इमरजेंसी और जेपी आंदोलन के आंदोलनकारी हीरो हैं तो अग्निपथ के आंदोलनकारी अराजक कैसे?

जेपी आन्दोलन और इमरजेंसी के दौरान भी सरकारी संपत्तियों को नुकसान पहुंचाया गया था
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Indra
ज्यादातर आंदोलनों की तरह ही इस आन्दोलन में भी सरकारी संपत्तियों को नुकसान पहुंचाया गया, कुछ वैसा ही नुकसान जैसा हाल के दिनों में अग्निपथ योजना के खिलाफ हुए हिंसक विरोध प्रदर्शन के दौरान देखने को मिला। दोनों ही आन्दोलन में युवाओं ने सरकार के खिलाफ रोष का प्रदर्शन किया था। अग्निपथ को लेकर सबसे उग्र प्रदर्शन बिहार में देखने को मिला। आपातकाल के खिलाफ भी सबसे उग्र प्रदर्शन बिहार के युवाओं ने ही किया था।

दिल्ली - हाल ही में देश में चल रहे अग्निपथ आंदोलन के दौरान हुई भारी हिंसा के बाद देश में एक नई बहस छिड़ गई है। सरकार एक और हिंसा में शामिल युवाओं को अराजक ठहरा कर सरकारी नौकरियों से वंचित करने का कह रही है और दूसरी ओर एक बुद्धिजीवियों का धड़ा कहता है कि देश में पहले भी हिंसक आंदोलन होते रहे हैं तो युवाओं पर ऐसा कड़ा कदम उठाने से पहले सरकार को सोचना चाहिए।

लोग इंदिरा गांधी के समय की इमरजेंसी और जेपी आंदोलन के दौरान हुई हिंसा की भी चर्चा कर रहे हैं। अगर उस समय के आंदोलनकारियों को सरकारी हीरो मानती है तो अग्निपथ आंदोलनकारियों के साथ सौतेला व्यवहार क्यों हो रहा है। अगर इंद्रा गांधी जी के समय की बात करे तो किस तरह रेडियो पर घोषणा हुई की, भाईयो और बहनों राष्ट्रपति जी ने आपातकाल की घोषणा की है, इससे आतंकित होने का कोई कारण नहीं है”।

26 जून साल 1975 की सुबह तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आपातकाल की घोषणा करते हुए इन्हीं शब्दों का इस्तेमाल किया था। रेडियो पर आए देश के नाम इस संदेश में आतंकित न होने का आग्रह नहीं, आदेश था। जाहिर है इससे लोगों में आतंक फैल गया। नागरिक अधिक कुचल दिए गए। मीडिया का मुंह बंद कर दिया गया। विपक्षी नेता जेल में ठूंस दिए गए। जनता पर कानून हंटर बनकर बरसने लगा।

दूसरी तरफ प्रख्यात स्वतंत्रता सेनानी व गांधीवादी नेता जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में विपक्ष और छात्रों ने इंदिरा के आपातकाल का पुरजोर विरोध किया। जेपी ने आपातकाल को लोकतंत्र का काला अध्याय बताते हुए संपूर्ण क्रांति का उद्घोष कर दिया। आपातकाल विरोधी आन्दोलन में देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार तक शामिल रहे। नीतीश कुमार और लालू यादव तो जेपी आन्दोलन की ही देन माने जाते हैं।

जेपी इस आंदोलन को अहिंसक रखना चाहते थे। लेकिन जोशीले युवा कई दफा संयम छोड़ हिंसा में लिप्त हुए। कहीं बसों को जला दिया गया तो कहीं सरकारी भवनों को फूंक दिया गया। कुल मिलाकर ज्यादातर आंदोलनों की तरह ही इस आन्दोलन में भी सरकारी संपत्तियों को नुकसान पहुंचाया गया, कुछ वैसा ही नुकसान जैसा हाल के दिनों में अग्निपथ योजना के खिलाफ हुए हिंसक विरोध प्रदर्शन के दौरान देखने को मिला। दोनों ही आन्दोलन में युवाओं ने सरकार के खिलाफ रोष का प्रदर्शन किया था। अग्निपथ को लेकर सबसे उग्र प्रदर्शन बिहार में देखने को मिला। आपातकाल के खिलाफ भी सबसे उग्रप्रदर्शन बिहार के युवाओं ने ही किया था।

हालांकि सरकार बहुत सुविधाजनक तरीके से जेपी आंदोलन में शामिल युवाओं को तो सेनानी और हीरो मानती है लेकिन अग्निपथ योजना का विरोध करने वालों को अराजक। जयप्रकाश नारायण के आंदोलन में शामिल लोगों को आज जेपी सेनानी के नाम से जाना जाता है। बिहार की नीतीश सरकार, मध्यप्रदेश की शिवराज सरकार जेपी सेनानियों को 5000 से 10,000 रुपये तक का पेंशन देती है। साथ ही कई अन्य सुविधाएं भी दी जाती हैं। अलग-अलग गोष्ठियों में जेपी सेनानियों को सम्मानित करने का भी चलन देखा गया है।

दूसरी तरफ रक्षा मंत्रालय ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर जानकारी दी है कि अग्निपथ योजना के खिलाफ प्रदर्शन करने वाले युवाओं नौकरी नहीं दी जाएगी। भर्ती में शामिल होने के लिए पुलिस वेरिफिकेशन और ऐसा चरित्र प्रमाण पत्र अनिवार्य है, जिसमें ये स्पष्ट हो की अमुक युवा विरोध प्रदर्शन में शामिल नहीं था। जबकि अग्निपथ योजना में कमियों को स्वीकार करते हुए केंद्र सरकार खुद कई बदलाव कर चुकी है। ऐसे में योजना पर लगातार सवाल उठ रहे हैं और युवाओं में भारी रोष है।

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