मुस्लिम वोटरों को लुभाने के लिए पीएम मोदी की रणनीति

बीजेपी पसमांदा मुसलमानों तक पहुंचने का बना रही प्‍लान, जानें क्‍यों विपक्ष के लिए खड़ी हो सकती है बड़ी परेशानी
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भाजपा पसमांदा मुसलमानों के लिए एक आउटरीच कार्यक्रम शुरू करने के लिए तैयार है। ऐतिहासिक और सामाजिक रूप से जाति के आधार पर उत्पीड़ित, वे मुस्लिम समुदाय का लगभग 80% हिस्सा हैं। जब 3 जुलाई को पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में उत्तर प्रदेश भाजपा प्रमुख स्वतंत्र देव सिंह ने आजमगढ़ और रामपुर उपचुनाव में भाजपा की आश्चर्यजनक जीत पर एक रिपोर्ट पेश की, तो पीएम मोदी ने हस्तक्षेप किया और पसमांदा मुसलमानों और उनके उत्थान पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता पर बल दिया।

दिल्ली -पीएम नरेंद्र मोदी ने एक मीटिंग में जब ये कहा कि मुस्लिम समाज  में भी सोशल इंजीनियरिंग की जरूरत है। उन्होंने पसमांदा मुस्लिमों के विकास पर फोकस करने की बात की तो देश में मुस्लिमों के इस तबके को लेकर भी एक बहस छिड़ गई। बीजेपी मोदी की इस लाईन पर काम करने की रणनीति बनाने भी लग पड़ी है। लेकिन विपक्ष के लिए ये चिंता की बात है।

विपक्ष के लिए ये एक खतरे की घंटी की तरह से है। खासकर यूपी व बिहार के हिस्सों में, क्योंकि यहां पर मुस्लिम तबका बीजेपी के खिलाफ वोट करता रहा है। अगर बीजेपी सोशल इंजीनियरिंग करके पसमांदा यानि पिछड़े मुस्लिमों को अपनी तरफ खींच लेती है तो विपक्ष के पास कुछ नहीं बचने वाला। यूपी के एक मंत्री कहते हैं कि उन्हें यकीन है के पसमांदा बीजेपी को समर्थन करेंगे। उनका दावा है कि हाल के असेंबली चुनाव में तकरीबन 8 फीसदी पसमांदा मुस्लिमों ने योगी के लिए वोट किया था। तभी पीएम के दिमाग में इनके उत्थान की बात आई।

2022 असेंबली चुनाव में जो 34 मुस्लिम विधायक जीतकर आए उनमें 30 पसमांदा हैं। बाराबंकी से सपा के प्रत्याशी अपनी हार की वजह इन लोगों के वोट बीजेपी की तरफ शिफ्ट होने को मानते हैं। बीजेपी को भी इस बात का पता है। तभी योगी कैबिनेट में पसमांदा तबके के दानिश रजा को मंत्री बनाया गया। जबकि पिछली कैबिनेट में मंत्री बने मोहसिन रजा मुस्लिम समुदाय के कुलीन वर्ग से आते थे। बीजेपी के यूपी अल्पसंख्यक मोर्चे के अध्यक्ष कुंवर बासित अली के मुताबिक सूबे में पसमांदा की तादाद तकरीबन 4 करोड़ यानि निर्णायक है।

भारतीय मुस्लिम भी जाति व्यवस्था के शिकार हैं। वो सैकड़ों बिरादरियों में बंटे हुए हैं। उच्च जाति के मुस्लिमों को अशरफ कहा जाता है। इनका ओरिजिन पश्चिम या मध्य एशिया से है। मुस्लिमों आबादी में 15 फीसदी उच्च वर्ग माने जाते हैं। इन लोगों को अशरफ कहा जाता है। बाकी के 85 फीसदी अरजाल और अजलाफ दलित और बैकवर्ड ही माने जाते हैं। इनकी हालत अच्छी नहीं है। ये लोग आर्थिक, सामाजिक और शैक्षिक हर तरह से पिछड़े और दबे हुए हैं।

मुस्लिम आबादी के इसी 85 फीसदी हिस्से को पसमांदा कहा जाता है। ये लोग मुस्लिम समाज में एक अलग सामाजिक लड़ाई लड़ रहे हैं। उनके कई आंदोलन हो चुके हैं। पसमांदा फारसी का शब्द है। इसका मतलब होता है कि वो लोग जो पीछे छूट गए हैं। यानि दबाए गए या सताए हुए हैं। भारत में पसमांदा आंदोलन 100 साल पुराना है। बीती सदी में पसमांदा आंदोलन खड़ा हुआ था। 

पीएम मोदी ने भाजपा कार्यकर्ताओं से पार्टी और वंचित वर्गों के लोगों, विशेष रूप से पसमांदा मुसलमानों के बीच की खाई को पाटने के लिए 'स्नेह यात्रा' करने का आग्रह किया। उन्होंने मतदाताओं को यह समझाने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला कि भाजपा जन समर्थक और विकास समर्थक है।

उन्होंने उन्हें नए सामाजिक समीकरणों पर काम करने और उनके उत्थान की दिशा में काम करने की सलाह दी। सूत्रों के अनुसार, यह उन लोगों तक पहुंचने का प्रयास है जो पारंपरिक मतदाता नहीं हैं। इस साल मार्च में, भाजपा ने पसमांदा मुस्लिम दानिश अंसारी को अल्पसंख्यक मामलों का मंत्री नियुक्त किया।

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