पंजाब उपचुनाव में खालिस्तानी सोच के समर्थक सिमरनजीत मान की जीत के मायने

जरनैल सिंह भिंडरावाले को अपनी जीत समर्पित कर बोले सिमरनजीत सिंह मान- ये उसी संत की तालीम का नतीजा
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सिमरनजीत
77 साल के सिमरजीत सिंह शिरोमणि अकाली दल (अमृतसर) के अध्यक्ष हैं। 1945 में शिमला में जन्में मान का फैमिली बैकग्राउंड मिलिट्री-राजनीतिक रहा है। पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह की पत्नी प्रनीत कौर और मान की पत्नी बहनें हैं।

चंडीगढ़ - पंजाब उपचुनाव में आम आदमी पार्टी की जबरदस्त लहर के बावजूद सिमरनजीत मान ने चुनाव में जीत दर्ज करके सबको चौक दिया है। सिमरजीत मान की जीत से सियासी गलियारों में एक नई चर्चा का दौर शुरू हो गया है। पंजाब के संगरूर सीट पर हुए उपचुनाव में सिमरजीत मान ने आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार गुरमेल सिंह को 5822 मतों के अंतर से हराया है। जीतने के बाद सिमरजीत सिंह मान ने कहा कि यह जीत हमारे पार्टी कार्यकर्ताओं और संत जरनैल सिंह भिंडरावाले की तालीम की जीत है।

गौरतलब है कि सिमरजीत सिंह मान को जरनैल सिंह भिंडरावाले की विचारधारा का समर्थक माना जाता है। ऐसे में उन्होंने अपनी जीत का श्रेय भिंडरावाले की तालीम को दिया है। मान का यह बयान चर्चा का विषय बना हुआ है। दरअसल 1984 में अमृतसर में स्वर्ण मंदिर परिसर को खालिस्तानियों के कब्जे से छुड़ाने के लिए ऑपरेशन ब्लू स्टार चलाया गया था। इस दौरान खालिस्तानी गुट की अगुवाई जरनैल सिंह भिंडरावाले ने की थी।

गौरतलब है कि भारतीय सेना ने जून 1984 में अमृतसर में स्वर्ण मंदिर परिसर में छिपे आतंकवादियों को बाहर निकालने के लिए ऑपरेशन ब्लू स्टार चलाया था। सिमरजीत सिंह खुद को भिंडरावाले की विचारधारा का समर्थक बताते हैं। वहीं मान खुद भी यह बात स्वीकार कर चुके हैं कि 1980 के दौर में उन्होंने खालिस्तानी अलगाववादी जरनैल सिंह भिंडरावाले और उसके आदमियों की हथियार सप्लाई करने में सहायता की थी। उस वक्त मान फरीदकोट में एसएसपी के तौर पर कार्यरत थे।

बता दें कि 77 साल के सिमरजीत सिंह शिरोमणि अकाली दल (अमृतसर) के अध्यक्ष हैं। 1945 में शिमला में जन्में मान का फैमिली बैकग्राउंड मिलिट्री-राजनीतिक रहा है। पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह की पत्नी प्रनीत कौर और मान की पत्नी बहनें हैं।

देश ने एक दौर ऐसा भी देखा है जब पंजाब को भारत से अलग कर सिखों के लिए ‘खालिस्तान’ राष्ट्र बनाने की मांग जोरों पर थी। इसके लिए खालिस्तान आंदोलन चलाया जा रहा था। जिसमें जरनैल सिंह भिंडरावाले सबसे आगे थे। भिंडरावाले और कुछ सशस्त्र आतंकवादियों ने 15 दिसंबर, 1983 में स्वर्ण मंदिर परिसर में प्रवेश कर उसे अपने कब्जे में ले लिया। अब खालिस्तानी सोच के समर्थक सिमरजीत मान के चुनाव जीतने से सियासी गलियारों में चर्चा शुरू हो गई है। कुछ लोग आशंका जता रहे हैं कि इससे फिर से खालिस्तानी विचार को बल मिलेगा। जो  देशहित में नहीं है। जबकि दूसरी ओर लोग इसे नकार  रहे हैं कुछ लोगों का कहना है कि सिमर जीत मान को यह जीत उनके किसान आंदोलन में योगदान के चलते हुई है। दूसरी तरफ  एक धड़ा यह भी मानकर चल रहा है कि इस चुनाव में सिद्दू मूसेवाला हत्याकांड की वजह से भी सिमरजीत मान को भारी जनसमर्थन मिला है। मूसेवाला हत्याकांड को लेकर लोगों में काफी रोष था। जनता ने आम आदमी पार्टी को सबक सिखाने की ठान ली थी। इस वजह से सिमरजीत मान को बड़ी जीत मिली।

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