क्यों नीतीश कुमार ने फिर से बीजेपी को दिया झटका?

नीतीश कुमार यूनिफॉर्म सिविल कोड(Uniform Civil Code) के विरोधी माने जाते हैं
 | 
SS
लालू प्रसाद यादव के बीमार होने पर नीतीश कुमार न केवल उन्हें देखने गए बल्कि मीडिया में में घोषणा की थी कि बिहार सरकार  सरकार लालू यादव के इलाज का सारा खर्चा उठाएगी. नीतीश कुमार के बीजेपी से अलग होने की कहानी में AIIMS अस्पताल की भी अहम भूमिका रही है जहां लालू प्रसाद यादव अपना इलाज करा रहे थे.

पटना - साल 1974 में जेपी आंदोलन(Jai Prakash Narayan Movement) से लालू प्रसाद यादव के सहयोगी रहे नीतीश कुमार, जीतनराम मांझी(Jitan Ram Manjhi) के कुछ महीनों के मुख्यमंत्री के काल को छोड़ दें तो , करीब 17 साल तक बिहार के मुख्यमंत्री पद पर बने हुए हैं. लेकिन इसकी सबसे बड़ी वजह है उनका पिछड़ों और दलितों को साथ लेकर चलने का तरीका. लेकिन अब नीतीश कुमार बिहार के राजनीति से ऊपर उठकर केंद्र की राजनीति पर अपना निशाना साधना चाहते हैं. 

ss

बीजेपी ने कई बार दोहराया है कि वो क्षेत्रीय पार्टियों को देश से खत्म करना चाहती है. ऐसे में पहले से बीजेपी को चाल को भापकर नीतीश कुमार ने बीजेपी को पटखनी देते हुए अपने पुराने सहयोगी लालू प्रसाद यादव के परिवार का हाथ थामा है. ऐसे में कई सारी वजहों के चलते नीतीश कुमार बीजेपी को छोड़ लालू यादव के पाले में आ गए हैं. चलिये आपको तमाम सियासी घटनाक्रम के बारे में रूबरू कराते हैं.

आरसीपी सिंह के बयान

बीते कल को हुआ उसकी पटकथा उसी दिन लिख दी गई थी जब जेडीयू के अंदर आरसीपी(Ram Chander Prasad) ने कथित भ्रष्टाचार की खबर के बाद जेडीयू और  मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर हमला किया था. आरसीपी सिंह ने नीतीश कुमार पर हमला करते हुए दो ऐसी बातें कहीं जो खुल्लम खुल्ला नीतीश कुमार के धुर विरोधी भी नहीं करते हैं. आरसीपी सिंह ने कहा,"नीतीश कुमार कभी प्रधानमंत्री नहीं बन सकते, सात जन्म तक भी नहीं." इसके अलावा उन्होंने कहा," जनता दल यूनाइटेड डूबता हुआ जहाज है. आप लोग तैयार रहिए, एकजुट रहिए, चला जाएगा."

ss

ये दो ऐसी बातें थीं जिसको लेकर नीतीश कुमार हमेशा से कहीं ज्यादा सावधानी बरतते रहे हैं. राजनीतिक तौर पर उनकी महत्वकांक्षा देश के शीर्ष पद पर बैठने की रही है. यही वजह रही कि जेडीयू की पार्लियामेंट्री बोर्ड(JDU Parliamentary Board Meeting) के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा ने बीजेपी से गठबंधन टूटने के बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस में सबसे पहले कहा कि नीतीश कुमार में प्रधानमंत्री बनने के सारे गुण हैं. इसके जवाब में जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह(Lallan Singh) ने ऐसी दो बातें कहीं जिससे साबित हो गया था कि जेडीयू और बीजेपी की राह जल्द ही जुदा होने वाली है.


