डॉ राजेंद्र प्रसाद से लेकर द्रौपदी मुर्मू तक अब तक के बड़े राष्ट्रपति चुनावों पर एक नजर

दिल्ली. एनडीए की तरफ से राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार बनाई गईं द्रौपदी मुर्मू ने चुनाव जीत लिया है। मुर्मू ने यशवंत सिन्हा के खिलाफ पहले जताए गए अनुमानों के मुताबिक ही बड़े अंतर से हरा दिया। इस चुनाव में जीत का अंतर प्रत्याशी के पीछे सरकार की ताकत को भी दिखाते हैं।
ऐसे में पिछले 70 वर्षों में हुए राष्ट्रपति चुनावों के जरिए जानते हैं कि आखिर कब-कब इस पद के लिए होने वाले चुनाव एकतरफा हो गए और कब इनके लिए सरकार को अपने उम्मीदवार को जिताने के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ी है? और कब सत्ताधारी दल का उम्मीदवार हार गया?
1. 2022: द्रौपदी मुर्मू vs यशवंत सिन्हा
इस साल का राष्ट्रपति चुनाव काफी दिलचस्प रहा है। जहां भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए ने इस चुनाव में महिला आदिवासी उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू को उम्मीदवार बनाया। वहीं, विपक्ष की तरफ से यशवंत सिन्हा को प्रत्याशी बनाया गया। इस चुनाव में अलग-अलग राज्यों में भाजपा का विपक्ष कही जाने वाली कुछ पार्टियों ने भी मुर्मू को समर्थन का एलान किया। इनमें आंध्र प्रदेश की वाईएसआर कांग्रेस, ओडिशा की बीजू जनता दल, झारखंड की झारखंड मुक्ति मोर्चा और महाराष्ट्र की शिवसेना शामिल रहीं।
उधर यशवंत सिन्हा खुद बंगाल में चुनाव प्रचार करने नहीं गए। राष्ट्रपति चुनाव के नतीजे भी उम्मीद के मुताबिक ही रहे। जहां द्रौपदी मुर्मू करीब 64 फीसदी वोट हासिल करने में कामयाब रहीं, वहीं यशवंत सिन्हा 36 फीसदी वोट ही हासिल कर पाए। द्रौपदी मुर्मू को कुल 2824 वोट मिले। इन मतों का मूल्य 6,76,803 रहा है। वहीं, यशवंत सिन्हा को कुल 1,877 वोट्स मिले। इन मतों का मूल्य 3,80,177 है।
2. 2017: रामनाथ कोविंद vs मीरा कुमार
पिछला राष्ट्रपति चुनाव 2017 में हुआ था। मोदी सरकार की तरफ से इस चुनाव में रामनाथ कोविंद उम्मीदवार थे, जबकि विपक्ष ने लोकसभा की पूर्व स्पीकर मीरा कुमार को उतारा था। मीरा कुमार के पास 17 विपक्षी दलों का समर्थन था। इनमें समाजवादी पार्टी और बसपा भी शामिल रहीं।बिहार में राजद की साथी पार्टी रही जदयू ने सभी को चौंकाया और रामनाथ कोविंद का समर्थन किया। कोविंद को 7 लाख 2 हजार 44 वैल्यू के वोट मिले, वहीं मीरा कुमार को 3 लाख 67 हजार 314 वोट मिले। कोविंद 65.65 फीसदी वोट हासिल कर जीतने में सफल रहे।
3. 2012: प्रणब मुखर्जी vs पीए संगमा
इस चुनाव में यूपीए-2 सरकार के उम्मीदवार रहे प्रणब मुखर्जी जीते। उन्हें विपक्ष के पीए संगमा के खिलाफ लगभग 70 फीसदी वोट मिले। जहां प्रणब मुखर्जी को 7 लाख 13 हजार 763 मत प्राप्त हुए, वहीं पीए संगमा को 3,15,987 वोट मिले थे।
4. 2007: प्रतिभा पाटिल vs भैरो सिंह शेखावत
2007 में भारत को पहली महिला राष्ट्रपति मिली थीं। तब कांग्रेस और लेफ्ट पार्टी के समर्थन से प्रतिभा पाटिल ने भाजपा उम्मीदवार भैरो सिंह शेखावत को हराया था। जहां प्रतिभा पाटिल को 6,38,116 वैल्यू के वोट मिले, वहीं शेखावत को 3,31,306 मत मिले थे। इस चुनाव में भाजपा की सहयोगी शिवसेना ने प्रतिभा पाटिल को समर्थन दिया था।
1. राष्ट्रपति चुनाव में किसके पास है सबसे बड़ी जीत का रिकॉर्ड?
