कुलदीप बिश्नोई के BJP में जानें से कितने बदलेंगे हरियाणा के राजनीतिक समीकरण?

कुलदीप बिश्नोई के BJP में जाने से हरियाणा की राजनीति पर पड़ने वाले प्रभाव का एक विश्लेषण
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Kuldeep Bishnoi
हरियाणा कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे कुलदीप बिश्नोई ने भारतीय जनता पार्टी का दामन थाम लिया है। गुरुवार को उन्होंने पार्टी की सदस्यता ली। बुधवार को ही उन्होंने आदमपुर विधायक के तौर पर चंडीगढ़ से इस्तीफा दिया था। खास बात है कि कांग्रेस ने जून में ही उन्होंने निष्कासित कर दिया था। उन्होंने राज्यसभा चुनाव में भी क्रॉस वोटिंग की थी। अभी सवाल उठता है कि बिश्नोई के बीजेपी में जाने से हरियाणा के राजनीतिक समीकरण कैसे बदलेंगे. आइए जानते हैं.

कांग्रेस के पूर्व कद्दावर नेता कुलदीप बिश्नोई ने भारतीय जनता पार्टी (BJP) का दामन थाम लिया है। बिश्नोई की पत्नी और पूर्व विधायक रेणुका बिश्नोई भी भाजपा में शामिल हो गईं हैं। उनकी पत्नी के अलावा उनके पुत्र भव्य बिश्नोई, मां जसमा देवी ने भी भाजपा की सदस्यता ग्रहण की। हरियाणा से चार बार विधायक और दो बार सांसद रहे कुलदीप बिश्नोई गुरुवार को BJP के दिल्ली स्थित मुख्यालय में पार्टी में शामिल हुए।

अब राजनीतिक गलियारों में कुलदीप बिश्नोई के बीजेपी में जाने के बाद हरियाणा के राजनीतिक समीकरणों में होने वाले बदलाव को लेकर चर्चाएं शुरू हो गई हैं. आईए चर्चा करते हैं विश्नोई के बीजेपी में जाने से हरियाणा की राजनीति पर क्या प्रभाव पड़ेगा.

बिश्नोई कुछ समय से हुड्डा से खफा चल रहे थे. खुद को आत्मविश्वास से भरा दिखाने के हुड्डा के अपने कारण हैं. उन्हें तीन साल में दो बड़े नेताओं के पार्टी छोड़ने के लिए अकेला जिम्मेदार माना जा रहा है. बिश्नोई से पहले 2019 के हरियाणा विधानसभा चुनाव से कुछ महीने पहले ही अशोक तंवर ने पार्टी छोड़ दी थी. हुड्डा के दबाव में उन्हें पार्टी की राज्य इकाई के अध्यक्ष के पद से हटा दिया गया था.हुडा

हुड्डा के वफादार उदयभान को इस साल अप्रैल में हरियाणा कांग्रेस का नया अध्यक्ष बनाए जाने के बाद से बिश्नोई पार्टी में खुद को कमजोर और अलग-थलग महसूस कर रहे थे. बिश्नोई का दावा है कि वरिष्ठ नेता राहुल गांधी ने उनसे यह पद देने का वादा किया था. दो बार हरियाणा के मुख्यमंत्री रहे हुड्डा को राज्य की राजनीति में कांग्रेस के सबसे बड़े नेता के रूप में देखा जाता है.

वे केवल उन्हें ही आगे बढ़ाते हैं, जो उनकी हां में हां मिलाए. यह भी मशहूर है कि उनके नीचे कोई भी दूसरा नेता फल-फूल नहीं सकता. ऐसे समय में जब पार्टी को खुद को आगे बढ़ाने के लिए युवा पीढ़ी को अपनी तरफ आकर्षित करने की जरूरत है, उनके कठोर रवैये के कारण पार्टी ने दो युवा नेताओं तंवर और बिश्नोई को खो दिया.