चिराग पासवान का बनाया बीजेपी ने मोहरा

ललन सिंह ने कहा कि पहली बात यही कही कि बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान बीजेपी ने चिराग पासवान(Chirag Paswan) को हमारे नुकसान के लिए खड़ा किया था और दूसरी बात हमारी पार्टी को तोड़ने की कोशिश की गई थी. साफ तौर पर निशाना आरसीपी सिंह की बीजेपी से नजदीकियों की तरफ था. इसका जिक्र खुद नीतीश कुमार ने पटना में हुई सांसदों और विधायकों की मीटिंग में भी किया. नीतीश कुमार ने नेताओं को संबोधित करते हुए कहा कि हमारा लगातार अपमान किया गया, हमारी पार्टी को कमजोर करने की कोशिश की जा रही है.

ss

आरसीपी सिंह की बीजेपी नेता के साथ गुप्त बातचीत

इसकी एक सबसे बड़ी वजह कथित तौर पर बीजेपी के एक नेता की आरसीपी सिंह के साथ फोन पर हुई बात भी है. इस बातचीत में आरसीपी सिंह को जेडीयू में कुछ करने को कहा जा रहा था.

ss

हालांकि इस घटनाक्रम पर बीजेपी की तरफ से किसी बड़े नेता का कोई बयान नहीं आया लेकिन नई दिल्ली एयरपोर्ट से पटना लौटते हुए उड़े हुए चेहरे के साथ शाहनवाज हुसैन(Shahnawaz Hussain) ने जरूर कहा," हमारी पार्टी किसी को नहीं तोड़ती है, हमलोग केवल अपनी पार्टी को मजबूत करते हैं.

जेपी नड्डा का बयान

इससे पहले बिहार में अगस्त शुरुआत में बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा(BJP National President JP Nadda) का बयान भी अहम माना जा रहा है. जिसमें उन्होंने कहा था कि देश में आने वाले दिनों में सभी क्षेत्रीय दल खत्म हो जाएंगे. इससे पहले बीजेपी ने महाराष्ट्र में शिवसेना को दो गुटों में तोड़ दिया था. उसको लेकर आशंकित जेडीयू के सर्वहारा नीतीश कुमार ने पहले ही बीजेपी से किनारा कर लिया.

ss

ये हाल ही के घटनाक्रम हैं. लेकिन विशेषज्ञ बताते हैं कि जेडीयू आरसीपी सिंह(RCP Singh) पर इसका ठीकरा फोड़ रही है. दरअसल नीतीश कुमार लंबे समय से बीजेपी से अलग होने का मौका ढूंढ रहे थे. बताया जाता है कि मुख्यमंत्री होने के बावजूद भी बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व द्वारा उनपर लगातार दबाव बनाया जा रहा था. नीतीश कुमार विधानसभा स्पीकर का पद जेडीयू(Janta Dal United) के कोटे से चाहते थे लेकिन बीजेपी केंद्रीय नेतृत्व ने बीजेपी कोटे से विजय कुमार सिन्हा को विधानसभा स्पीकर बनाने का दबाव बनाया और बावजूद इसके की ये विजय कुमार सिन्हा और नीतीश कुमार एक दूसरे को ज्यादा पसदं नहीं करते.

हिंदू राष्ट्र पर मतभेद

नीतीश कुमार यूनिफॉर्म सिविल कोड(Uniform Civil Code) के विरोधी माने जाते हैं. लेकिन बीजेपी ने उनपर समर्थन का दबाव बनाया. तीन तलाक बिल(Triple Talaq Bill), एनआरसी(National Register Of Citizenship), अग्निपथ योजना(Agnipath Yojana), जम्मू कश्मीर में धारा 370(Jammu Kashmir Article 370) जैसे मुद्दों पर बीजेपी और जेडीयू की विचारधारा मेल नहीं खा रही थी.

ss

फिर भी बीजेपी की तरफ से नीतीश कुमार पर लगातार दबाव बनाया जा रहा था. यही वजह से है कि गठबंधन से अलग होने से पहले अपने नेताओं के सामने नीतीश कुमार ने कहा भी कि बीजेपी ने उनको अपमानित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है.

