अवैध खनन के खिलाफ धरना दे रहे साधु ने आग लगाकर किया आत्मदाह, 80 फीसदी झुलसे, हालत गंभीर

हादसे के बाद सीएम अशोक गहलोत ने भी अवैध खनन को रोकने के लिए एक हाई लेवल मीटिंग की
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साधु-संतों का अवैध खनन के खिलाफ यह धरना साल 2021 की जनवरी महीने से जारी है. लोकल मीडिया के मुताबिक साल 2009 में भरतपुर के डीग और कामां तहसील में पड़ने वाले ब्रज के धार्मिक पर्वतों को संरक्षित कर वन क्षेत्र बना था.

जयपुर - हरियाणा के नूंह में खनन माफिया द्वारा डीएसपी सुरेंद्र सिंह की हत्या के बाद अवैध खनन का मामला गरमाता जा रहा है. 19 जुलाई को राजस्थान के भरतपुर में एक साधु ने टावर पर चढ़कर आत्महत्या करने की कोशिश की. 30 घंटों की जद्दोजहद के बाद उन्हें नीचे उतारा गया. इसके बाद अब एक साधु ने खनन के विरोध में ही खुद को आग लगा ली. जिसका वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है जिसमें एक साधु जलते हुए राधे-राधे कहते दिख रहे हैं. घटना भरतपुर(Bharatpur) की ही है जहां साधु संतों का पिछले डेढ़ साल से आंदोलन जारी है. खबरों के मुताबिक आत्मदाह करने वाले साधु का नाम विजयदास बताया जा रहा है. उन्हें जलता देख वहां मौजूद पुलिसकर्मियों ने तुरंत उनपर कंबल डालकर आग बुझाने की कोशिश की. तब तक विजयदास 80 फीसदी झुलस चुके थे. गंभीर हालत में उन्हें भरतपुर के एक अस्पताल में भर्ती करवाया गया.

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बता दें कि धरना दे रहे साधु-संत ब्रज क्षेत्र की पहाड़ियों(hills of Braj region) पर हो रहे खनन के खिलाफ हैं. उनकी मांग है कि इस खनन के काम को रोका जाए. साधु-संत इस मांग को लेकर 551 दिनों से धरना दे रहे हैं. हाल के दिनों में उनके सब्र का बांध टूटता दिखा है. बाबा विजयदास(Sant Vijay Das) से पहले इसी आंदोलन में हिस्सा ले रहे एक और साधु नारायण दास(Sant Narayan Das) 19 जुलाई की सुबह पास के एक टावर पर चढ़ गए थे. विजय दास के आत्मदाह करने की कोशिश के बाद उन्हें पुलिस ने 30 घण्टों की बातचीत के बाद नीचे उतारा. बुधवार शाम को संत विजयदास के आत्मदाह के बाद बैकफुट(Blackfoot) पर आई सरकार ने साधु संतों की सभी मांगों को मान लिया है. बुधवार शाम को पसोपा में मान मंदिर सेवा संस्थान बरसाना के कार्यकारी अध्यक्ष राधाकांत शास्त्री(Radhakanta Shastri) ने धरना खत्म करने का ऐलान किया. राजस्थान के खनन मंत्री(Mining Minister) विश्वेंद्र सिंह(Vishvendra Singh) की मौजूदगी में यह ऐलान किया गया. मंत्री ने 15 दिन में कनकांचल व आदिबद्री को वनक्षेत्र घोषित करने व 2 महीने में इन क्षेत्रों में चल रही सभी लीज को शिफ्ट करने का आश्वासन दिया. इसके बाद धरना खत्म कर दिया गया.

BHARATPUR

साधु के आत्महत्या की कोशिश करने पर राजस्थान की राजनीति गरमा गई है. बीजेपी ने राजस्थान में कांग्रेस के नेतृत्व वाली अशोक गहलोत सरकार पर निशाना साधा है. बीजेपी अध्यक्ष सतीष पूनिया(Satish Poonia) ने कहा कि सरकार के दखल देने के बावजूद समस्या का समाधान नहीं हुआ. ये घटना उसी का परिणाम है. उन्होंने कहा, "ब्रज का यह क्षेत्र धार्मिक आस्था का है. रोक के बावजूद खनन जारी है. यह घटना राजस्थान की कानून-व्यवस्था की भी पोल खोलती है. सरकार लापरवाह है."

PROTEST

वहीं धरने में शामिल साधु बृजेश दास ने कहा, "ये ब्रज भूमि है. यहां पर दृश्य-अदृश्य रूप में महापुरुष तपस्या करते हैं. वो पेड़, पशु-पक्षी, कंकड़, पत्थर या पर्वत किसी भी रूप में हो सकते हैं. जो लोग ब्रज को अपना प्राण मानते हैं, उन्हें इस खनन कार्य से तकलीफ हो रही है. हम लोग ब्रज के लिए जीते हैं और ब्रज के लिए मरते हैं. ब्रज की सेवा करते हैं. खनन होने से हमारी भावनाएं बहुत ज्यादा दुखी हैं. क्योंकि ना जाने किस पत्थर में कौन महापुरुष भजन कर रहा है और उसको आपने मशीनों में पीस दिया. ये अनुचित है."

ASHOK

इस मामले पर राजस्थान सरकार का कहना है कि पिछले कई दिनों से आंदोलन कर रहे साधु संतों से बातचीत कर समाधान निकालने की कोशिश की जा रही है. खनन मंत्री  विश्वेंद्र सिंह 3 दिन से भरतपुर में मौजूद हैं. उन्होंने मीडिया से कहा कि साधुओं की मांग है कि उस इलाके को वन क्षेत्र घोषित किया जाए और खनन कार्य बंद हो. इसलिए सरकार ने उनकी दोनों मांगों को मान लिया है. विश्वेंद्र सिंह ने कहा कि सरकार साधुओं को लिखित रूप में पत्र देने को भी तैयार है. इस हादसे के बाद सीएम अशोक गहलोत(CM Ashok Gehlot) ने भी अवैध खनन को रोकने के लिए एक हाई लेवल मीटिंग की. उन्होंने ट्विटर पर लिखा कि सभी जिला कलेक्टर व एसपी(District Collector & SP) को खनन माफिया(Minning Mafia) पर बिना किसी दबाव के कड़ी कार्रवाई करने का निर्देश दिया गया है.

बता दें कि साधु-संतों का अवैध खनन के खिलाफ यह धरना साल 2021 की जनवरी महीने से जारी है. लोकल मीडिया के मुताबिक साल 2009 में भरतपुर के डीग और कामां तहसील में पड़ने वाले ब्रज के धार्मिक पर्वतों को संरक्षित कर वन क्षेत्र बना था. हालांकि उस समय कनकांचल और आदिबद्री पर्वत का कुछ हिस्सा संरक्षित वन क्षेत्र घोषित नहीं हो पाया था. इसलिए वहां अब भी खनन जारी है.

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