तंवर दलित समुदाय से आते हैं और उनके समर्थकों की संख्या अच्छी-खासी है. बिश्नोई को राजनीति उनके पिता भजन लाल से विरासत में मिली और आज वे बिश्नोई समुदाय के शीर्ष नेता और हरियाणा के एक मजबूत गैर-जाट नेता हैं. हुड्डा पार्टी के भीतर किसी भी युवा पीढ़ी के नेता के विकास को रोकने के एकमात्र उद्देश्य के साथ काम कर रहे हैं, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि उनके सांसद बेटे दीपेंद्र सिंह हुड्डा के हरियाणा कांग्रेस के एकमात्र नेता के रूप में विकास के लिए कोई चुनौती न खड़ी हो.

हुड्डा भले ही ऊपरी तौर पर बिश्नोई के जाने को महत्व नहीं दे रहे हों, मगर वे जानते हैं कि बिश्नोई समुदाय के कांग्रेस मतदाताओं का एक बड़ा हिस्सा कुलदीप बिश्नोई के साथ हरियाणा और राजस्थान में धुर विरोधी बीजेपी में चला जाएगा. जून के राज्यसभा चुनावों में भाजपा समर्थित निर्दलीय कार्तिकेय शर्मा के पक्ष में बिश्नोई के क्रॉस वोटिंग ने कांग्रेस के आधिकारिक उम्मीदवार अजय माकन की हार सुनिश्चित कर दी. अपनी जगह उदयभान को राज्य का कांग्रेस प्रमुख बनाए जाने से बिश्नोई नाराज चल रहे थे.

बिश्नोई समाज मुख्यतः मध्य-पश्चिम भारत में फैला हुआ है. बिश्नोई संख्या में करीब दस लाख ही हैं. भले ही वे संख्या के लिहाज से कम लगें, मगर हरियाणा और राजस्थान की कई सीटों पर चुनाव परिणामों को वे प्रभावित करते हैं. राजस्थान के 200 सदस्यों वाली विधानसभा में 21 सीटों पर उनकी निर्णायक भूमिका होती है. कुलदीप बिश्नोई को अपनी तरफ लाने के पीछे भाजपा की रणनीति अगले साल होने वाले राजस्थान विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी से सत्ता छीनने की है.

उन्होंने साफ संकेत दिये कि वे मनोहर लाल मंत्री परिषद में मंत्री बनेंगे. आदमपुर के समग्र विकास के लिए सत्ता में रहना जरूरी है. बिश्नोई को भाजपा में अपनी उपयोगिता साबित करनी होगी. बिश्नोई का भाजपा में शामिल होना भगवा पार्टी के लिए फायदे का सौदा, जबकी हरियाणा में कांग्रेस के लिए नुकसान वाली बात है.

भाजपा को उम्मीद है कि बिश्नोई बड़े सपने देखने से पहले नई पार्टी में अपनी उपयोगिता साबित करें. बीजेपी अब पहले की तरह दूसरे दलों के नेताओं को शामिल करते वक्त इस बात पर जोर नहीं देती कि वह केवल आरएसएस से संबंधित नेताओं को बड़े पद दे.

बीजेपी में बिश्नोई को क्या काम करना है, उन्हें स्पष्ट रूप से पहले ही बता दिया गया है. भाजपा ने उन्हें विशेष रूप से बताया है कि राजस्थान में बिश्नोई समुदाय के सबसे बड़े नेता होने के अपने दावे को उन्हें साबित करना पड़ सकता है. उन्हें यह सुनिश्चित करना होगा कि भाजपा राज्य में बिश्नोई समुदाय के वर्चस्व वाली 21 सीटों में से अधिकांश पर जीत हासिल करे. बीजेपी मुख्यत राजस्थान के बिश्नोई समाज को कुलदीप बिश्नोई के माध्यम से साधने का प्रयास करेगी।

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