बगावत के तूफान के बाद क्या फिर खड़ी हो पाएगी शिवसेना

महाराष्ट्र के पूरे सियासी प्रकरण के बाद निश्चित तौर पर शिवसेना की राह मुश्किल होने वाली है
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ठाकरे
महाराष्‍ट्र की राजनीत‍ि में  जो कुछ  हुआ है, उसकी उम्‍मीद सायद ही किसी को होगी। एकनाथ श‍िंंदे को सीएम की कुर्सी द‍िए जाने के ऐलान में उद्धव ठाकरे के ल‍िए कई संदेश हैं। श‍िवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे अपनी सरकार नहीं बचा सके। पार्टी पर भी उनकी पकड़ नहीं रही। एकनाथ श‍िंंदे के हाथों में महाराष्‍ट्र की कमान जाने का मतलब उद्धव ठाकरे के राजनीत‍िक रूप से न‍िष्‍प्राण होने के बराबर है। ऐसी चर्चाएं सियासी गलियारों में चल रही हैं।

मुंबई.   महाराष्ट्र में हुए घटनाक्रम के बाद शिवसेना के वजूद पर प्रश्नचिन्ह खड़ा हो गया है। राजनीतिक गलियारों में शिव सेना के भविष्य को लेकर चर्चा चल रही है। शिवसेना हमेशा व्‍यक्‍त‍ि केंद्र‍ित पार्टी रही है। जब तक बाल ठाकरे रहे तब तक श‍िवसेना मतलब बाल ठाकरे ही हुआ करता था। राज ठाकरे राजनीत‍ि में काफी सक्र‍िय थे। लोग उन्‍हें बाल ठाकरे के वार‍िस के रूप में देखने लगे थे, पर बाल ठाकरे ने बेटे उद्धव को कार्यकारी अध्‍यक्ष बना कर यह साफ कर द‍िया क‍ि व‍िरासत बेटे को ही म‍िलेगी, भतीजे को नहीं।

फोटोग्राफी में ग्रेजुएट उद्धव ठाकरे राजनीत‍ि के माह‍िर ख‍िलाड़ी साब‍ित नहीं हो सके। श‍िवसेना में प‍िता जैसी पकड़ बना कर नहीं रख सके। न ही मुद्दों को लेकर प‍िता जैसी आक्रामकता द‍िखा सके।

उन्‍होंने प‍िता की क‍िंंग के बजाय क‍िंंगमेकर बने रहने की नीत‍ि भी छोड़ दी, बल्‍क‍ि कहा जा सकता है क‍ि वह सत्‍ता और पुत्र के मोह में पड़ गए। न केवल खुद सीएम बने, बल्‍क‍ि बेटे आद‍ित्‍य को काफी कम उम्र में मंत्री भी बना द‍िया।

श‍िवसेना की स्‍थापना 1966 में बाल ठाकरे ने की थी। यह नाम बाल ठाकरे के प‍िता का द‍िया हुआ था। उन्‍होंने जब बाल ठाकरे को महाराष्‍ट्र के आम लोगों की बेरोजगारी-बदहाली के प्रत‍ि अपनी भावना कार्टून व अन्‍य छ‍िटपुट गत‍िव‍िध‍ियों के जर‍िए व्‍यक्‍त करते देखा तो सलाह दी क‍ि यह काम संगठ‍ित रूप से करें। इसी सलाह के बाद बाल ठाकरे ने शि‍वसेना बनाई।

संगठन बनाने के साथ ही बाल ठाकरे ने दक्ष‍िण भारतीयों को दुश्‍मन नंबर एक मान कर उनके ख‍िलाफ ब‍िगुल बजा द‍िया। ठाकरे ने कहा ‘यांडुगुंडु’ मराठी लोगों की नौकर‍ियां ले जा रहे हैं। उनके इस स्‍टैंड को युवाओं का भरपूर साथ म‍िला और बाल ठाकरे के साथ-साथ श‍िवसेना की लोकप्र‍ियता बढ़ती गई।

श‍िवसेना के न‍िर्माण से महाराष्‍ट्र की राजनीत‍ि का खालीपन भी भरता गया।

संयुक्‍त महाराष्‍ट्र की लड़ाई लड़ रही संयुक्‍त महाराष्‍ट्र सम‍ित‍ि की हालत खस्‍ता हो गई थी और इसका फायदा शि‍वसेना को म‍िला। स्‍थानीय लोगों की भावनाओं को आवाज देने वाले के रूप में बाल ठाकरे की लोकप्र‍ियता लगातार बढ़ती गई।

बाल ठाकरे ने उग्र और ह‍िंसक रास्‍ता अख्‍त‍ियार कर जनभावनाओं को खूब भुनाया। उद्धव ऐसा करने में कामयाब नहीं रहे। अब उनके पास व‍िधायक और सत्‍ता भी नहीं है। उनके पास समय भी कम है।

चुनाव में ढाई साल ही बचे हैं। ऐसे में कैडर बचाना-बढ़ाना भी आसान नहीं होगा। अब आने वाला वक्त ही बताएगा कि शिवसेना इस हादसे से उबर कर मजबूत होकर निकलेगी या बिखर जायेगी। 

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