बर्बाद होता सड़ता अनाज जिम्मेदार कौन!

रखरखाव के अभाव में सैकड़ों टन अनाज के बर्बाद हो जाने की जानकारी स्वाभाविक ही विचलित करती है। 
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अनाज
जब सरकार खाद्यान्न की किल्लत से बचने और महंगाई से पार पाने के लिए कई अनाजों के निर्यात पर रोक लगा चुकी है, रखरखाव के अभाव में सैकड़ों टन अनाज के बर्बाद हो जाने की जानकारी स्वाभाविक ही विचलित करती है। सूचनाधिकार अधिनियम के तहत मांगी गई एक जानकारी में खुलासा हुआ है कि पिछले वित्त वर्ष के दौरान प्राकृतिक आपदा और रखरखाव ठीक न होने के कारण करीब सत्रह सौ टन अनाज बर्बाद हो गया। अंदाजा लगाया जा सकता है कि इतने अनाज से कितने परिवारों का कितने वक्त तक पेट भरा जा सकता था।

दिल्ली. इस वक्त जब देश की बहुसंख्य आबादी मुफ्त राशन पर निर्भर है, लापरवाही के चलते बर्बाद हो गया यह अनाज उनके कितना काम आता। मगर भारतीय खाद्य निगम की लंबी नींद की वजह से खाद्यान्न की सुरक्षा लगातार एक चुनौती बनी हुई है। हालांकि अनाज की यह बर्बादी कोई नई घटना नहीं है और न भारतीय खाद्य निगम ने जो आंकड़े दिए हैं, वह बहुत चौंकाने वाला है। बरसों से यह सिलसिला चला आ रहा है। हर साल अनाज के रखरखाव की व्यवस्था दुरुस्त करने के वादे दोहराए जाते हैं, मगर फिर नतीजा वही ढाक के तीन पात निकलता है। 

ऐसे वक्त में जब सरकार खाद्यान्न की किल्लत से बचने और महंगाई से पार पाने के लिए कई अनाजों के निर्यात पर रोक लगा चुकी है, रखरखाव के अभाव में सैकड़ों टन अनाज के बर्बाद हो जाने की जानकारी स्वाभाविक ही विचलित करती है। सूचनाधिकार अधिनियम के तहत मांगी गई एक जानकारी में खुलासा हुआ है कि पिछले वित्त वर्ष के दौरान प्राकृतिक आपदा और रखरखाव ठीक न होने के कारण करीब सत्रह सौ टन अनाज बर्बाद हो गया। अंदाजा लगाया जा सकता है कि इतने अनाज से कितने परिवारों का कितने वक्त तक पेट भरा जा सकता था।

अनेक अध्ययनों से जाहिर हो चुका है कि भारतीय खाद्य निगम के गोदामों की हालत खस्ता है। अनेक की छतों की मरम्मत तक समय पर नहीं हो पाती, जिसके चलते बरसात का पानी उनमें घुस जाता है। निगम ने सालों से नए गोदाम नहीं बनाए और निजी गोदामों को अनाज रखने का ठेका देता आ रहा है। यह भी हर साल का नजारा है कि फसल कटने के बाद भारतीय खाद्य निगम किसानों से अनाज तो खरीद लेता है, पर बोरियां उचित ढंग से रखने के बजाय उन्हें ढेरी बना कर जहां-तहां प्लास्टिक की चादरों से ढंक कर छोड़ दिया जाता है।

इस काम में भी इस कदर लापरवाही बरती जाती है कि बहुत सारा अनाज बेमौसम बरसात की वजह से भीग जाता है। देश में गोदामों की कमी को देखते हुए कई निजी कंपनियों ने इस कारोबार में अपने पांव पसारे हैं, जिन्हें सरकार से बड़े पैमाने पर ठेके मिलते हैं। मगर वे भी अनाज का समुचित भंडारण नहीं कर पातीं। इसके अलावा, समय पर सरकारी खरीद न हो पाने और बेमौसम बरसात, अंधड़ आदि के कारण किसानों का कितना अनाज बर्बाद चला जाता है, इसका कोई आंकड़ा नहीं है।

सरकार कृषि उत्पादन बढ़ने के आंकड़ों को लेकर खासी उत्साहित नजर आती है, मगर उसकी चिंता इस बात को लेकर कभी नहीं दिखती कि किस तरह फसलों को सुरक्षा प्रदान की जाए। लंबे समय से सुझाव दिए जा रहे हैं कि जगह-जगह शीतगृह और गोदामों का निर्माण होना चाहिए, ताकि किसान खुद भी जल्दी खराब हो सकने वाली फसलों को उनमें रख सकें और इस तरह खाद्यान्न, फलों और सब्जियों की बर्बादी को रोका जा सके।

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