बीच के कड़ी प्रतिस्पर्धा जगज़ाहिर है. इस समय क्लीन एनर्जी(Clean Energy) या हरित एनर्जी के क्षेत्र में दोनों एक-दूसरे को जोरदार टक्कर दे रहे हैं. दोनों ने ग्रीन हाइड्रोजन(Green Hydrogen) में अरबों रुपये का इन्वेस्ट करने का एलान किया है. 

एशिया के पहले व दुनिया के तीसरे सबसे अमीर आदमी अडानी ग्रुप के अध्यक्ष गौतम अडानी ने घोषणा की है कि उनकी कंपनी भारत मे 3 गीगाफैक्ट्रीज(Gigafactories)
 लगाने जा रही है, जो सोलर मॉड्यूल्स(Solar Modules), विंड टरबाइनस(Wind Turbines) और हाइड्रोजन इलेक्ट्रोलाइजर्स(hydrogen electrolyzers) बनाएंगी. अडानी ग्रुप ने कहा कि ग्रीन एनर्जी बनाने के लिए उन्होंने फ्रांस की TotalEnergies के साथ पार्टनरशिप की है.

वहीं अडानी के प्रतिद्वंद्वी रिलायंस इंडस्ट्रीज की तरफ से घोषणा की गई है कि वो अमेरिका के कैलिफोर्निया स्थित सौर ऊर्जा सॉफ्टवेयर डेवलपर SenseHawk में बड़ी हिस्सेदारी खरीदेंगे. उनका कहना है कि यह ग्रीन एनर्जी सेक्टर में उनके इन्वेस्टमेंट का हिस्सा है.

कुल मिलाकर देखें तो अगले 3 सालों में रिलायंस इंडस्ट्रीज ने इस सेक्टर में 10 बिलियन डॉलर यानी करीब 80 हजार करोड़ रुपये का निवेश करने की योजना बनाई है. वही अडानी ग्रुप क्लीन एनर्जी की दिशा में अगले एक दशक में 70 बिलियन डॉलर यानी करीब 5.6 लाख करोड रुपए इन्वेस्ट करेगा.

इस तरह दोनों कंपनियों ने स्पष्ट कर दिया है कि वे देश की ग्रीन हाइड्रोजन सेक्टर में बिजनेस करना चाहती हैं और इसे लेकर दोनों में कड़ी प्रतिस्पर्धा चल रही है. आइए जानते हैं कि ग्रीन एनर्जी है क्या? और क्यों यह दोनों कंपनियां इसमें इतनी रुचि दिखा रही हैं?

दरअसल ग्रीन हाइड्रोजन को सबसे अच्छे और स्वच्छ ईंधनों में से एक माना जाता है. पानी के इलेक्ट्रोलिसिस के दौरान हाइड्रोजन निकलती है और उसे ग्रीन हाइड्रोजन कहा जाता है. इस प्रक्रिया यानी कि इलेक्ट्रोलिसिस या इलेक्ट्रिक करंट के जरिए पानी में से हाइड्रोजन और ऑक्सीजन को अलग कर दिया जाता है. ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन में भी क्लीन एनर्जी(Solar Energy, Wind Energy) का इस्तेमाल किया जाता है इस तरह ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन में कोई ग्रीन हाउस गैस नहीं निकलती, जो पर्यावरण के लिए खतरनाक होती है.

एनर्जी के परंपरागत साधनों जैसे कि कोयला, गैस या पेट्रोलियम इत्यादि में बहुत ज्यादा कार्बन निकलता है. जिसके कारण ये पर्यावरण के लिए काफी हानिकारक होता है. जलवायु परिवर्तन के लिए इन्हीं ईंधनों को काफी ज्यादा जिम्मेदार ठहराया गया है, इसलिए अंतरराष्ट्रीय और घरेलू संस्थाएं स्वस्थ ऊर्जा जैसे कि सोलर एनर्जी, विंड एनर्जी हाइड्रोजन एनर्जी के इस्तेमाल पर जोर दे रही हैं.

यही वजह है कि दुनिया के तमाम देश अपने कुल ईंधन में अक्षय ऊर्जा या क्लीन एनर्जी की हिस्सेदारी बढ़ा रहे है. इस समय जितना हाइड्रोजन उत्पादन किया जाता है, उसमें 1 फ़ीसदी से भी कम हाइड्रोजन होता है. अंतरराष्ट्रीय अक्षय ऊर्जा एजेंसी(IRENA- The International Renewal Energy Agency) का कहना है कि साल 2050 तक कुल ऊर्जा में 12 फ़ीसदी हिस्सेदारी ग्रीन एनर्जी की होगी. इसलिए भारत के बड़े औद्योगिक समूह इस सेक्टर में अपने पैर पसार रहे हैं.

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