बिहार में तख्तापलट की फिराक में BJP!

दिल्ली. अगर एनडीए इस समय बिहार के घटनाक्रम से में है, तो इसका मतलब यह नहीं है कि वह बिहार सरकार को अपने दिमाग से शासन करने का पूर्ण संवैधानिक अधिकार (राज्य-केंद्र के बीच) देकर चुप हो जाएगा। ऐसा कभी नहीं हो सकता कि उसके आला नेताओं ने बिहार की वर्तमान सरकार को उनके अपमान का घूंट पीकर सुचारू रूप से चलने दिया हो. हालाँकि उन्हें कई राज्यों में अपनी हार के रूप में अपमान का सामना करना पड़ा है, लेकिन उनकी एक ही आदत है कि अपमान को गाँठ में बांधकर हमला करें।पश्चिम बंगाल में उसकी साजिश के सारे घोड़े खोलकर क्या आया! पंजाब में तिल बनाकर उन्होंने वहां खुद को इस तरह से नष्ट कर लिया, जिससे आज वहां की विधानसभा में उनका नाम तक नहीं है. एक-एक करके ढूंढ़ने पर भी वही कहावत सच होती है कि एक चना टूट नहीं सकता। मध्य प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र इसके ताजा उदाहरण हैं, जहां यह अपने दुर्भाग्य के बाद सत्ता में वापस आया। आज के राजनेताओं का उद्देश्य यह भी है कि येन-केन-केस की शक्ति उनकी हो।
जनहित के लिए वे ऐसा चाहते हैं, यह मानना भूल होगी, क्योंकि स्वहित की रक्षा करना ही उनका मूलमंत्र है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के दल बदलने के बाद बिहार भाजपा के ही कई नेताओं ने अलग-अलग प्रेस कॉन्फ्रेंस करके यह बताने का प्रयास किया है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने उनकी पार्टी को ठगा है, जनता को भी ठगा है। अब यह तो मंथन का विषय कि सच में किसने किसे ठगा है।
लगभग यही कुछ वर्ष पहले महाराष्ट्र में हुआ था, जब सुबह-सबेरे राष्ट्रपति शासन को समाप्त करके देवेंद्र फडणवीस शपथ ग्रहण समारोह करके कुछ घंटों के लिए मुख्यमंत्री बन बैठे थे। लेकिन, इसके लिए कितनी आलोचनाओं का सामना भाजपा को सुनना पड़ा, यह वही जानती है। बिहार के लिए भी सत्ता परिवर्तन की बात की जा रही है। वहां भी तो यही कहा जा रहा है कि भाजपा ने नीतीश सरकार को गिराने या उनके कद को छोटा करने का प्रयास किया।
बिहार के लोगों का कहना है कि नीतीश कुमार ने भाजपा को छोड़कर उसकी बढ़ती रफ्तार को रोकने का प्रयास किया है। इससे बिहार का विकास होगा। वैसे यह सच है कि लगभग तीस वर्ष से बिहार में जो कुछ हुआ, उसकी नाकामी और उपलब्धि का श्रेय लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार को ही सदैव दिया जाता रहेगा, क्योंकि इतने लंबे समय तक बिहार में इन्हीं दोनों नेताओं का शासन रहा है।
लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार, दोनों लोकनायक जयप्रकाश नारायण के आंदोलन से निकले हुए राजनेता हैं। नीतीश कुमार गांधीवादी भी है, यह उनके कार्यकलापों से दिखता है। बिहार में शराब बंदी उसी का उदाहरण है। गांधी जी शराब के विरोधी थे। आज नीतीश कुमार भी उसी रास्ते पर चल पड़े हैं, लेकिन इससे राजस्व का राज्य में जो नुकसान हो रहा है, पता नहीं उसकी भरपाई सरकार कैसे कर पा रही है। बिहार वैसे भी गरीब और पिछड़ा राज्य है। राजस्व की इतनी बड़ी हानि बार-बार गले के नीचे नहीं उतरती है।
इस नई सरकार में मुख्यमंत्री को इस पर विचार करना ही पड़ेगा, अन्यथा किस प्रकार अपने पैरों पर बिहार खड़ा हो पाएगा। आजादी के बाद से अब तक 24वें राज्य के रूप में गिना जाने वाला कब एक-एक सीढ़ी पार करते हुए आगे बढ़ता है!