क्यों राष्ट्रपति की सुरक्षा सिर्फ 3 जातियों के जवान करते हैं, जानिए क्या है इतिहास PBG का
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नई दिल्ली - वीरवार, 21 जुलाई को देश के राष्ट्रपति का चुनाव(Presidential Election) हो गया है. विपक्षी खेमे की तरफ से यशवंत सिन्हा(Yashwant Sinha) को हराकर एनडीए(NDA)यानी मोदी सरकार की तरफ से समर्थित उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू(Draupadi Murmu) देश की पहली आदिवासी समाज(Tribal Community) से राष्ट्रपति बन गई हैं. बता दें कि तीसरे राउंड के वोटों की गिनती में ही द्रौपदी मुर्मू ने राष्ट्रपति चुनाव जीत लिया था. फिर चौथे और आखिरी राउंड की गिनती के बाद जीत का अंदर और बढ़ गया. राष्ट्रपति चुनाव के वोटों की गिनती कुल चार राउंड में हुई. चुनाव में कुल 4754 वोट पड़े थे. गिनती के वक्त 4701 वोट वैध और 53 वोट अमान्य करार दिए गए. कुल वोटों की वैल्यू 528491 थी. इसमें से द्रौपदी मुर्मू को कुल 2824 वोट मिले. इनकी वैल्यू 676803 थी. वहीं यशवंत सिन्हा को I877 वोट मिले. जिनकी वैल्यू 380177 रही
द्रौपदी मुर्मू को वो तमाम सुविधाएं और सुरक्षा मिलेगी जो किसी भी राष्ट्रपति को मिलती हैं. ऐसे में सबसे आकर्षक होती है देश के कमांडर इन चीफ यानी राष्ट्रपति की सिक्योरिटी, जिसमें 6 फीट लंबे,रौबदार छवि, गहरे आकर्षक रंग की यूनिफॉर्म ऊपर से बड़ा साफा पहने गार्ड. जो हर किसी का ध्यान अपनी ओर खींचते है. लेकिन राष्ट्रपति की सुरक्षा में लगे अगरंक्षक(Body Guard) का इतिहास भी अपने आप मे बड़ा खास है.
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भारत का राष्ट्रपति देश के प्रथम नागरिक होते हैं. इसके साथ ही वो देश के कमांडर इन चीफ यानी तीनों सेनाओं इंडियन आर्मी(Indian Army), एयरफोर्स(Airforce) व नेवी(Navy) के मुखिया होते हैं. इसलिए राष्ट्रपति की सिक्योरिटी भी बेहद जरूरी और खास होती है. इन अंगरक्षकों का चयन भी बेहद खास तरीके से किया जाता है. राष्ट्रपति की सिक्योरिटी की जिम्मेदारी पीबीजी(The President's Body Guard) को दी जाती है.
क्या है ये पीबीजी
पीबीजी यानी द प्रेसिडेंट्स बॉडीगार्ड, ये भारतीय सेना की सबसे सीनियर घुड़सवार रेजिमेंट(Horse Rider Regiment) है. इसके साथ ही इंडियन आर्मी की सबसे पुरानी यूनिटों में से एक है. यह यूनिट राष्ट्रपति के ऑफिसियल प्रोगाम में भी हिस्सा लेती है. इसमें शामिल जवान 6 फीट लंबे कद काठी वाले होने के साथ ही घुड़सवारी में अव्वल दर्जे के होते है.
अंग्रेजों के जमाने में हुई शुरुआत
पीबीजी को 1773 में तत्कालीन भारतीय उपनिवेश के गवर्नर जरनल वॉरेन हेस्टिंग्स(Governor General Warren Hastings) ने बनाया था. वॉरेन हेस्टिंग्स ने पहले 50 सिपाहियों को अपनी टुकड़ी में चुना था. उन्हें 'मुगल हॉर्स(Mughal Horse)' के नाम से जाना जाता था.
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जिनकी लंबाई 6 फीट 3 इंच हुआ करती थी. इस मुगल हॉर्स का गठन साल 1760 में सरदार मिर्जा शाहबाज खान(Sardar Mirza Shahbaz Khan) और सरदार खान तार बेग(Sardar Khan Tar Baig) ने किया था.
176 जवान करते राष्ट्रपति की सिक्योरिटी
बता दें कि फिलहाल राष्ट्रपति की सिक्योरिटी करने वाले जवानों की संख्या 176 हैं. जिसमें 4 ऑफिसर, 11 जूनियर कमीशंड(Junior Commissioned) और 161 जवान होते है. आपको ये जानकर हैरानी होगी कि देश के प्रेसिडेंट की सिक्योरिटी करने वाले जवान हरियाणा, पंजाब और राजस्थान से ही आते है. इन्हीं जगहों से आए युवाओं को ही प्रेसिडेंसीएल सिक्योरिटी के लिए चुना जाता है. इतना ही नहीं बल्कि खास जाति के लोगों को ही राष्ट्रपति की सिक्योरिटी में लगाया जाता है. जिसमें हिंदू जाट, जाट सिख और राजपूत को ही प्राथमिकता दी जाती है.
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विवाद भी हुआ था
राष्ट्रपति के गार्ड की भर्ती में सिर्फ हिंदू जाट, सिख जाट और राजपूत ही आवेदन कर सकते हैं. इसे लेकर 2018 में दिल्ली हाईकोर्ट(Delhi Highcourt) में एक याचिका भी लगाई गई थी कि सिर्फ तीन जातियों पर ही क्यों विचार किया जाता है? इस पर केन्द्र सरकार ने हाइकोर्ट में जवाब देते हुए कहा था कि राष्ट्रपति के बॉडी गार्ड्स की भर्ती अलग से नहीं होती है. सेना के कार्य के अनुरूप ही टुकड़ियों को बांटा जाता है और उनको नियुक्ति दी जाती है. ऐसे में राष्ट्रपति के सिक्योरिटी गार्ड्स की नियुक्ति प्रक्रिया में जातिवाद का आरोप पूरी तरह से गलत है.
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आर्मी ने भी स्वीकार किया इस प्राथमिकता को
बताते चले कि इस मामले में सिर्फ तीन जातियों के ही जवानों को शामिल किए जाने के तथ्य को भारतीय सेना ने सुप्रीम कोर्ट में 2013 में ही स्वीकार कर लिया था. उस समय कहा गया था कि राष्ट्रपति की बॉडी गार्ड्स की विशेष आवश्यकताओं के चलते ही राजपूत, जाट और सिख टुकड़ी को ही शामिल किया जाता है.