सुशील मोदी - नीतीश कुमार की जोड़ी तोड़ी गई

बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार और सुशील कुमार(Sushil Kumar Modi) मोदी की अच्छी जोड़ी मानी जाती है. लेकिन बीजेपी केंद्रीय नेतृत्व ने सुशील कुमार मोदी को बिहार सरकार से बाहर का रास्ता दिखाया. बिहार बीजेपी के कई नेताओं नेसाल  2020 के चुनाव के दौरान भी माना था कि सरकार तो आएगी लेकिन सुशील मोदी-नीतीश कुमार की जोड़ी आगे नहीं रहेगी. सुशील कुमार मोदी को बाद में बीजेपी ने राज्यसभा भेज तो दिया लेकिन उनकी कमी बिहार बीजेपी को सोमवार को जरूर खली होगी.
 

ss

बताया जा रहा है कि सोमवार को बीजेपी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से लगाता संपर्क करने की कोशिश कर रही थी और वे फोन लाइन पर नहीं आ रहे थे. लेकिन अगर सुशील कुमार मोदी बिहार की राजनीति में सक्रिय होते तो नीतीश कुमार से संपर्क करना आसान होता. सरकार बनने के बाद विधानसभा अध्यक्ष विजय कुमार सिन्हा(Vijay कुमार Sinha) के साथ नीतीश कुमार की नोंकझोंक को दुनिया भर में लाइव देखा गया था.

लालू यादव के साथ AIIMS में अहम मुलाकात

जातीय गणना को लेकर भी नीतीश कुमार ने अलग रास्ता लिया था. लेकिन तब भी बिहार बीजेपी ने केंद्रीय नेतृत्व के उलट गठबंधन को बनाये रखने की कोशिश की. इसके बाद नीतीश कुमार इफ्तार पार्टी में तेजस्वी यादव के घर पहुंचे और वहां कुछ दूर पैदल चलकर उन्होंने बीजेपी को एक संकेत दे दिया था.

ss

इसके बाद लालू प्रसाद यादव के बीमार होने पर नीतीश कुमार न केवल उन्हें देखने गए बल्कि मीडिया में में घोषणा की थी कि बिहार सरकार सरकार लालू यादव के इलाज का सारा खर्चा उठाएगी. नीतीश कुमार के बीजेपी से अलग होने की कहानी में AIIMS(All India Institute of Medical Sciences)  अस्पताल की भी अहम भूमिका रही है जहां लालू प्रसाद यादव अपना इलाज करा रहे थे.

नारायण सिंह की भूमिका

वही जेडीयू के वरिष्ठ नेता नारायण सिंह भी इलाज कराने पहुंचे थे. इन दो समाजवादी धड़े के नेताओं की आपसी मुलाकातों ने महागठबंधन को एकजुट करने में अहम भूमिका निभाई. नारायण सिंह(Narayan Singh) उन वरिष्ठ नेताओं में से हैं जो राजनीतिक मुद्दों पर नीतीश कुमार से सलाह मशविरा करते रहते हैं.

ss

वहीं दूसरी तरफ पार्टी के अंदर आरसीपी सिंह की वजह से पार्टी का संकट कम होने का नाम नहीं ले रहा था. पार्टी अध्यक्ष ललन सिंह के साथ उनकी लगातार खींचतान चल रही थी. 

हमेशा विवादों में रहे आरसीपी सिंह

ss

कभी तेजस्वी यादव ने भी आरसीपी टैक्स का जिक्र किया था. उन्ही आरसीपी सिंह पर पार्टी की ओर से आर्थिक अनियमितता का आरोप भी है. जिसके जवाब में उन्होंने पार्टी से इस्तीफा दे दिया है. अब बुधवार को फिर से नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव(चाचा भतीजे की जोड़ी) सरकार बनाने जा रही है. लेकिन माना जा रहा है कि बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व खामोश नहीं बैठने वाला है.

Latest News

Featured

Around The Web