1957: भारत में सबसे बड़ी जीत का रिकॉर्ड तीन बड़े नामों के पास है। इनमें एक नाम देश के प्रथम राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद का है। जिन्हें 1957 में दूसरी बार राष्ट्रपति चुनाव में मौका दिया गया था। उन्हें एक इस चुनाव में चौधरी हरिराम और नागेंद्र नारायण दास से चुनौती मिली। जहां प्रसाद ने एकतरफा मुकाबले में 4,59,698 वोट हासिल किए। वहीं चौधरी हरिराम को 2672 वोट और नागेंद्र दास को 2000 वोट मिले।
1962: राजेंद्र प्रसाद का राष्ट्रपति कार्यकाल खत्म होने के बाद भारत के तीसरे राष्ट्रपति चुनाव 1962 में हुए। कांग्रेस ने इस चुनाव में उपराष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन को चुनाव लड़ाया। उन्हें 5,53,067 वोट मिले, जबकि चौधरी हरिराम को छह हजार से कुछ ज्यादा वोट हासिल हुए। एक तीसरे उम्मीदवार यमुना प्रसाद त्रिसुलिया को 3,537 वोट मिले थे। सबसे बड़ी जीत के मामले में यह एक बड़ा रिकॉर्ड है।
1997: राष्ट्रपति चुनाव के इतिहास में 1997 के चुनाव को सबसे एकपक्षीय चुनाव कहा जाए तो इसमें कोई दोराय नहीं है। दरअसल, इस चुनाव में यूनाइटेड फ्रंट सरकार और कांग्रेस की तरफ से केआर नारायणन को प्रत्याशी बनाया गया था। तब विपक्ष में बैठी भाजपा ने भी नारायणन को समर्थन देने का एलान किया। मजेदार बात यह है कि इस चुनाव में नारायणन के खिलाफ टीएन शेषन ने चुनाव लड़ा, जो कि चुनाव आयोग में सुधार के लिए जाने जाते थे। अपनी कार्यशैली की वजह से राजनीतिक दलों से दूरी बना चुके शेषन की यही कमी राष्ट्रपति चुनाव के नतीजों में भी दिखी। जहां केआर नारायणन को 9,56,290 वोट मिले, वहीं शेषन महज 50,361 वोट ही हासिल कर सके और उनकी जमानत तक जब्त हो गई। इस चुनाव में शेषन को सिर्फ शिवसेना और कुछ निर्दलीयों का समर्थन मिला था।
2002: भाजपा ने इस राष्ट्रपति चुनाव में एपीजे अब्दुल कलाम आजाद को उम्मीदवार बनाकर मास्टरस्ट्रोक खेला और जीत के अंतर के लिहाज से बड़ी जीत तय की। दरअसल, राष्ट्रपति पद के लिए पूर्व वैज्ञानिक और मुस्लिम को उम्मीदवार बनाकर भाजपा ने विपक्ष को ऊहापोह की स्थिति में डाल दिया। आखिरकार कांग्रेस समेत अधिकतर विपक्षी दलों ने कलाम को ही समर्थन देने का फैसला किया। हालांकि, वाम दलों ने इस चुनाव में भी कैप्टन लक्ष्मी सहगल को प्रत्याशी बनाया। इसके बावजूद यह इतिहास के सबसे एकतरफा मुकाबलों में से एक रहा। जहां अब्दुल कलाम को 10,30,250 वोटों में से 9,22,884 वोट मिले, वहीं सहगल महज 1,07,366 जुटा सकीं।
2. राष्ट्रपति चुनाव में सबसे छोटी जीत?
