जाति आधारित जनगणना के मुद्दे पर भाजपा की चुप्पी, नीतीश की एकांत में तेजस्वी से मुलाकात से बन रहे नए समीकरणों पर विराम लगा

पटना - बिहार में गठबंधन की गाड़ी 2025 तक का जनादेश लेकर पटरी पर सरपट दौड़ने निकली, लेकिन 2022 तक आते-आते लगने लगा कि पटरी से उतरने में अब देर नहीं लगने वाली। यह ऐसे ही नहीं लगने लगा था, भाजपा से बढ़ती दूरी और राजद से नजदीकी इस अंदेशे को बल दे रहा था। दोनों ही दलों की बयानबाजी थम गई थी और जदयू व भाजपा में बढ़ गई थी। जातिगत जनगणना के मुद्दे पर भाजपा की चुप्पी, दावत-ए-इफ्तार में तेजस्वी से नजदीकी, नीतीश की एकांत में तेजस्वी से मुलाकात भी इसकी पुष्टि करने लगे थे। सरकार का कामकाज भी ढीला होता जा रहा था। हर सप्ताह होने वाली कैबिनेट की बैठक का महीने भर तक न होना भी इस ओर इशारा कर रहा था। हालांकि नीतीश के दौरे जारी थे और समीक्षा बैठकों व योजनाओं के स्थल निरीक्षण हो रहे थे। लेकिन सन्नाटा बना हुआ था। हालांकि अब सब पटरी पर लौटता नजर आ रहा है और राजद भी किनारे लग गया है।
भाजपा व जदयू के बीच तल्खी की शुरुआत तो सरकार गठन के बाद से ही हो गई थी, लेकिन मार्च में बजट सत्र के दौरान यह और बढ़ गई। प्रकरण यह था कि विधानसभा अध्यक्ष विजय कुमार सिन्हा ने अपने विधानसभा क्षेत्र लखीसराय के कुछ पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की थी। उनका कहना था कि पुलिस बेकसूर लोगों को जेल में डाल रही है। उनकी शिकायत को गंभीरता से लेने और जांच चलने की उन्हें जानकारी दी गई, लेकिन वे रोज ही इस मामले को उठा रहे थे तो नीतीश सदन में ही उन पर बिफर गए और उन्हें संविधान के अनुसार काम करने की नसीहत दे डाली। उसी दिन से यह खबर तैरने लगी कि भाजपा व जदयू के बीच पहले जैसे संबंध नहीं रहे। बोचहां उपचुनाव में हुई भाजपा की हार में भी यह माना गया कि जदयू ने उसकी मदद नहीं की। दोनों ही दलों के छोटे नेता एक-दूसरे पर हमला करने में नहीं चूक रहे थे। उनके बीच की बयानबाजी से जनता के बीच यह संदेश जाने लगा था कि विपक्ष की भूमिका राजद नहीं, बल्कि ये दल ही एक-दूसरे के खिलाफ निभा रहे हैं
घटनाओं के अलावा कुछ ऐसी घटनाएं भी हुईं जिसने दोनों दलों के रिश्तों को रहस्यमय बना दिया। रमजान के दिनों में राजद ने इफ्तार की दावत दी तो नीतीश पैदल चल कर राबड़ी के आवास पहुंच गए और जब जदयू ने दावत दी तो तेजस्वी के पहुंचने पर तो नीतीश दूर बैठे, लेकिन छोड़ने गाड़ी तक गए और उसका दरवाजा भी खोला। इधर कोइलवर पुल की एक लेन की सड़क का उद्घाटन जब नितिन गडकरी ने किया तो उसमें मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को नहीं बुलाया गया और न ही किसी स्थानीय निर्वाचित प्रतिनिधि को आमंत्रित किया गया। इसी बीच बिहार में जातिगत जनगणना कराने की बात को विपक्ष फिर तेजी से उछालने लगा। तेजस्वी यादव ने मुख्यमंत्री को 72 घंटे के भीतर सर्वदलीय बैठक बुलाने का निर्णय न लेने पर दिल्ली तक पदयात्र का अल्टीमेटम दे दिया। नीतीश ने 24 घंटे के भीतर ही उन्हें बुलाकार एकांत में बात की तो तेजस्वी संतुष्ट नजर आए। इस बात को बल मिलने लगा कि जदयू की सरकार राजद के सहारे ही चलेगी और मुख्यमंत्री नीतीश ही रहेंगे। 27 मई को सर्वदलीय बैठक बुलाने की बात सामने आई, लेकिन नीतीश ने स्पष्ट किया कि सभी दलों की सहमति अभी नहीं आई है इसलिए तिथि तय नहीं है। यह माना गया कि भाजपा संभवत: राजी नहीं हो रही, लेकिन अब एक जून को बैठक होनी है और भाजपा राजी हो गई है।
जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन सिंह ऊर्फ ललन सिंह की इस घोषणा ने दोनों दलों के कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ा दिया है कि नीतीश कुमार 2025 तक एनडीए सरकार के मुख्यमंत्री बने रहेंगे। अब हवाओं को बल देने वाले बिहार में यह शांति और सत्ता की स्थिरता कितने दिनों तक बरकरार रहती है या कोई बात फिर उठेगी ही नहीं, यह तो भविष्य के गर्त में है, लेकिन फिलहाल सब ठीक दिख रहा है।