1977: स्वतंत्र भारत के सबसे विवादित चुनावों में से एक 1969 के राष्ट्रपति चुनाव सबसे करीबी मुकाबलों में से एक रहे। यह वह दौर था, जब कांग्रेस में दो धड़ों के बीच पार्टी को लेकर जंग छिड़ी थी। इनमें एक धड़ा प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के समर्थन वाला था, जबकि दूसरा धड़ा पार्टी संगठन के वरिष्ठ नेताओं- 'सिंडिकेट' का था। कांग्रेस संगठन ने नीलम संजीव रेड्डी को उम्मीदवार घोषित किया। इंदिरा गांधी ने वोटिंग से ऐन पहले अपना समर्थन निर्दलीय खड़े वीवी गिरी को दे दिया।
इंदिरा ने पार्टी सांसदों और विधायकों से अपील की कि वे अंतरात्मा की आवाज सुनें और वीवी गिरी को वोट दें। वीवी गिरी को इसमें 4,01,515 वोट मिले, तो वहीं नीलम संजीव रेड्डी सिर्फ 3,13,548 वोट ही जुटा सके। एक और उम्मीदवार सीडी देशमुख को इस चुनाव में 1,12,769 वोट मिले। यानी नीलम संजीव रेड्डी एक करीबी मुकाबले में हार गए। इसके अलावा 12 और उम्मीदवार राष्ट्रपति चुनाव की दौड़ में शामिल थे।
1967: भारत के इतिहास में चौथा राष्ट्रपति चुनाव भी काफी करीबी साबित हुआ। दरअसल, इसमें कांग्रेस की ओर से उपराष्ट्रपति जाकिर हुसैन को उम्मीदवार बनाया गया। विपक्ष ने इस चुनाव में 1967 में ही रिटायर हुए चीफ जस्टिस कोका सुब्बाराव को उम्मीदवार बनाया। हालांकि, इन चुनावों में सिर्फ यही दो प्रत्याशी नहीं थे, बल्कि कुल 17 लोग खड़े हुए थे। जहां जाकिर हुसैन को 4,71,244 वोट पाकर जितने में सफल रहे। सुब्बाराव को 3,63,971 वोट मिले। उधर 17 में से नौ उम्मीदवार तो इन चुनाव में खाता तक नहीं खोल पाए थे। कोई वोट न पाने वालों में चौधरी हरिराम का नाम भी शामिल रहा था।
3. राष्ट्रपति चुनाव में कौन चुना गया निर्विरोध?
1977: राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद के निधन के बाद उपराष्ट्रपति बीडी जट्टी ने कार्यकारी राष्ट्रपति के तौर पर पद संभाला। हालांकि, अगले चुनाव छह महीने के अंदर ही कराए जाने थे। इस चुनाव के लिए 37 उम्मीदवारों ने नामांकन दाखिल किया। लेकिन स्क्रूटनी में सिर्फ एक को छोड़कर सभी नामांकन रद्द हो गए। इकलौता बचा नामांकन नीलम संजीव रेड्डी का था। रेड्डी निर्विरोध राष्ट्रपति बनने वाले पहले और अब तक की इकलौती शख्सियत हैं।
4. कौन लगातार दो बार दूसरे स्थान पर रहा?
65 वर्षों के राष्ट्रपति चुनाव के इतिहास में एक उम्मीदवार ऐसा भी रहा, जिसने 1952 से लेकर 1967 तक लगातार उम्मीदवारी पेश की। यहां तक कि दो बार- 1957 और 1962 में यह प्रत्याशी दूसरे स्थान पर भी रहा। लेकिन कभी राष्ट्रपति नहीं बन पाया। यह उम्मीदवार थे चौधरी हरिराम, जो कि ब्रिटिश राज के क्रांतिकारी सर छोटूराम द्वारा गठित राजनीतिक दल में सक्रिय थे। जब 1952 में यह तय था कि राजेंद्र प्रसाद निर्विरोध राष्ट्रपति बन जाएंगे, तब चौधरी हरिराम ने उन्हें चुनौती दी। इसके बाद 1957 में वे लोकसभा और राष्ट्रपति चुनाव दोनों लड़े और दोनों में हारे। 1962 में उन्होंने सर्वपल्ली राधाकृष्णन को चुनौती दी और दूसरे स्थान पर आए। उन्हें अब तक के सबसे ज्यादा 6341 वोट मिले। हालांकि, उनका आखिरी चुनाव 1967 का राष्ट्रपति चुनाव रहा। इसमें उन्हें एक भी वोट नसीब नहीं हुआ।